facebookmetapixel
Test Post कैश हुआ आउट ऑफ फैशन! अक्टूबर में UPI से हुआ अब तक का सबसे बड़ा लेनदेनChhattisgarh Liquor Scam: पूर्व CM भूपेश बघेल के बेटे चैतन्य को ED ने किया गिरफ्तारFD में निवेश का प्लान? इन 12 बैंकों में मिल रहा 8.5% तक ब्याज; जानिए जुलाई 2025 के नए TDS नियमबाबा रामदेव की कंपनी ने बाजार में मचाई हलचल, 7 दिन में 17% चढ़ा शेयर; मिल रहे हैं 2 फ्री शेयरIndian Hotels share: Q1 में 19% बढ़ा मुनाफा, शेयर 2% चढ़ा; निवेश को लेकर ब्रोकरेज की क्या है राय?Reliance ने होम अप्लायंसेस कंपनी Kelvinator को खरीदा, सौदे की रकम का खुलासा नहींITR Filing 2025: ऑनलाइन ITR-2 फॉर्म जारी, प्री-फिल्ड डेटा के साथ उपलब्ध; जानें कौन कर सकता है फाइलWipro Share Price: Q1 रिजल्ट से बाजार खुश, लेकिन ब्रोकरेज सतर्क; क्या Wipro में निवेश सही रहेगा?Air India Plane Crash: कैप्टन ने ही बंद की फ्यूल सप्लाई? वॉयस रिकॉर्डिंग से हुआ खुलासाPharma Stock एक महीने में 34% चढ़ा, ब्रोकरेज बोले- बेचकर निकल जाएं, आ सकती है बड़ी गिरावट

सियासी हलचल: दल-बदल विरोधी कानून में अब बदलाव जरूरी

कई लोग कहते हैं कि अलेमाओ राजनीति के 'आया राम गया राम' ब्रांड का प्रमुख उदाहरण है, जो 1960 और 1970 के दशक में आम बात थी।

Last Updated- August 29, 2023 | 8:47 PM IST
Political movement: change in anti-defection law is now necessary

बीते हफ्ते गोवा के पूर्व मुख्यमंत्री चर्चिल अलेमाओ ने अजित पवार के नेतृत्व वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के बड़े नेता प्रफुल्ल पटेल से मुलाकात की। उन्होंने तृणमूल कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया और अब माना जा रहा है कि वह फिर से राकांपा में शामिल होने के लिए बातचीत कर रहे हैं। कई लोगों का मानना है कि इन्ही कारणों से भारत के दल-बदल निरोधक कानून में संशोधन की जरूरत आ गई है।

यह कहना कमतर होगा कि अलेमाओ एक ढुलमुल राजनेता हैं। वह पहली बार साल 1989 में कांग्रेस के टिकट पर विधानसभा के सदस्य (विधायक) चुने गए थे। तीन महीने बाद ही, शायद इसलिए कि उनको मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया गया था, अलेमाओ ने बगावत कर दी और प्रतापसिंह राणे की सरकार को गिरा दिया। भले ही वह 18 दिन के लिए बने, लेकिन प्रगतिशील लोकतांत्रिक मोर्चा सरकार के नेतृत्व में वह गोवा के पहले ईसाई मुख्यमंत्री बने।

साल 1996 में अलेमाओ यूनाइटेड गोवा डेमोक्रेटिक पार्टी के टिकट पर दक्षिणी गोवा से जीत हासिल कर लोकसभा पहुंचे। वह फिर 1999 में कांग्रेस में लौट आए और अपनी विधानसभा सीट पर जीत हासिल की। वह साल 2002 के विधानसभा चुनाव में हार गए मगर साल 2004 में कांग्रेस के सांसद बन गए। उन्होंने फिर कांग्रेस का दामन छोड़ दिया और साल 2007 के गोवा विधानसभा चुनाव में सेव गोवा फ्रंट पार्टी से चुनावी मैदान में उतरे। बाद में कांग्रेस ने उन्हें प्रदेश मंत्रिमंडल में शामिल किया और उनको मंत्री बनाया।

साल 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान उन्होंने कांग्रेस पार्टी से अपनी बेटी के लिए टिकट मांगा। नहीं मिलने पर उन्होंने फिर से पार्टी छोड़ दी और कुछ ही दिनों में तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) में शामिल हो गए और उसके टिकट पर चुनाव लड़ा। भाजपा के प्रत्याशी से वह चुनाव हार गए और फिर उन्होंने टीएमसी से भी इस्तीफा दे दिया। साल 2016 में उन्होंने राकांपा का दामन थाम कर बेनौलिम विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा और गोवा विधानसभा में राकांपा के इकलौते विधायक बने। साल 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले उन्होंने राकांपा का तृणमूल कांग्रेस में विलय कर दिया और विधानसभा में तृणमूल के इकलौते विधायक बन गए। इकलौते राकांपा विधायक होने की वजह से उन पर दल-बदल निरोधक कानून लागू नहीं हुआ।

Also read: सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी की तरफ चरणबद्ध तरीके से बढ़ते कदम

कई लोग कहते हैं कि अलेमाओ राजनीति के ‘आया राम गया राम’ ब्रांड का प्रमुख उदाहरण है, जो 1960 और 1970 के दशक में आम बात थी। इसके परिणामस्वरूप संविधान में संशोधन किया गया और दल-बदल निरोधक कानून (दसवीं अनुसूची) लागू हुआ।

फिर भी इससे दलबदल को सत्ता के एक महत्त्वपूर्ण तरीके के रूप में रोका नहीं जा सका है। उदाहरण के लिए, साल 2018 के कर्नाटक विधानसभा चुनाव में किसी भी दल को सरकार बनाने के लिए पर्याप्त संख्या में बहुमत नहीं मिला। पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च में लेजिस्लेटिव और सिविक इंगेजमेट इनिशिएटिव के प्रमुख चक्षु राय कहते हैं, ‘भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के बीएस येदियुरप्पा तीन दिन के लिए मुख्यमंत्री बने और बहुमत साबित नहीं कर पाने के कारण अंततः उन्हें इस्तीफा देना पड़ा।

इसके बाद जनता दल के एचडी कुमारस्वामी कांग्रेस के समर्थन से 13 महीने तक प्रदेश में मुख्यमंत्री पद पर काबिज रहे। दलबदल और इस्तीफों के कारण उनकी सरकार विधानसभा में विश्वास मत हार गई, जिसके बाद उन्हें भी इस्तीफा देना पड़ा। नतीजतन, येदियुरप्पा फिर से सत्ता में लौटे और दो साल तक प्रदेश की कमान संभाली।’ उन्होंने कहा कि मध्यप्रदेश में भी साल 2018 के अंत में विधानसभा चुनाव हुए थे। इसके बाद कांग्रेस नेता कमलनाथ ने अन्य दलों और निर्दलीय विधायकों के समर्थन से सरकार बनाई। लेकिन 13 महीनों के भीतर ही कांग्रेस विधायकों के इस्तीफों के बाद उनकी सरकार भी गिर गई।

चूंकि दल-बदल की सबसे अधिक मार कांग्रेस पार्टी पर ही पड़ी है इसलिए इस साल फरवरी में अपने रायपुर अधिवेशन में पार्टी ने घोषणा की कि सत्ता में लौटने पर वह दल-बदल निरोधक कानून को बदलने के लिए संविधान में संशोधन करेगी। साल 2014 के बाद से भाजपा ने बड़े पैमाने पर दलबदल कराया है। आरोप है कि भाजपा ने दूसरी पार्टी के विधायकों को खरीदा है और जनता द्वारा चुनी गई सरकारों को एक के बाद एक गिरा दिया है। कांग्रेस ऐसी प्रथाओं को खत्म करने के लिए संविधान में संशोधन की बात तो कर रही है मगर क्या संशोधन करेगी, इस बारे में स्पष्ट रूप से कुछ नहीं कह रही है।

लोकसभा के पूर्व महासचिव पीडीटी अचारी का कहना है कि कानून के कई पहलुओं की समीक्षा की जरूरत है। उदाहरण के लिए विलय का मुद्दा, जिसका आजकल काफी दुरुपयोग किया जा रहा है। अचारी ने कहा कि 10वीं अनुसूची के पैराग्राफ 4 के तहत, यदि विधायिका का कोई सदस्य दावा करता है कि उसकी मूल राजनीतिक पार्टी का किसी अन्य पार्टी में विलय हो गया है और वह और अन्य लोग जो पार्टी की कुल ताकत का दो-तिहाई हिस्सा हैं, उस पार्टी के सदस्य बन गए हैं तो वे सदस्यता के अयोग्य होने से बच जाएंगे। लेकिन दो-तिहाई विधायकों और मूल राजनीतिक दल दोनों को विलय के लिए सहमत होना होगा।

Also read: Opinion: कंपनियों के लिए अधिक पारदर्शिता सुनिश्चित करने का समय

हालांकि, इस प्रावधान की व्याख्या करने वाले हालिया अदालती फैसलों ने भ्रम को और बढ़ा दिया है। उदाहरण के लिए, गोवा विधानसभा के कांग्रेस सदस्यों के भाजपा में शामिल होने पर बंबई उच्च न्यायालय के गोवा पीठ के फरवरी 2022 के आदेश में कहा गया कि यदि दो-तिहाई विधायक किसी अन्य पार्टी में विलय करते हैं तो यह कानून के तहत विलय है और इसमें मूल राजनीतिक पार्टी के विलय की आवश्यकता नहीं होगी। इस आदेश ने दल-बदल के लिए द्वार खुले छोड़ दिए हैं।

लेकिन क्या भारत में दल-बदल विरोधी कानून केवल लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकारों को गिराने से रोकने के लिए ही मौजूद होना चाहिए? राय का कहना है कि कानून की प्रयोज्यता सरकारों को स्थिरता प्रदान करने के लिहाज से कम है और असंतुष्ट विधायकों से निपटने में पार्टी नेतृत्व के हाथों को मजबूत करने के बारे में अधिक है। उनका तर्क है कि मौजूदा कानून के मुताबिक, अगर विधायक स्वेच्छा से किसी पार्टी की सदस्यता छोड़ देते हैं तो उन पर उससे अलग होने का आरोप लगाया जा सकता है।

राय का कहना है, ‘इससे राजनीतिक दलों को अपने सांसदों और विधायकों को विधायिका से अयोग्य घोषित करने की धमकी देकर आंतरिक असंतोष को खत्म करने की अपार शक्ति मिलती है।’ चक्षु राय कहते हैं कि यह पार्टी के आंतरिक लोकतंत्र पर एक गंभीर बंधन है। बेशक, जब अलेमाओ की अगुआई वाली जैसी एक विधायक वाली पार्टियों की बात आती है तो यह कानून लागू नहीं होता है। हालांकि इससे अस्थिरता कम नहीं बल्कि अधिक हो सकती है। जैसे-जैसे लोकसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं, दल-बदल निरोधक कानून की गहन जांच की जरूरत है।

First Published - August 29, 2023 | 8:47 PM IST

संबंधित पोस्ट