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टिकाऊ विकास के लिए कार्यस्थल पर सुरक्षा जरूरी, NSE-500 कंपनियों के BRSR आंकड़े पेश करते हैं चिंताजनक तस्वीर

काम करने के सुरक्षित हालात उपलब्ध कराना नैतिक दायित्व भर नहीं है। आर्थिक सफलता पाने के लिए भी यह आवश्यक है। विस्तार से बता रहे हैं अमित टंडन

Last Updated- August 20, 2024 | 9:25 PM IST
Majority of employees report low levels of wellbeing at workplace: Report

विनिर्माण के गढ़ के रूप में भारत का उभार काफी हद तक भूराजनीतिक बदलावों के कारण है क्योंकि दुनिया भर के कारोबार अपनी आपूर्ति श्रृंखला में विविधता लाने का प्रयास कर रहे हैं। किंतु इस उभार या कायाकल्प की बुनियाद वैश्विक बदलावों के पहले ही रखी जा चुकी थी, खास तौर पर 2014 में ‘मेक इन इंडिया’ पहल की शुरुआत के साथ।

मेक इन इंडिया कार्यक्रम नवाचार को बढ़ावा देकर और भारत को उत्पादन में वैश्विक अगुआ बनाकर विनिर्माण क्षेत्र में नई जान फूंकने के इरादे से बनाया गया था। सरकार की कई नीतियों के केंद्र में यही पहल है। उत्पादन से जुड़े प्रोत्साहन (पीएलआई) की योजना, सरल नियामकीय प्रक्रियाएं, बुनियादी ढांचा विकास पर ध्यान और कौशल विकास पर जोर ऐसी ही नीतियां हैं। इन सभी उपायों का उद्देश्य कारोबारी वृद्धि को तेज करना तथा देश को विनिर्माण में निवेश के लिए आकर्षक ठिकाना बनाना है।

देश की आबादी में बड़ा हिस्सा युवा श्रम बल का है, जो इन नीतियों के लिए एकदम अनुकूल और पूरक है। बढ़ते बाजार और श्रम की लगातार आपूर्ति का यह जोड़ कारोबारों के विस्तार के लिए अनुकूल है और भारत को उन कंपनियों के लिए उपयुक्त बनाता है जो अपना विनिर्माण कारखाना लगाना चाहती हैं या विनिर्माण का विस्तार करना चाहती हैं। यही कारण है कि भारत वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में अहम भूमिका निभाने को तैयार है और वैश्विक विनिर्माण का अहम हिस्सा बन सकता है।

किंतु इस वृद्धि के साथ आने वाली आर्थिक जीवंतता में चुनौतियां भी होती हैं। कार्यस्थल पर होने वाली दुर्घटनाएं तथा कामकाज में होने वाले नुकसान कर्मचारियों के स्वास्थ्य और कल्याण के लिए बड़ी चुनौती हैं। दुर्भाग्यवश कार्यस्थल पर सुरक्षा देश में चिंता का बड़ा विषय है। NSE-500 कंपनियों के बिज़नेस रिस्पॉंसिबिलिटी ऐंड सस्टेनबिलिटी रिपोर्टिंग (BRSR) के आंकड़े चिंताजनक तस्वीर पेश करते हैं।

वित्त वर्ष 2022 में कार्यस्थल पर चोट लगने की 9,880 घटनाएं हुई थीं, जो 2022-23 में बढ़कर 10,726 हो गईं। गंभीर शारीरिक क्षति के मामले इसी अवधि में एक तिहाई बढ़कर 676 से 904 हो गए। वित्त वर्ष 22 में 586 मौत हुई थीं, जो 2022-23 में घटकर 463 रहीं, लेकिन ये भी रोजाना एक मौत से अधिक हैं।

इस आंकड़े के दो परेशान करने वाले पहलू हैं। पहला, यह शीर्ष 500 कंपनियों का आंकड़ा है यानी देश के कुल श्रम बल का बहुत छोटा हिस्सा इसमें आता है। देश के तकरीबन 90 फीसदी कामगार असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं, जहां काम की परिस्थितियां और भी खतरनाक होती हैं। यह कड़वी हकीकत बताती है कि सभी क्षेत्रों में कार्यस्थल पर सुरक्षा को प्राथमिकता देना कितना आवश्यक है। इतना ही नहीं ज्यादा पूंजी होने के कारण और अधिक संसाधन एवं सामग्री उपलब्ध होने के कारण इन कंपनियों में चोट के मामले कम होने चाहिए। इससे यही माना जा सकता है कि इस तरह की घटनाओं में असंगठित क्षेत्र की हिस्सेदारी कम से कम प्रतिशत में तो बहुत ज्यादा होगी।

दूसरा पहलू यह है कि ये आंकड़े प्रत्यक्ष रोजगार से जुड़े हैं और ठेके पर काम करने वालों के बारे में कुछ नहीं बताते। इससे पता चलता है कि वास्तविक आंकड़े काफी ज्यादा हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि अब ज्यादातर काम सीधे भर्ती किए गए कर्मचारियों से नहीं कराया जाता बल्कि अस्थायी कर्मचारियों को दिया जाता है और ठेके पर कराया जाता है। उदाहरण के लिए खतरनाक रसायन निपटाते समय छह कर्मचारियों की मौत कंपनी ने आंकड़ों में शामिल नहीं की। उसने तर्क दिया कि यह काम ठेके पर दिया गया था। ऐसे आंकड़ों की जानकारी जरूरी होनी चाहिए और यह काम आसानी से कराया जा सकता है।

बीआरएसआर कहता है कि कंपनियों को कर्मियों और श्रमिकों की सुरक्षा से जुड़ी घटनाओं के आंकड़े चार श्रेणियों में जरूर बताने चाहिए। ये श्रेणियां हैं – काम के दौरान चोट के दर्ज किए जाने योग्य कुल मामले, मृत्यु के मामले, काम के दौरान गंभीर चोट के मामले और इनके कारण नष्ट हुआ समय। कंपनियां स्वयं भर्ती किए गए कर्मचारियों के संबंध में ही ऐसी जानकारी देती हैं। ठेके पर रखे गए कर्मियों के आंकड़े भी शामिल कर लिए जाएं तो ज्यादा पूर्ण तस्वीर सामने आएगी।

नीदरलैंड्स के सबसे बड़े पेंशन फंड एपीजी के थिएस आतेन (एपीजी और एचडीएफसी अर्गो जनरल इंश्योरेंस ने ही हमें कार्यस्थल पर चोट के मामलों पर नजर डालने के लिए प्रोत्साहित किया) ने कहा, ‘शेयरधारकों को शायद ही कभी उन कमियों के बारे में बताया जाता है, जिनके कारण चोट या मौत होती हैं। ऐसी घटनाएं दोबारा होने से रोकने के कदम भी नहीं उठाए जाते। प्रदर्शन के अहम सूचकों (केपीआई) या लक्ष्यों, घटनाओं की जानकारी की व्यवस्था और कोई अनहोनी होने पर मुआवजा दिए जाने की भी बहुत कम जानकारी दी जाती है। बीमा का दायरा बहुत कम है और अक्सर इसमें ठेके वाले कर्मचारी शामिल नहीं किए जाते। इसी प्रकार 70 फीसदी से अधिक कंपनियों में स्वास्थ्य और सुरक्षा नीतियों में मूल्य श्रृंखला के साझेदार शामिल नहीं किए जाते।’

इस स्थिति के लिए कमजोर निगरानी और नेतृत्व की बेरुखी को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। कर्मचारियों की सुरक्षा और उनके कल्याण को कंपनी बोर्ड तथा प्रबंधन शायद ही कभी प्राथमिकता देते हैं। उनका ध्यान अक्सर वित्तीय प्रदर्शन पर ही रहता है। सुरक्षा जांच या ऑडिट का इस्तेमाल समूचे संगठन में सुरक्षा को सबसे ऊपर रखने वाली मानसिकता तैयार करने के लिए इस्तेमाल करना चाहिए मगर अक्सर यह रस्मअदायगी बनकर रह जाता है। कंपनी बोर्डों को अपनी प्राथमिकताओं पर पुनर्विचार करना चाहिए।

दुर्घटनाएं आंकड़े भर नहीं होतीं। उनसे लोगों को कष्ट होता है। लोग, परिवार और कभी कभार पूरे समुदाय इनकी चपेट में आ जाते हैं। कर्मचारियों की सुरक्षा नैतिक रूप से तो जरूरी है ही, कार्यस्थल पर होने वाली दुर्घटनाओं का आर्थिक असर भी बहुत गहरा होता है। इससे कारोबारों की लागत बढ़ जाती है, इलाज का खर्च बढ़ जाता है, उत्पादकता घट जाती है और कानूनी देनदारी भी बनती है। इनसे आर्थिक वृद्धि को झटका लग सकता है और कारोबारों की वित्तीय सेहत खराब हो सकती है।

काम का सुरक्षित माहौल सुनिश्चित करना नैतिक दायित्व से बढ़कर है क्योंकि इससे टिकाऊ आर्थिक वृद्धि को भी बढ़ावा मिलता है। कार्यस्थल सुरक्षित हो तो कुशल कर्मचारी कंपनी में बने रहते हैं, कारोबारों की प्रतिष्ठा बढ़ती है और सभी हितधारकों का आपसी भरोसा बढ़ता है। इससे बाजार में लंबे समय तक सफलता और होड़ बनी रहती है।

(लेखक इंस्टीट्यूशनल इन्वेस्टर्स एडवाइजरी सर्विसेज इंडिया से जुड़े हैं। लेख में निजी विचार हैं)

First Published - August 20, 2024 | 9:18 PM IST

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