भारत में अपने पहले निवेश के तहत मॉर्गन स्टैनली प्राइवेट इक्विटी फंड (एमएसपीई) ने बॉयोटर इंडस्ट्रीज में 182 करोड़ रुपये का निवेश किया है।
बॉयोटर विश्व की सबसे बड़ी अरंडी तेल और इससे जुड़े उत्पादों का उत्पादन करनेवाली कंपनी है। पिछले साल एमपीएसई एशिया ने 1.5 अरब डॉलर का फंड जुटाया था और इस रकम का एक बडा हिस्सा भारत में अगले दो वर्षों की अवधि में निवेश करने की योजना है।
प्रिया नाडकर्णी और शिवानी शिंदे ने मॉर्गन स्टैनली के प्रबंध निदेशक श्रीनिवास रॉव एलुरी से प्राइवेट इक्विटी की रणनीति के बारे में बातचीत की। पेश हैं बातचीत के प्रमुख अंश:
देश में आपने सौदे के रूप में आखिर कृषि क्षेत्र को ही निवेश के लिए क्यों चुना है?
इसके पीछे दो या तीन बातें हैं जिस वजह से हमने इसमें निवेश किया है। सबसे पहली बात तो यह कि हम कृषि क्षेत्र पर काफी अरसे से ध्यान दे रहे थे और इस क्षेत्र को लेकर काफी संभावनाएं तलाश रहे थे। पिछले कुछ समय से हमारा ध्यान इस तरफ था।
इसके अलावा इस क्षेत्र से मिलनेवाला मुनाफा भी हमें आकर्षक लगा है जिससे हम इस क्षेत्र की तरफ आकर्षित हुए हैं। भारत करीब 75 फीसदी से ज्यादा के अरंडी तेल का उत्पादन करता है लेकिन परंपरागत तरीकेसे यहां इसकी पेराई कर बेच दिया जाता है।
इसमें गुणवत्ता में सुधार यूरोप और अमरिका में किया जाता रहा है। इसकी गुणवत्ता में सुधार मुख्य तौर पर अमेरिका और यूरोप में होता रहा है।
हम कंपनियों को पूर्ण रुप से तैयार तेल यूरोप, अमेरिका और चीन के ग्राहकों को बेचने में मदद करेंगे। अंत में, मैं यह भी कहना चाहता हूं कि हमने किसी खास किस्म के फंड पर अपना ध्यान केंद्रित नहीं कर रखा है।
आपके सौदे की कीमतें किस दायरे में रहेंगी?
भारत में खासकर सौदों की कीमत करीब 2 करोड़ डॉलर से 20 करोड़ मिलियन डॉलर के आसपास होगी। हमारे मुताबिक यह कीमत बिल्कुल सही है। हम अपने अन्य एशियाई बाजारों के अनुभवों के आधार पर बायआउट और ग्रोथ डील पर विचार करेंगे।
निवेश करने की बात जहां तक है तो हम असूचीबध्द कंपनियों में निवेश करने को ज्यादा अहमियत देंगे क्योंकि इन कंपनियों में निवेश के बाद सूचीबध्द कंपनियों की तुलना में सहजता से बदलाव किए जा सकते हैं। इसमें किसी तरह की पेरशानी भी नहीं होती है।
क्या मॉर्गन स्टैनली की सौदे करने की रफ्तार धीमी रही है या फिर कारोबारी माहौल ही धीमा चल रहा है?
हमने कई सौदों पर विचार किया है और इस बाबत कई बड़े उद्योगपतियों और कंपनियों से बात भी की है। इसके पीछे हमारी मंशा यह रही है कि हम किस तरह से विशेषज्ञता हासिल करने के साथ ही गुणवत्ता में भी सुधार कर सकते हैं। हमारे पास फिलहाल सौदों हैं।
यही नहीं, जब हमने मई में अपना कारोबार शुरू किया था तो हमे सबसे पहले अपनी एक टीम बनानी पडी थी जिसमें हमें कुछ समय लगा था। हमारी टीम में कुल छह सदस्य हैं।
हाल में सत्यम और मायटास के सौदे ने कॉर्पोरेट गवनर्स की खामियों को उजागर किया है। क्या निदेशक मंडल में पीई के साथ होने से इस तरह की स्थितियों से बचा जा सकता है?
यह प्रत्येक पीई पर निर्भर करता है और इस पर सामान्य तौर पर कुछ भी नहीं कहा जा सकता है।
कुल मिलाकर आप इस चीज को महसूस करेंगे कि जिन कंपनियों में पीई का निवेश होता है उनमें कॉर्पोरेट गवनर्स का स्तर काफी बेहतर मिलता है और खामियां कम ही देखने को मिलती हैं। हम जिन भी कंपनियों की तरफ रुख करते हैं, वहां हम कार्पोरेट गवनर्स को ज्यादा अहमियत देते हैं।
कंपनियों और पीई दोनों को निश्चित तौर पर इस बात को समझना चाहिए कि यह एक तरह से गुणवत्ता सुधारने का प्रयास है।
फिलहाल पीई केसामने किस तरह की चुनौतियां मुंह बाए खड़ी हैं?
सबसे बडी समस्या कीमतों को लेकर है। सूचीबध्द कंपनियों में तेज गिरावट के बाद से असूचीबध्द कंपनियों की कीमतों में भी काफी करेक्शन हुआ है।
हालांकि आप किस तरह से चीजों की कीमतों का आकलन करते हैं, इसमें हमेशा से दोहरी सोच काम करती है। कोई प्रवर्तक इस डर से फंड जुटाना नहीं चाहता है कि इससे उसकी हिस्सेदारी में कमी आएगी।
अत: इस अविश्वास को पाटना निश्चित तौर पर जरूरी है।बेहतर कारोबार के लिए बेहतर संतुलन का होना बेहद जरूरी माना जाता है।