प्रवर्तकों द्वारा शेयरों की गिरवी रखने में बड़े पैमाने पर हो रही अनियमितता के मद्देनजर होल्डिंग कंपनियों का चलन अब आम हो सकता है।
उल्लेखनीय है कि हाल के दिनों में किसी कंपनी केप्रवर्तकों जो बैंकों के पास अपने गिरवी रखे गए शेयरों का ब्योरा नहीं देना चाहते हैं,उनके लिए इससे बचने का यह सबसे आसान तरीका प्रतीत होता है।
भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने बुधवार को प्रवर्तकों के लिए बैंकों केपास गिरवी रखे गए शेयरों की जानकारी देना अनिवार्य बना दिया है।
हालांकि बाजार नियामक ने साथ भी यह भी प्रावधान दिया कि होल्डिंग कंपनियों के गिरवी रखे गए शेयरों की जानकारी देना जरूरी नहीं है।
इस बाबत कानून और लेखा विशेषज्ञों का कहना है कि सेबी के इस आदेश के बाद कई कंपनियों में साझेदारी के प्रारूप में अब बदलाव आ सकता है।
इस बाबत मुंबई स्थित लेखा कंपनी कनु दोषी एसोसिएट्स के वरिष्ठ साझेदार कनु दोषी कहती हैं कि इन सूचीबध्द कंपनियों में प्रवर्तक सीधे तौर पर अपनी हिस्सेदारी नहीं रखते हैं।
सेबी के अधिग्रहण संबंधी नियमावली के उनसार अपनी हिस्सेदारी वाली कंपनी के शेयरों की बिकवाली सूचीबध्द कंपनियों के शेयरों की बिकवाली मानी जाती है। नियामक द्वारा गिरवी रखे जाने वाले शेयरों संबंधी की पाक्षिक घोषणा की तारीख की घोषणा अभी की जानी है।
ऐसा माना जा रहा है कि करीब 150 कंपनियों के प्रवर्तकों ने शेयरों को गिरवी रख कर धन जमा किया था जिसमें सत्यम कंप्युटर्स के पूर्व अध्यक्ष रामलिंगा राजू का नाम भी इस सूची में शुमार है।
मुंबई स्थित लीगर फर्म क्रॉवफोर्ड बेले के सॉलिसिटर अनोज मेनन का कहना है की अगर असूचीबध्द कंपनियों में हिस्सेदारी को अनिवार्य नहीं बनाया जाता है तो इस बात की पूरी संभावना है कि कुछ प्रवर्तक गिरवी शेयरों की जानकारी को सार्वजनिक करने से बचने के लिए अपने हिस्सेदारी के तरीकों में बदलाव करेंगे।
बैंक प्रवर्तकों को गिरवी रखे गए शेयरों के बदले अतिरिक्त मार्जिन देने को कहते हैं और अगर प्रवर्तक ऐसा नहीं कर पाते हैं तो उस स्थिति में बैंक इन शेयरों को बेच डालते हैं।
फिलहाल यह चलन काफी देखने को मिल रहा है। इस तरह की घटनाओं का शेयरों की कीमत पर बहुत बुरा असर पड़ता है।