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नए वर्ष में फीकी रहेगी आईपीओ बाजार की चमक

Last Updated- December 08, 2022 | 11:05 AM IST

पिछले साल जब शेयर बाजार नई ऊंचाइयों को छू रहा था, तब बाजार में आईपीओ की बाढ़ सी आई थी और इश्यू हाथोंहाथ बिक रहे थे, जबकि इस साल आईपीओ तो खूब आए लेकिन बाजार की मंदी के मद्देनजर ज्यादातर को नाकों चने चबाने पड़े।


इस साल आए आईपीओ में से 90 फीसदी के करीब आज अपने इश्यू प्राइस से भी नीचे कारोबार कर रहे हैं। और मौजूदा माहौल को देखते हुए आने वाले साल में भी लगता है आईपीओ का बाजार ठंडा ही रहेगा।

इस साल मेगा आईपीओ लाने वाले अनिल अंबानी समूह की कंपनी रिलायंस पावर भी सेंसेक्स के जनवरी के सर्वोच्च स्तर से गोता लगाकर 10,000 के नीचे पहुंच जाने के बाद के साथ ही मंदी की गिरफ्त में आ गई।

बोनस के एडजस्टमेंट के बाद निवेशकों को 281.25 के भाव पर पड़ा यह शेयर आज 117 रुपए के आसपास डोल रहा है यानी करीब साठ फीसदी की गिरावट। इस साल ऐसे भी आईपीओ आए जो अपने इश्यू भाव से करीब नब्बे फीसदी फिसल गए हैं।

इस साल आए करीब 44 आईपीओ में से केवल चार ही ऐसे हैं जो अपने इश्यू भाव से ऊपर हैं। बाकी सारे ही अपने इश्यू भाव से नीचे धक्के खा रहे हैं।

रिलायंस पावर के अलावा गैमन इंफ्रा., ऑनमोबाइल ग्लोबल, आरईसी और आईआरबी इंफ्रा. जैसे आईपीओ भी अपने इश्यू भाव से 50-30 फीसदी कमजोर कारोबार कर रहे हैं।

इस साल कुल 19,360 करोड़ रुपए के आईपीओ बाजार में आए जो पिछले साल यानी 2007 के 40,000 करोड़ से 51 फीसदी कम हैं। अगर इसमें रिलांयस पावर के 12,000 करोड़ रुपये के आईपीओ को शामिल न किया जाता तो यह गिरावट और अधिक हो सकती थी।

विश्लेषकों का मानना है कि शेयर बाजार में जबरदस्त गिरावट के रुख की वजह से आईपीओ बाजार में निवेशकों की रुचि खत्म हो गई है और ज्यादातर लोगों का मानना है कि अगला वर्ष आईपीओ बाजार के लिए बेहद कठिनाइयों भरा रह सकता है।

रिलांयस पावर को अलग करने के बाद इस साल कुल आईपीओ वॉल्यूम 2007 की तुलना में 20 फीसदी (7,675.97 करोड़ रुपये) रहा। कुल नए आईपीओ की संख्या भी इस साल 2007 के 103 और 2006 के 79 के मुकाबले गिरकर 44 पर जा पहुंची है। वैश्विक वित्त बाजार में मंडराए गहरे संकट के बादल के चलते शेयर बाजारों की हालत खराब हो गई है।

भारतीय शेयर बाजारों को अपने इतिहास की सबसे बड़ी गिरावट का सामना करना पड़ा। विशेषज्ञों का तो कहना है कि यह साल इक्विटी के लिए सबसे खराब साल रहा। बीएसई का बेंचमार्क सूचकांक जनवरी में अपने 21,000 अंकों के स्तर से फिसलकर अक्टूबर में 8,000 से भी नीचे चला गया।

इस समय सेंसेक्स 9000 और 10,000 के बीच डोल रहा है। बाजार की हालत को खराब करने में विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) का सबसे बड़ा हाथ रहा। उन्होंने गिरते बाजार में इस साल 13 अरब डॉलर निकालकर बाजार की मुश्किलों को और बढ़ा दिया।

उन्होंने यह कदम वैश्विक बाजार में तरलता के संकट के चलते उठाया। विदेशी निवेशकों ने भी इस मंदी पर कम घी नहीं डाला, इस साल इन निवेशकों ने 13 अरब डॉलर निकाले हैं, इतनी बड़ी राशि के वापस बाजार में जल्दी आने की उम्मीद कम ही है।

लिहाजा विश्लेषकों का मानना है कि 2009 में बाजार की स्थिति में सुधार होने की गुंजाइश कम ही है क्योंकि हर तरफ से नकारात्मक रुझान सामने आ रहे हैं। इस बदहाली के कारण कंपनियों के प्रमोटरों को फंड जुटाने के लिए दूसरे स्रोत ढूंढने पर विवश कर दिया है।

इन विकल्पों में प्राइवेट इक्विटी निवेश शामिल है अब इनकी संख्या में इजाफा होने की उम्मीद है। 2008 में तीन प्रमुख कंपनियों को अपने आईपीओ वापस लेने को भी मजबूर होना पड़ा क्योंकि उन्हें उम्मीद के अनुसार रिस्पांस नहीं मिला।

इन कंपनियों रियालिटी फर्म एम्मार एमजीएफ लैंड, वोकार्ड हास्पिटल और एसवीईसी कंस्ट्रक्शन शामिल है। इसके साथ  ऐसी कई कंपनियां है जो सेबी से सहमति मिलने के बाद भी आईपीओ नहीं लाई हैं। वे बाजार की स्थिति सुधरने तक रुकना चाहती हैं।

अदानी पावर और फ्यूचर वेंचर्स जैसी कंपनियों ने मंजूरी तो ले ली लेकिन तय समय सीमा के अंदर बाजार में उतरने की हिम्मत नहीं जुटा सकीं और उनकी मंजूरी की मियाद ऐसे ही खत्म हो गई।

इसके अलावा एनएचपीसी और ऑयल इंडिया जैसी कई कंपनियां हैं जो सेबी की मंजूरी जेब में लिए बैठी हैं कि कब बाजार सुधरे और वे पैसा जुटाएं।

गनीमत है जो सेबी ने ऐसी मंजूरियों की मियाद बढ़ाकर एक साल कर दी है यानी कंपनियां मंजूरी मिलने के एक साल तक बाजार में उतर सकती हैं। हालांकि सेबी के आंकड़ों के मुताबिक सितंबर के बाद एक भी फाइनल ड्रॉफ्ट ऑफर फाइल नहीं किया गया है।

First Published - December 25, 2008 | 9:04 PM IST

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