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कमीशन कम कर सकती हैं पुनर्बीमा कंपनियां

Last Updated- December 08, 2022 | 11:05 AM IST

शेयर बाजार में आए उतार चढ़ाव से भारतीय पुनर्बीमा कंपनी जनरल इंश्योरेंस कार्पोरेशन की निवेश आय में गिरावट आने के आसार हैं।


हालांकि एआईजी जैसी बड़ी बीमा कंपनियों पर संकट से जीआईसी जैसी कंपनियों को वैश्विक बाजार में अपने पैर फैलाने का मौका भी मिला है।

कंपनी के अध्यक्ष योगेश लोहिया ने शिल्पी सिन्हा और सिध्दार्थ से जीआईसी की योजनाओं और भारतीय कंपनियों पर आतंकवादी हमलों के असर पर बातचीत की।

क्या अब और ज्यादा कंपनियां आतंकवाद का कवर ले रही हैं?

अब सभी कार्पोरेट हाउस को यह अहसास हो गया है कि ऐसी ट्रैजडी कभी भी हो सकती है। रिफाइनरी, फर्टिलाइजर प्लांट, पावर प्लांट और बंदरगाहों की रिस्क वैल्यू बहुत हाई होती है। अब ऐसी कंपनियां ज्यादा कवर लेने की सोच रही हैं।

क्या आतंकवादी हमलों का प्रीमियम की दरों पर असर पड़ने की संभावना है?

प्राइसिंग और नुकसान का एक संबंध होता है। इन घटनाओं से कमाई (बीमा कंपनियों की) पर फर्क जरूर पड़ेगा। ऐसा माना जा रहा है कि (सामान्य बीमा कंपनियों के लिए) गिरती प्रीमियम दरों और भारत में बढ़ते आतंकवाद का बीमा कंपनियों पर असर पड़ेगा।

इस तरह की धारणाओं का अंतरराष्ट्रीय समुदाय पर असर पड़ता है खासकर विदेशी पुनर्बीमा कंपनियों पर और उसी के हिसाब से वह रिस्क की रेटिंग करते हैं।

भारत के संदर्भ में टेरर पूल ने हाल के आतंकी हमलों में अहम भूमिका निभाई है। बीमा कंपनियों और रेगुलेटर और सरकार की बदौलत  ही यह टेरर पूल नहीं  बन सका।

ताज, ट्राइडेंट और ओबेरॉय के दावों के निपटारे के बाद आपका टेरर पूल काफी कुछ साफ हो जाएगा, ऐसे में आगे आपकी क्या योजना है?

इन दावों से पूल खत्म नहीं होगा। हमारे पास इसके लिए 1300 करोड़ का कोष है और नुकसान कुल 500 करोड़ का आंका जा रहा है। हमारे पास पर्याप्त सुरक्षा है। कवरेज 31 मार्च 2009 तक के लिए उपलब्ध है और रिन्यूअल पहली अप्रैल से होना है।

इस नुकसान से विश्व भर की पुनर्बीमा कंपनियों की प्राइसिंग पर जरूर असर पड़ेगा। करीब 60-70 फीसदी। हम 31 मार्च तक प्राइसिंग और दूसरी चीजों के बारे को एनालाइज कर लेंगे।

नुकसान जरूर हुआ है लेकिन हमें प्राइसिंग बढ़ाते रहने की जरूरत नहीं है। इन हमलों के बाद ज्यादा लोग यह कवर लेंगे और इससे वॉल्यूम बढ़ेगा और हमारा कोष भी काफी बढ़ सकता है।

पिछले आठ सालों में जबसे जीआईसी को भारतीय पुनर्बीमा कंपनी के तौर पर रीडेजिगनेट किया गया, तब से क्या क्या बदलाव हुए और भविष्य के लिए क्या स्ट्रैटजी बनाई जा रही है?

जब बाजार खुला तो कई नई कंपनियां आईं और हमने उन्हे रीइंश्योरेंस सपोर्ट मुहैया कराया, खासकर निजी बीमा कंपनियों को हालांकि उनके पास ज्यादा कैपिटल नहीं थी।

लंदन, मॉस्को और दुबई में अपने कार्यालय खोलने के बाद जीआईसी एक ऐसे मुकाम पर पहुंच गई और बाजार में वही पसंदीदा पुनर्बीमा कंपनी बन गई। हम दुनिया की 16वीं सबसे बड़ी पुनर्बीमा कंपनी हैं और एविएशन के धंधे में पांचवीं सबसे बड़ी।

अगले पांच सालों में हमें उम्मीद है कि हमारा 50 फीसदी कारोबार अंतरराष्ट्रीय कारोबार से ही आएगा जो फिलहाल 27 फीसदी है। हम एविएशन, एनर्जी और गैर परंपरागत वित्तीय कवर जैसे क्रेडिट इंश्योरेंस में विशेषज्ञता हासिल कर रहे हैं।

हम जीवन बीमा जोखिम और तकाफुल (शरियत के मुताबिक बीमा) की ओर भी बढ़ रहे हैं। हमने दुबई में इसका काम शुरू भी कर दिया है और महीने भर में औपाचरिक तौर पर इसे शुरू करने जा रहे हैं।

मौजूदा समय में भारतीय कंपनियों को अपने दस फीसदी जोखिम का कारोबार जीआईसी को देना होता है, इस शर्त के घटने से कारोबार पर क्या असर हो सकता है?

कंपनियां जरूरी दस फीसदी के स्तर से ज्यादा ही कारोबार दे रही हैं, वे इसे वॉलेन्टरी कोटा कहती हैं, वे हमारे साथ काम करने में ज्यादा सुविधा महसूस करती हैं क्योंकि हम स्थानीय स्थितियों को बेहतर समझते हैं।

सारी कंपनियां दस फीसदी की सीमा से ज्यादा जोखिम कारोबार दे रही हैं और कुछ तो 50-60 फीसदी दे रही हैं। अगर वे विदेशी कंपनियों के पास जाना चाहती हैं तो यह उनकी अपनी इच्छा होगी। हमें भी समस्या है क्योंकि कई कारोबार जो हमारे पास हैं, नुकसान वाले हैं क्योंकि उनके दावों का हमारा अनुभव अच्छा नहीं है।

आपने कहा कि सामान्य बीमा कवर पर छूट से अंतरराष्ट्रीय पुनर्बीमा कंपनियों की सोच पर असर पड़ रहा है। आपको क्या लगता है कब यह छूट जारी रहेगी?

जब तक कंपनियां नुकसान सहने की हालत में होंगी और पुनर्बीमा कंपनियां सपोर्ट कर सकेंगीं तब तक वे ऐसा करेंगीं।

यह समय की बात है। हालांकि कंपनियां अभी से रीटेल पर फोकस कर रही हैं लेकिन ऐसे ही चलता रहा तो अप्रैल में हमें अपना कमीशन कम करना होगा।

आप बाजार में निवेश से कैसे निपट रहे हैं, खासकर इक्विटी से?

हम इस समय काफी सतर्क हैं। कुछ शेयर तो सचमुच 30 से 40 फीसदी नीचे आ गए हैं। मार्केट वैल्यू भले ही घटी हो लेकिन इसका हमारी बैलेंसशीट पर  कतई असर नहीं पड़ा है लिहाजा हम बुक वैल्यू के साथ चलते हैं।

पहले हम इक्विटी में अपने निवेश की समीक्षा मासिक आधार पर करते थे, अब कई बार हर घंटे में करते हैं, हम डेट पर ज्यादा फोकस कर रहे हैं।

तो क्या आपके लाभ पर भी असर पडेग़ा?

पिछले साल निवेश से हमारी आय 2000 करोड़ रुपए थी हालांकि अंडरराइटिंग के नुकसान 900 करोड़ के थे। इस साल इंवेस्टमेंट इनकम कम होगी लेकिन मुनाफे पर ज्यादा असर नहीं होगा।

एआईजी जैसे विश्व की बड़ी कंपनियों के संकट का क्या असर होगा?

हम एक सॉवरिन रेटेड कंपनी हैं। काफी कारोबार हमारे पास शिफ्ट हो रहा है, खासकर इस क्षेत्र और अफ्रीका का और हम इसे अवसर मानते हैं।

हम अंडर लीवरेज्ड हैं क्योंकि हमारे असेट 10 अरब डॉलर के हैं, नेटवर्थ 6000 करोड़ की है और सॉल्वेंसी मार्जिन 4.6 का है जबकि जरूरत केवल 1.5 की है लेकिन हमें चुनींदा और सतर्क रहना होगा।

First Published - December 25, 2008 | 8:54 PM IST

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