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व्यापार गोष्ठी: ब्याज दरों का कारोबार से नाता

Last Updated- December 05, 2022 | 10:42 PM IST

कोई बीच का रास्ता चुनना होगा


7.41 फीसदी की महंगाई दर सरकार को ब्याज दरों में बढ़ोतरी करने के लिए प्रेरित कर रही है पर इस संभावित बढ़ोतरी को झेलने के लिए कारोबारी वर्ग बिल्कुल भी तैयार नहीं है।


इसकी वजह यह है कि पहले ही ऊंची ब्याज दरों की वजह से औद्योगिक विकास की रफ्तार सुस्त हो चुकी है।फिर भी यदि बढ़ोतरी होती है तो औद्योगिक उत्पादन में और गिरावट आ सकती है। इसका सीधा असर आपूर्ति पर पड़ेगा, जिससे महंगाई की समस्या और ज्यादा गंभीर बन जाएगी।


औद्योगिक उत्पादन में जनवरी के मुकाबले फरवरी में हुए सुधार और आम आदमी की मौजूदा जरूरतों को ध्यान में रखते हुए तरलता पर लगाम लगाना तत्कालीन दृष्टि से उचित है। दीर्घकालीन दृष्टि से भी ब्याज दरों में बढ़ोतरी निवेश की राह में बहुत बड़ी बाधा है। भारत की अर्थव्यवस्था में निवेश के महत्व को नकारा नहीं जा सकता। इसलिए सरकार को कोई बीच का रास्ता अपनाना चाहिए।


गौरव जैन, ईएफ-246, मंडी रोड, बारदाना बाजार, जालंधर(पंजाब)


तात्कालिक हथियार के रूप में सही


भारत में आसमान छूती महंगाई को नियंत्रित करने के लिए सरकार ने कड़े कदम उठाने के संकेत दिए हैं। इसके लिए मुख्य उपाय बाजार में मुद्रा के प्रवाह को कम करने का होगा। आरबीआई ने सीआरआर को बढ़ा दिया है, ऐसे में ब्याज दरों का बढ़ना लाजिमी है। आसमान छूती महंगाई के बीच ब्याज दर के बढ़ने के संकेत कारोबारियों के लिए कोढ़ में खाज का काम करेगा।


रियल एस्टेट और ऑटो क्षेत्र ब्याज दर से सबसे ज्यादा प्रभावित होता है। अधिक ब्याज दर के चलते घर और कार के खरीदार कम हो जाएंगे। बढ़ती महंगाई से शेयर बाजार में इनकी चाल पहले ही सुस्त हो गयी है। ब्याज दर में वृद्धि के हथियार का उपयोग तात्कालिक उपाय के रूप में करना चाहिए जबकि इसके स्थायी समाधान के लिए दूरगामी नीतियां बनायी जानी चाहिए।


विवेक कुमार सिंह, सहायक प्रबंधक, एसबीआई,सिलीगुड़ी-734001


सस्ता लोन उपलब्ध कराया जाए


रोज इस्तेमाल में आने वाली चीजें जैसे आटा, चावल, मैदा, दाल, तेल आदि पर साल 2005-06 के दौरान राष्ट्रीयकृत बैंकों की ब्याज दर 10 से 11 फीसदी के बीच थी। पर महंगाई कम करने के लिए आरबीआई ने ब्याज दर में बढ़ोतरी की। इसके बाद राष्ट्रीयकृत बैंकों ने अपना पी.एल.आर.14 फीसदी से बढ़ाकर 15 फीसदी कर दिया। यह दर उन उत्पादक कारखानों पर लागू हो रही है, जो उपभोक्ता सामान बनाते हैं।


बैंक जहां विलासी वस्तुओं जैसे कार, टीवी, फ्रिज आदि वस्तुओं पर 8 फीसदी की ब्याज दर से लोन उपलब्ध करा रही है। दूसरी ओर होम लोन पर ब्याज दर बढ़कर फिलहाल 12.5 फीसदी तक पहुंच चुकी है। महंगाई से राहत दिलाने के लिए आरबीआई को चाहिए कि कृषि आधारित लघु उद्योग, कुटीर उद्योग और केवीआईसी जैसे उद्योगों को अधिकतम 10 फीसदी की ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध कराये।


भरत कुमार जैन, अध्यक्ष, मध्य प्रदेश कृषि उद्योग संघ, इंदौर-452001,मध्य प्रदेश


हम तो बर्बाद हो जाएंगे


बैंक ने अगर अपनी ब्याज दरों को बढ़ाया तो हम मध्यम तबके के कारोबारी ही सबसे पहले इसकी चपेट में आकर बर्बाद हो जाएंगे। हम कोई बड़े कारोबारी तो हैं नहीं, जिनके पास अपनी पूंजी होती है। बड़े खिलाड़ी तो इसकी चपेट में आने से रहे। उन लोगों के पास काफी दौलत होती है, इसलिए अगर बैंकों ने ब्याज दर बढ़ा भी दी तो भी उनका कुछ बिगड़ेगा नहीं। लेकिन हम जैसे लोग-बाग तो तबाह हो जाएंगे।


हमारे पास अपनी कैपिटल तो होती नहीं है और हम बैंकों के भरोसे ही काम चलाते हैं। हमारे लिए तो ब्याज दरों का बढ़ना काफी बड़ा धक्का साबित होगा। हमारा कुल मुनाफा ही मुश्किल से 4-5 फीसदी का होता है, इसी में हमें अपना घर भी चलना है और अपना धंधा भी। ऐसे में अगर सरकार ने इंटरेस्ट रेट को बढ़ा दिया, तो हम क्या करेंगे? हमारी सरकार से यही इल्तजा है कि वह ब्याज दरों को नहीं बढ़ाए। 


बृज मोहन विज, अध्यक्ष, दिल्ली व्यापार संघ


आम-खास सबके लिए घातक है


कुकुरमुत्ते की तरह ब्याज दरों में हो रही बढोतरी को कारोबारी सहन नहीं कर पायेंगे क्योंकि ब्याज दरें बढ़ने पर कारोबारी को सामान की कीमतें बढानी होगी। इसका अप्रत्यक्ष प्रभाव उपभोक्ताओं पर पड़ेगा। उपभोक्ता सामान की अत्यधिक कीमत के चलते उसे खरीद नहीं पायेगा जिससे उत्पाद की बिक्री प्रभावित होगी। उसे ब्याज तो क्या लागत मूल्य पाने के भी लाले पड ज़ायेंगे। यानी बढ़ती हुई ब्याज दरें न केवल कारोबारी बल्कि आम आदमी के लिए भी घातक है।


मनोज कुमार बजेवा, गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय, हरिद्वार


कोई दूसरा रास्ता खोजे सरकार


खाद्य पदार्थों की कीमत पर ब्याज दरों में कमी का कोई खास असर नहीं पड़ने वाला। क्योंकि वायदा कारोबारियों ने कीमत को ऊंची रखने में अपनी भरपूर ताकत लगा दी है। वैसे जो कारोबार अभी मंदी की चपेट में आनेवाले हैं, उस पर पड़े ब्याज के बोझ तले मंझोले और छोटे कारोबारियों की सांस टूटनी निश्चित है। सरकार स्टील और सीमेंट के दाम को पिछले 6 माह से कम करने के प्रयास कर रही है पर इनकी कीमतें थमने का नाम ही नहीं ले रही हैं। इसमें कोई मिलीभगत जरूर है।


हमारे देश में ऐसे मामलों में शायद ही कोई कार्रवाई होती है। सरकार ने पिछले 5 सालों में सेवा कर, एसटीटी और एफबीटी जैसे करों से काफी धन वसूला है और अब यही संचित धनराशि महंगाई की वजह बनी हुई है। सरकार को चाहिए कि वह ब्याज दर बढाने के अलावे कोई दूसरा रास्ता तलाशे।


मनोज मोदी, भोपाल


मुश्किल में होंगे लघु और मध्यम सेक्टर


ज्यादातर छोटे और मंझोले उद्योगों के पास पूंजी की कमी होती है। ऐसी स्थिति में अपनी फैक्ट्री लगाने से लेकर ऑर्डर पूरे करने तक हर स्थिति में ये उद्योग बैंकों या वित्तीय संस्थाओं पर आश्रित होते हैं। ऐसे में यदि बैंक दरें बढ़ती हैं तो ये लघु और मध्यम सेक्टर मुश्किल में पड़ जाएंगे।


रंजन मिमानी, प्रमोटर-कनमानी वायर्स और प्रमुख-लघु एवं मध्यम उद्योग प्रकोष्ठ


मजबूत केलिए ठीक, छोटे के लिए बुरा


जब ब्याज दर बढ़ती या घटती है तब व्यापारी वर्ग ही इससे सबसे ज्यादा प्रभावित होता है। बैंकों की नीतियों के चलते यदि कारोबारी समूह ऋण लेता है तो उसे ज्यादा ब्याज चुकाना होता है। जबकि वही कारोबारी समूह अपना ध्यान किसी बैंक में निवेश करने पर लगाता है या उसे कम ब्याज मिलता है यानि उसे नुकसान उठाना पड़ता है। आर्थिक तौर पर मजबूत कारोबारी तो इसे झेल भी लेता है पर छोटे व्यापारी इसके बोझ तले दब जाते हैं। यही वजह ब्याज दर के उतार-चढाव के साथ है।


अनुराग द्विवेदी, इंस्टीटयूट ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नॉलजी, लखनऊ


शुरू हो सकती है आर्थिक मंदी


ब्याज दरें बढ़ने से सामान की लागत बढ़ जाती है, जिससे सामान बेचने में कठिनाई होती है। आज विदेशों में कर्ज काफी सस्ता होने के कारण वहां का माल काफी सस्ता होता है। इसका घरेलू कारोबार पर काफी खराब असर पड़ता है। कंपनियों के मुनाफे में गिरावट आने लगती है। सरकार को कर कम मिलता है। कुल मिलाकर बात यही है कि इससे देश की विकास दर में गिरावट आएगी और आर्थिक मंदी का दौर शुरू हो सकता है।


रतन लाल अग्रवाल, आर. आर. ज्वैलर्स प्रा. लिमिटेड, कोलकाता


कारोबारी हैं इसे झेलने में सक्षम


कारोबारी का कारोबार हमेशा मांग सिद्धांत पर काम करता है जिसे हम निवेश मांग कहते हैं। यह निवेश मांग ब्याज की दर और पूंजी की सीमांत उत्पादकता पर निर्भर करता है। यद्यपि ब्याज की दर महत्वपूर्ण है, लेकिन उससे भी महत्वपूर्ण पूंजी की सीमांत उत्पादकता है। यह मुख्यत: लाभ की आशंसाओं(पूंजी की लागत और प्रत्याशित आय) पर ही निर्भर करता है और यही लाभ की आशंसायें मानो सब कुछ है क्योंकि इसी के इर्द-गिर्द पूरा कारोबारी सिद्धांत चक्कर लगाता है।


इस समय देश में महंगाई दर अपने चरम पर है और ऐसी स्थिति का सबसे ज्यादा लाभ कारोबारियों को ही होता है। इससे स्पष्ट है कि लाभ की आशंसाओं में पर्याप्त चमक है। ऐसे में अगर आरबीआई ब्याज दर में कुछ वृद्धि करता है तो इससे कारोबारियों पर मार तो पड़गी ही।


परिणाम यह होगा कि उनकी लागत में वृद्धि तो होगी पर लाभ में कमी भी होगी। पर यह कमी इतनी नहीं होगी कि उनकी लागत ही न निकल पाये। जाहिर है कि ब्याज में होने वाली वृद्धि झेलने में कारोबारी सक्षम हैं। उन्हें यह भी पता है कि इस समय भारत से अच्छा बाजार कहीं और नहीं मिल सकता।


अमित कुमार यादव, 82 बी6 सी,रसूलाबाद, तेलियरगंज, इलाहाबाद-211004


पुरस्कृत पत्र


आग में घी होगी ब्याज दरों में वृद्धि


वित्त मंत्री का यह बयान कि महंगाई को नियंत्रित करने के लिए रिजर्व बैंक जरूरी कदम उठा सकता है, से जाहिर होता है कि बैंकों द्वारा भी ब्याज दरों में बढ़ोतरी की उम्मीद है। इसके परिणामस्वरूप बाजार से 22 हजार करोड़ की तरलता कम हो जाएगी। इसका सबसे अधिक दुष्प्रभाव औद्योगिक विकास दर और विनियोग पर पड़ता है।


इससे रियल्टी, ऑटो और कंज्यूमर गुड्स सेक्टर में मांग में कमी आ जाएगी। उक्त क्षेत्रों में कमी और महंगाई में वृद्धि के कारण एक ओर उपभोक्ता की क्रयशक्ति कम हो जाएगी वहीं दूसरी ओर उत्पादक सामानों की मांग में कमी होने से विकास दर में कमी हो जाएगी। ऊंची ब्याज दर के चलते देश की विकास दर 2008-09 में कम हो सकती है।


गीतांजलि शर्मा, प्रवक्ता(अर्थशास्त्र), मालवीय नेशनल इंस्टीटयूट ऑफ टेक्नॉलजी, जयपुर


मझोले कारोबारी के तो पेट पर लात होगी


मिडिल लेवल के हमारे जैसे जो व्यापारी होते हैं, उन्हें तो बैंकों से कर्जे की काफी जरूरत होती है। हमारा तो सारा काम ही बैंक ओवर ड्राफ्ट पर चलता है। हमें माल खरीदना है, तो बैंक लोन की जरूरत होती है। अपनी दुकान या शोरूम का रेनोवेशन करना है, तो बैंकों से लोन की जरूरत होती है। ऊपर से हमारा मुनाफा भी कोई 50-60 फीसदी का तो होता नहीं है। हम तो मुश्किल से दो-चार प्रतिशत का ही मुनाफा कमा पाते हैं। हम कोई बड़े उद्योगपति या कारोबारी तो हैं नहीं, जो मोटी कमाई करते हैं।


देवराज बावेजा, अध्यक्ष, सदर बाजार व्यापार मंडल, दिल्ली


कई परियोजनाओं को लगेगी गहरी चोट


अर्थव्यवस्था के मौजूदा हालात इस समय चिंताजनक हैं। ब्याज दर में होने वाली बढ़ोतरी से उद्योग जगत में चल रही कई परियोजनाएं बाधित होंगी। उद्योगों के लिए पिछले तीन सालों में सब कुछ अच्छा रहा है।


यहां तक कि डॉलर के मुकाबले रुपये में आयी मजबूती से उत्पन्न स्थिति को भी हमारे देश के निर्यातकों ने अच्छे से नियंत्रित कर लिया। वैश्विक मंदी और ब्याज दरों में होने वाली वृद्धि घातक साबित होने वाला है।  इस मामले पर सरकार की गंभीर निगाहें हैं। ऐसा लगता है कि इसका बैंकों के शेयर पर बुरा असर पड़ेगा।


पी. एस. बाजपेयी, एमडी और सीईओ, अवध टेक्सवुड सिस्टम्स(प्रा.)लिमिटेड, लखनऊ


पूरी अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा असर


ब्याज दर में हुई बढ़ोतरी सभी को प्रभावित करेगी पर इसका सबसे ज्यादा असर उद्योगपतियों और कारोबारियों पर पड़ेगा। हमारी अर्थव्यवस्था काफी तेजी से आगे बढ़ रही है और तकरीबन सभी उद्योगपति और अमीर ही बन रहे हैं। ऐसी स्थिति में ब्याज दर में होने वाली यह वृद्धि केवल विकास दर को ही प्रभावित करेगी। मुझे लगता है कि इसकी वजह से निजी परियोजनाएं और देश की आर्थिक तरक्की भी प्रभावित होगी। होम लोन और ऑटो लोन भी और महंगे होंगे।


डॉ ओ.पी.शर्मा, विभागाध्यक्ष, भूगोल विभाग, डीएवी पीजी कॉलेज, लखनऊ


देश की प्रगति की रफ्तार घट जाएगी


ब्याज दरें अब बढ़ेंगी, यह सोच हुए बेचैन,
कारोबारी जगत में, छिन गया दिल का चैन।
जो खाली है कोष, ब्याज दर बढ़ने से भर जायेगा,
कारोबारी आम-आदमी, सहन नहीं कर पायेगा।
महंगाई, फिर दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ जायेगी,
कह ‘वात्सल्य’ रफ्तार प्रगति की, धीरे-धीरे घट जायेगी।


गुलाब वात्सल्य, विकास ऑफसेट प्रिंटर्स, बुधवारी बाजार, छिंदवाड़ा


बकौल विश्लेषक


कारोबारियों के दर्द को ही दोगुना करेगा यह इलाज


फिलहाल हम जिस दौर से गुजर रहे हैं, वहां हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौती मुद्रास्फीति की आसमान चढ़ती दरों पर काबू पाना है। आए दिन ब्याज दरों को बढ़ाना या कम करने का कोई औचित्य नहीं बनता है। रिजर्व बैंक द्वारा संभावित ब्याज दरों में बढ़ोतरी से चीजें बनने की बजाए बिगड़ेंगी। अगर आरबीआई ब्याज दर बढ़ाता है, तो देश की तमाम बड़ी, छोटी और मझोली कंपनियों को फायदे की जगह और अधिक नुकसान का ही सामना करना पड़ेगा।


एक तरफ तो कारोबार और कारोबारियों पर मंहगाई की मार पड़ ही रही है, ब्याज दरों में बढ़ोतरी से उनका दर्द दोगुना हो जाएगा। कंपनियों के मुनाफे पर भी जबरदस्त असर पड़ेगा। हमारी आर्थिक विकास दर मुख्य रूप से निवेश पर निर्भर करती है। वह निवेश या तो शेयर बाजार में किया जाता है या फिर रियल एस्टेट में। ऐसी स्थिति में जब स्टॉक मार्केट भी बहुत अच्छा नहीं चल रहा है, ब्याज दरों के बढ़ाए जाने से निवेशक स्टॉक मार्केट से पैसा निकाल कर बैंकों में डाल देंगे।


लिहाजा, हर दृष्टि से आरबीआई द्वारा उठाए जाने वाला यह संभावित कदम कारोबार और कारोबारियों के लिए घाटे का सौदा होगा। बहरहाल, आरबीआई द्वारा सीआरआर (कैश रिजर्व रेशियो) का बढ़ाया जाना एक सराहनीय कदम है। सीआरआर बढ़ाया जाना इसलिए भी जरूरी था, क्योंकि बाजार में तरलता बहुत ज्यादा हो गई थी।


बीते 15 सालों में हम लोगों ने कृषि पर बहुत कम ध्यान दिया है, जिसका खामियाजा आज हम लोगों को भुगतना पड़ रहा है। देश में मुद्रास्फीति बढ़ने के पीछे सिर्फ मुद्रा का अनियंत्रित होना ही नहीं माना जाना चाहिए बल्कि इसका मुख्य कारण सप्लाई व उत्पादन में कमी आना भी है। दूसरे शब्दों में कहें तो मांग और आपूर्ति के बीच बहुत ज्यादा असंतुलन बना हुआ है।


प्रो. बी. एल. पंडित, दिल्ली स्कूल ऑफ इकनॉमिक्स


महज संभावना से ही बन गया है हमारे ऊपर दबाव


अगर ब्याज की दरों में बढ़ोतरी होती है तो उसका सबसे अधिक प्रभाव रियल एस्टेट पर पड़ेगा। रियल एस्टेट का बाजार 270 उद्योगों से जुड़ा है और हर उद्योग कर्ज से जुड़ा होता है। ब्याज दरों में बढ़ोतरी से उत्पादन लागत बढ़ जाती है, जिसका सीधा खामियाजा कारोबारियों को भुगतना पड़ता है। इससे खरीदारों में भी कमी आती है।


ब्याज दरों में बढ़ोतरी से रियल एस्टेट के नए खरीदार मकान खरीदने से पहले कई बार सोचते हैं। बैंक से कर्ज लेकर खरीदारी करने वाले सोचते हैं कि उनकी मासिक किस्त काफी अधिक हो जाएगी और मकान भी पहले के मुकाबले अधिक दाम पर मिलेगा। ऐसे में खरीदार विचार पर विचार करने लगते हैं। इस प्रकार बिक्री की रफ्तार धीमी हो जाती है।


जिन्होंने पहले से कर्ज लेकर मकान खरीद रखा है, वे भी ब्याज दर बढ़ने से मासिक किस्त बढ़ने के कारण कोई नयी खरीदारी के बारे में नहीं सोचते हैं। कुल मिलाकर देखा जाए तो ब्याज की दर बढ़ने से या इसकी संभावना से बाजार पर मनौवैज्ञानिक असर पड़ता है। खरीदने वाला या बेचने वाला दोनों ही मनोवैज्ञानिक दबाव में आ जाते हैं। बाजार नकारात्मक रुख की चपेट में आ जाता है।


इसके अलावा कार, एसी, मैन्युफैक्चर क्षेत्र व व्हाइट गुड्स की लागत ब्याज दर बढ़ने से बढ़ जाएगी। चूंकि ये जरूरी चीजों की श्रेणी में नहीं आते हैं तो निश्चित रूप से इनके कारोबार पर इसका प्रतिकूल असर पड़ेगा। यह बात भी सही है कि मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र में इसका असर तुरंत नहीं पड़ने वाला है। कुल मिलाकर ब्याज दरों में बढ़ोतरी की संभावना से कारोबारी अभी से दबाव में नजर आ रहे हैं। सीआरआर में बढ़ोतरी कर सरकार ने इस तरफ इशारा कर दिया है।


बी.पी. ढाका, सीओओ, पार्श्वनाथ डेवलपर्स


…और यह है अगला मुद्दा


सप्ताह के ज्वलंत विषय, जो कारोबारी और कारोबार पर गहरा असर डालते हैं। ऐसे ही विषयों पर हर सोमवार को हम प्रकाशित करते हैं व्यापार गोष्ठी नाम का विशेष पृष्ठ। इसमें आपके विचारों को आपके चित्र के साथ प्रकाशित किया जाता है। साथ ही, होती है दो विशेषज्ञों की राय।


इस बार का विषय है वायदा कारोबार से ही बढ़ रही है महंगाई ? अपनी राय और अपना पासपोर्ट साइज चित्र हमें इस पते पर भेजें:बिज़नेस स्टैंडर्ड (हिंदी), नेहरू हाउस, 4 बहादुरशाह जफर मार्ग, नई दिल्ली-110002, फैक्स नंबर- 011-23720201


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First Published - April 21, 2008 | 12:30 AM IST

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