इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि एफएमसीजी क्षेत्र का प्रदर्शन पिछले एक साल के दौरान बढ़िया रहा है, जबकि बाजार मंदी के दौर से गुजर रहा था।
लेकिन एफएमसीजी क्षेत्र के बढ़िया प्रदर्शन का कारण केवल बाजार का कमजोर होना ही नहीं है।
कच्चे मालों की कीमतें अधिक होने के बावजूद इस क्षेत्र की कंपनियों के परिणाम पिछले कुछ तिमाहियों के दौरान बेहतर रहे हैं। यही वजह है कि इन कंपनियों के शेयरों का कारोबार बाजार के प्राइस टु अर्निंग गुणकों से अधिक पर किए जा रहे हैं।
सेंसेक्स का प्राइस टु अर्निग साल 2009-10 के लिए जहां 10 गुना से कम है वहीं एफएमसीजी क्षेत्र का प्राइस टु अर्निंग गुणक 16 से 22 के दायरे में है। उदाहरण के लिए, 13,718 करोड़ रुपये की कंपनी हिंदुस्तान यूनीलीवर के शेयरों का कारोबार 2009 की आकलित आय के 22 गुना पर किया जा रहा है।
इन कंपनियों में से अधिकांश का मूल्यांकन इस स्तर पर होने की संभावना है। एक तरफ जहां दिसंबर 2008 की तिमाही में इन कंपनियों के आय की विकास थमी रह सकती है वहीं दूसरी तरफ उम्मीद की जा रही है कि कच्चे माल की लागत कम होने से आने वाली तिमाहियों में इनका प्रदर्शन बेहतर रहेगा और शुध्द लाभ के स्तरों में भी सुधार होगा।
अर्थव्यवस्था में मंदी आ सकती है लेकिन इन कंपनियों का बेहतर प्रदर्शन जारी रहना चाहिए क्योंकि इस बात के कम ही संकेत मिलते हैं कि उपभोक्ता अपनी आवश्यक वस्तुओं की खरीदारी पर होने वाले खर्च में कटौती कर रहे हैं।
अनुमान है कि दिसंबर 2008 की तिमाही में एफएमसीजी कंपनियों का टॉपलाइन ग्रोथ 14 से 25 प्रतिशत के बीच होगा। बेहतर कारोबार और कीमतों में हुई बढ़ोतरी से इन कंपनियों का प्रदर्शन बेहतर होने में मदद मिलेगी।
पिछले चार तिमाहियों में एफएमसीजी कंपनियों की औसत विकास दर लगभग 15 प्रतिशत रही है और यह चलन तब तक जारी रहना चाहिए जब तक कि माहौल में बहुत ज्यादा विकृति नहीं आती।
कमोडिटी की कीमतों में नरमी के साथ ही हिंदुस्तान यूनीलीवर, कोलगेट और नेस्ले जैसी कंपनियां लागत का प्रबंधन बेहतर तरीके से कर पाएंगी जिससे उनका परिचालन मार्जिन 50 से 100 आधार अंक बढ़ सकता है।
दिसंबर तिमाही में हालांकि परिचालन मार्जिन यथावत रहने के अनुमान हैं जिसके परिणामस्वरूप शुध्द लाभ का विकास 11 से 26 प्रतिशत रहने की उम्मीद की जा रही है। अधिक कीमतों पर खरीदे गए कच्चे मालों से परिचालन मार्जिन प्रभावित होगा।
हिंदुस्तान यूनीलीवर का परिचालन मार्जिन सितंबर 2008 की तिमाही में 12 प्रतिशत था जबकि आईटीसी का 31 प्रतिशत और डाबर का 19 प्रतिशत था।
कंपनियों की साख में बट्टा
जिस दिन रामलिंग राजू ने अपने बेटों की कंपनी को आर्थिक राहत पहुंचाने के लिए सत्यम कंप्यूटर्स की नकदी का इस्तेमाल किया उससे भारतीय कंपनियों की प्रतिष्ठा को गहरा धक्का लगा है।
अब जब साख में बट्टा लग ही गया है तो उद्योग जगत के अग्रणियों के सम्मिलित प्रयास से दुनियां वालों को यह समझाने में कहीं अधिक वक्त लगेगा कि यह मामला कुछ अलग किस्म का था।
जैसा कि एक वरिष्ठ उद्योगपति ने कहा कि भारत अब पीछे हटेगा और अपनी उपलब्धियों को बचाए रखने की दिशा में कदम उठाएगा।
निश्चित ही, कोई भी व्यक्ति सभी प्रबंधनों के बारे में एक जैसा खयाल रख सकता है। लेकिन, बड़ी कंपनियों को इस घटना से अपेक्षाकृत कम हानि पहुंचनी चाहिए। मध्यम आकार की कंपनियों को अब कुछ ज्यादा ही सवालों के जवाब देने होंगे।
ऐसा नहीं है कि इस तरह के धोखे अन्य देशों में नहीं होते, वहां भी होते हैं। लेकिन सत्यम वाला घपला इतना बड़ा है कि विदेशी निवेशकों को यह सोचने में समय लग सकता है कि भारतीय शेयर जोखिमों की तुलना में कितना लाभ दे सकते हैं।
वे निवेश करेंगे अगर कॉर्पोरेट क्षेत्र मिल कर इस दिशा में तुरंत आगे कदम उठाए। सर्वप्रथम वरिष्ठ कारोबारियों को साथ मिल कर काम करने की जरूरत है ताकि सत्यम की गाड़ी फिर से पटरी पर आ सके। इससे दुनिया को यह पता चलेगा कि हम कंपनियों के संकटकाल में सक्षम तौर पर उचित व्यवस्था कर सकते हैं।
दूसरा, भारतीय कॉर्पोरेट क्षेत्र को या साबित करने की जरूरत है कि यह कॉर्पोरेट शासन को गंभीरता से लेता है। वर्तमान में कुछ ही कंपनियां कॉर्पोरेट शासन की कोई इात करते हैं लेकिन शेयरधारक इस बात की ज्यादा चिंता करते नहीं लगते हैं।
और चूंकि अब खातों की जांच अपेक्षाकृत अधिक गहन तरीके से की जाएगी इसलिए हरेक कंपनी को अपने परिचालन और वित्तीय लेखा-जोखा के मामले में ज्यादा पारदर्शिता प्रदर्शित करनी होगी। भारतीय कंपनियां कुछेक प्रकटीकरण के मामले में ही लंबा समय लगाती हैं।
इनमें से कुछ कंपनियां तो अपने शेयरधारकों को अपनी पूर्ण स्वामित्व वाली सहयोगी कंपनियों के बारे में मूलभूत जानकारी भी नहीं देते हैं। एक तरह से देखा जाए तो इसमें शेयरधारकों की गलती भी कुछ हद तक है जिन्होंने प्रवर्तकों को ऐसी विषम परिस्थिति में फंसने दिया। एक बार नहीं कई बार।
इसकी एक वजह उन कंपनियों की कोताही रही है जिनके प्रबंधन के बारे में समझा जाता है कि वे उच्च गुणवत्ता वाले हैं। जबकि ऐसी कंपनियां मुट्ठी भर हैं। जब तक शेयरधारक ऐसे प्रबंधन से दूर रहेंगे तब तक प्रर्वतक भी इसी तरह का व्यवहार करना जारी रखेंगे।