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कस्टम की प्रक्रिया पर समीक्षा की जरूरत

Last Updated- December 08, 2022 | 7:45 AM IST

हाल में मुंबई पर हुए आतंकवादी हमलों ने कस्टम विभाग के सामने नई चुनौतियां खड़ी कर दी हैं।


शायद अब समय आ गया है कि कस्टम विभाग की ओर से स्वीकृति देने की प्रक्रिया की फिर से समीक्षा की जानी चाहिए ताकि थोड़ी सी गलती के कारण लाखों लोगों की जान खतरे में न पड़ जाए। राजस्व पर निगरानी रखने और कारोबार में सहूलियत प्रदान करने भर से बात नहीं बनेगी।

मौजूदा समय में भी कस्टम विभाग का काम महज सीमा शुल्क इकट्ठा करना भर नहीं है। विभाग के कार्यों की सूची में कार्गो, डाक सामग्री, सामान के आयात निर्यात पर निगरानी रखने की भी जिम्मेदारी होती है ताकि तस्करी पर रोक लगाई जा सके।

साथ ही अगर कस्टम विभाग पूरी मुस्तैदी के साथ काम करे तो नशीली दवाओं की तस्करी पर भी रोक लग सकेगी और अवैध तरीके से एक देश से दूसरे देश में यात्रियों की आवाजाही भी रुकेगी। दरअसल कस्टम विभाग का काम होता है कि देश में आने जाने वाले हर सामान और व्यक्ति पर उसकी नजर हो।

कोई भी उपकरण, विमान, ट्रेन, ट्रक या फिर ऊंट, चाहे जिस किसी भी माध्यम से सामान की आवाजाही हो रही हो उसे कस्टम की जांच से होकर गुजरना पड़ेगा।

कानून ने कस्टम विभाग को यह अधिकार दिया है कि वह देश के भीतर आने वाले और यहां से बाहर जाने वाले किसी भी वाहन को रोक कर उसकी जांच कर सकता है।

वाहन के मालिक से उस बारे में पूछताछ कर सकता है और सही पाये जाने वाले पर वह उस वाहन को देश के बाहर या भीतर जाने की अनुमति दे देता है। पर अगर उसे कोई संशय लगता है तो वह उस वाहन को रोक कर सामान को जब्त कर सकता है और चाहे तो पेनल्टी भी वसूल सकता है।

कानून के दायरे में रहते हुए इन अधिकारों का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। अगर कार्गो की बात करें तो कस्टम की जिम्मेदारी केवल इतनी ही नहीं बनती है कि वह यह देखें कि उनका वर्गीकरण और मूल्य सही है या नहीं और वह शुल्क में छूट पाने के हकदार हैं या नहीं।

उनकी जिम्मेदारी यह भी है कि वह यह जांच करें कि दस्तावेजों में आयात या निर्यात किए जाने वाले उत्पाद के बारे में जो कुछ लिखा गया है वह सही है या नहीं। हालांकि कानून में चाहे जो कहा गया हो पर कस्टम हर कार्गो की जांच नहीं करता है।

ऐक्रीडेटेड क्लाइंट्स प्रोग्राम के तहत आयातक के घोषणा पत्र को देखकर ही कस्टम विभाग की स्वीकृति मिल जाती है। जहां जहां जोखिम प्रबंधन प्रणाली लगाई गई है ।

उन जगहों पर कंप्यूटर कहीं से भी कुछ बिलों को चुन लेता है और उन्हीं का मूल्यांकन और जांच किया जाता है। प्रबंधन में अब भी कई खामियां मौजूद हैं।

कस्टम विभाग में कर्मचारियों की कमी की वजह से हर कार्गो की जांच करना मुमकिन नहीं हो पाता है। साथ ही उनके ऊपर कारोबार को सुविधाजनक बनाने का दबाव भी होता है और इसके कारण भी आयात किए गए सामानों में से कुछ की ही जांच संभव हो पाती है।

पर जब हमें यह पता है कि विदेशों में कुछ ऐसे तत्व हैं जो किसी तरह देश को नुकसान पहुंचाना चाहते हैं तो ऐसे में हर कार्गो की ठीक तरह से जांच की जानी चाहिए।

कस्टम विभाग को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सभी बंदरगाहों, हवाईअड्डों, विदेशी डाक घरों और कंटेनर डिपो में स्कैनर लगाए गए हों। आयात किए जाने वाले हर कार्गो की स्कैनिंग होनी चाहिए।

अमेरिका में एक ऐसी व्यवस्था अपनाई गई है जिसके जरिए देश में आने वाले सभी कार्गो की जांच अधिकृत जांच एजेंाियों के जरिए की जाती है।

यहां तक कि इंडोनेशिया जैसा देश भी जहाज पर माल लादे जाने के पहले जांच किए जाने पर बल देता है। भारत का कस्टम विभाग भी ऐसी ही किसी व्यवस्था पर जोर दे सकता है जिसमें देश के लिए माल से लदे किसी जहाज को रवाना करने से पहले ही प्रतिष्ठित एजेंसियों के जरिए माल की जांच कर ली जाए।

अगर माल लादे जाने के पहले ही उसकी जांच कर ली जाती है तो उससे एक और फायदा यह होगा कि भारत में बंदरगाहों पर भीड़ नहीं बढ़ेगी और समय से सामान को गंतव्य तक पहुंचाया जा सकेगा।

माल को चढ़ाने से पहले ही उसकी जांच करने से या फिर सामान की स्कैनिंग को अनिवार्य बनाने से लेन देन का खर्च बढ़ जाएगा और माल को पहुंचने में भी अधिक समय लगेगा।

पर कम से कम इस अमेरिकी तरीके को अपनाने से यह फायदा तो होगा कि किसी हादसे को टाला जा सकेगा और बाद में पछताना नहीं पड़ेगा। बैंकों के लिए भी यह बहुत जरूरी है कि वे भारतीय रिजर्व बैंक के दिशा निर्देशों का पालन करते हुए अपने उपभोक्ताओं की पूरी जानकारी रखें।

जब भी देश के बाहर कोई लेन देन हो रहा तो ऐसे में खास सावधानी बरतनी चाहिए। और अगर कभी किसी लेन देन पर संशय होता हो तो तत्काल इसकी सूचना दी जानी चाहिए।

First Published - December 7, 2008 | 11:41 PM IST

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