रिडम्पशन के संकट से जूझ रहे म्युचुअल फंडों को राहत देने के लिए भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) एक प्रस्ताव पर गौर कर रहा है।
इसके तहत म्युचुअल फंड को छह माह तक किसी भी स्कीम की शुध्द परिसंपत्ति का 40 फीसदी उधार लेने की अनुमति मिल सकती है। अभी सीमा 20 फीसदी है।
इससे उन्हें पुनर्खरीद, रिडम्पशन या फिर ब्याज व लाभांश के भुगतान जैसी अस्थायी नकदी जरूरतें पूरी करने में मदद मिलेगी।
अक्टूबर तक रिडम्पशन के दबाव के कारण कई फंड हाउस कठिनाई का सामना कर रहे थे। इसके बाद नवंबर के पहले सप्ताह में लोटस म्युचुअल फंड ने रेलिगेयर एगॉन का अधिग्रहण किया था।
पिछले सप्ताह सेबी बोर्ड की बैठक के एजेंडे में यह मुद्दा भी शमिल था। इस बैठक ब्योरा सेबी की वेबसाइट पर जारी कर दिया गया।
इस साल म्युचुअल फंड की एयूएम में भारी गिरावट आई है। सेबी के आंकड़ों के अनुसार अगस्त से लेकर अक्टूबर के अंत तक ही फंडों की एयूएम 20.68 फीसदी गिरकर 5.4 लाख करोड़ रुपये से 4.31 लाख करोड़ रुपये रह गई। क्लोज एंडेड स्कीम की लिस्टिंग एक अन्य मामला है।
इस स्कीम को मजबूती देने के लिए सिफारिश की गई है कि ये फंड ऐसी प्रतिभूतियों में निवेश न करें जिनकी परिपक्वता अवधि उनकी अपनी परिपक्वता अवधि से अधिक हो। इसके साथ ही फंड हाउसों को बतौर नियमित खर्च के रूप में लिस्टिंग फीस लेने की अनुमति देने की भी बात की गई है।
नकदी संकट का म्युचुअल फंड उद्योग पर बुरा असर पड़ा है। लिक्विड और डेट फंडों का एयूएम अगस्त से अक्टूबर अंत तक 3.6 लाख करोड़ रुपये से गिरकर 2.9 लाख करोड़ रुपये रह गया है।