सत्यम के स्वतंत्र ऑडिटर प्राइस वाटरहाउस ने 13 जनवरी को कंपनी द्वारा जारी वित्तीय स्टेटमेंट पर अपनी ऑडिट रिपोर्ट वापस ले ली थी।
इसे लेकर निराश निवेशक और आम लोग अभी भी इस बात पर बहस कर रहे हैं कि कोई ऑडिटर उस रिपोर्ट को कैसे वापस ले सकता है जो निवेशकों के भरोसे पर आधारित थी। ऑडिट समुदाय इस बात से बेहद चिंतित है कि पीडब्ल्यू जैसी बड़ी फर्म भी राजस्व धोखाधड़ी और नकदी एवं बैंक बैलेंस में खामियों का पता नहीं लगा सकी।
मीडिया पहले ही इस मामले में ऑडिटर की भूमिका को दोषी ठहरा चुका है। ये बातें समझने योग्य हैं। लेकिन इस समय हमें इस पर निष्पक्षतापूर्वक विचार करना चाहिए कि एक स्वतंत्र ऑडिट से क्या उम्मीद की जा सकती है।
हालांकि धोखाधड़ी और खामी का पता लगाना ऑडिट का प्रमुख उद्देश्य नहीं है। यह व्यवस्था रीकिंगस्टन कॉटन मिल्स कंपनीज के मामले में 1986 के शुरू में निर्धारित की गई थी। यदि खातों में कोई बड़ी धोखाधड़ी की जाती है और वह खातों की जांच के दौरान सामने नहीं आती है तो इसे ऑडिटर की विफलता के तौर पर नहीं समझा जाएगा।
ऑडिटर कोई ‘जासूस’ नहीं है। उससे सिर्फ कुशलता का इस्तेमाल किए जाने, अपने काम में सावधानी बरते जाने की उम्मीद की जा सकती है। ऑडिटरों से जिन वित्तीय ब्योरों पर अपनी राय देने को कहा जाता है, उसे प्रबंधन द्वारा तैयार किया जाता है।
पूरी ऑडिट प्रक्रिया अंदरूनी नियंत्रण प्रणाली की पर्याप्तता और प्रभावोत्पादकता पर निर्भर करती है। कोई स्वतंत्र ऑडिटर अंदरूनी नियंत्रण प्रणाली की पर्याप्तता का आकलन करने के बाद ही ऑडिट की योजना बनाता है।
हालांकि पर्याप्त और प्रभावी अंदरूनी नियंत्रण व्यवस्था भी सीईओ द्वारा की गई धोखाधड़ी के खिलाफ गैर-प्रभावी हो सकती है, क्योंकि यह सीईओ के अंदरूनी नियंत्रण व्यवस्था को कुचल देने की स्थिति में होता है।
इस वजह से कोई ऑडिटर प्रबंधन धोखाधड़ी का पता लगाने या उसे रोकने में सफल नहीं हो पाता। सत्यम के मामले में, पीडब्ल्यू को दोषी ठहराए जाने में जल्दबाजी दिखाई गई। इस मामले की जांच पूरी हो जाने के बाद ही यह स्पष्ट होगा कि क्या पीडब्ल्यू ऑडिट प्रक्रिया और तकनीकों को सही तरीके से लागू करने में सफल रही थी।
जो भी हो, सत्यम प्रकरण ने कंपनियों द्वारा जारी किए जाने वाले वित्तीय ब्योरों के स्वतंत्र ऑडिट को लेकर कई बड़े सवालों को जन्म दिया है।
क्या ऑडिट एक व्यक्तिगत जिम्मेदारी है?
ऑडिट को अक्सर एक निजी सेवा समझा जाता रहा है। यह ऑडिट के लिए व्यक्तिगत जिम्मेदारी है जिसमें ऑडिटर को निजी फैसले लेने होते हैं और अपनी कुशलता का इस्तेमाल करना होता है।
इसलिए किसी तरह की गड़बड़ी या लापरवाही का दोषी पाए जाने पर व्यक्ति के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई किया जाना तर्कसंगत है। लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि ऑडिट फर्म अपना कॉरपोरेट ब्रांड बनाती हैं और निवेशक या ऑडिटिड वित्तीय ब्योरों के अन्य उपयोगकर्ता इस ब्रांड को महत्त्व देते हैं।
‘बिग फोर’ ऑडिट फर्म ऑडिट के बड़े कार्य हासिल कर सकती हैं, क्योंकि उनके पास ब्रांड इमेज है और वे वैश्विक तौर पर अनुभव रखती हैं। इसके अलावा ये बड़ी ऑडिट फर्म स्टाफ के प्रशिक्षण और प्रौद्योगिकी में निवेश भी करती हैं और अंदरूनी प्रणाली के जरिये ऑडिट की उच्च गुणवत्ता सुनिश्चित करती हैं।
हालांकि अभी सत्यम मामले की जांच चल रही है, लेकिन अगर इसमें पीडब्ल्यू को दोषी पाया गया तो भी उसे नजरअंदाज कर दिया जाएगा। सरकार, नियामकों और कंपनियों को जांच समाप्त होने के बाद कदम उठाना चाहिए।
यदि मौजूदा कानून अपर्याप्त हैं तो नया कानून बनाया जाना चाहिए। अमेरिका में पब्लिक कंपनी अकाउंटिंग ओवरसाइट बोर्ड (पीसीएओबी) के पास अधिकार है कि उस ऑडिट फर्म के खिलाफ प्रतिबंध लगा सकता है जिसका पार्टनर धोखाधड़ी या अन्य अनियमितता में दोषी पाया गया हो।
क्या ऑडिटरों के रोटेशन की जरूरत है?
इस मुद्दे पर लंबे समय से बहस की जाती रही है, लेकिन यह अभी भी अनसुलझा बना हुआ है। कोई भी नया ऑडिटर ऑडिट के लिए नया दृष्टिकोण लेकर आता है और यह सत्यम की तरह प्रबंधन धोखाधड़ी का पता लगाने में मददगार साबित हो सकता है।
कुछ लोगों का तर्क है कि यह तरीका यानी रोटेशन बेहद महंगा साबित होता है और इससे अपेक्षित परिणाम नहीं प्राप्त किया जा सकता। हालांकि इस तरह के रोटेशन की लागत का पूरी तरह आकलन नहीं किया गया है।
सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों (पीएसई) में ऑडिटरों के रोटेशन की व्यवस्था लागू है। लेकिन निजी खिलाड़ी इसमें अभी कोई खास रुचि दिखाते नजर नहीं आ रहें है।