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कुछ ऐसे बही, शिक्षा की यह अनोखी बयार

Last Updated- December 05, 2022 | 9:42 PM IST

अगर आप किसी गांव के प्राथमिक सरकारी स्कूल में जाते हैं और वहां चौथी या पांचवी कक्षा के बच्चे आपको ‘गुड मॉर्निंग सर’ करें तो यह आपके लिए बिल्कुल अप्रत्याशित होगा।


आपने इसकी कल्पना भी नहीं की होगी। लेकिन मुंबई के पास स्थित वासी ताल्लुका के आदिवासी बहुल गांव पडवल पंडा के जिला परिषद स्कूल के बच्चे आपका स्वागत इसी तरीके से करेंगे। यह कमाल है दो चीजों का।पहला यह कि महाराष्ट्र सरकार ने सरकारी स्कूलों में पहली कक्षा से अंग्रेजी पढ़ाने का फैसला किया है। दूसरी वजह है इन स्कूलों की मदद कर रहा है 2000 करोड़ रुपये वाला एस्टर्क ग्रुप।


यह ग्रुप महाराष्ट्र के ग्रामीण इलाकों के 349 स्कूलों की मदद मुहैया करा रहा है। एस्टर्क ग्रुप ऑटोमोबाइल ग्राफिक्स के क्षेत्र में काम करने वाली दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी है। यह इसी मदद का  कमाल है कि इन स्कूलों को बीच में ही अलविदा कहने वाले बच्चों की तादाद में काफी कमी आई है। वासी भले ही ऐसा इलाका है, जो मुंबई के आसपास होने की वजह से तेजी से बदल रहा हो, लेकिन अगर आप वासी से अंदर 15 से 20 किलोमीटर दूरदराज इलाकों में भी जाते हैं तो पता चलता है कि वहां शिक्षा लोगों की प्राथमिकता सूची में सबसे निचले पायदान पर है।


वासी तालुका के ग्रामीण इलाकों में मलहारकोलिस और कटकारिस जैसे जनजातीय समुदाय की बहुलता है और कई वजहों से बच्चों को स्कूल छोड़ने पर मजबूर होना पड़ रहा है। इन वजहों में बुनियादी सुविधाओं की कमी मसलन- परिवार के लिए कमाने की मजबूरी, किताबों और जरूरी चीजों का अभाव आदि शामिल हैं। एस्टर्क ग्रुप की इसी इलाके में फैक्टरी है और इसके मद्देनजर कंपनी ने यहां के स्कूलों की हालत सुधारने के लिए काम करना शुरू किया है। कंपनी ने इसके लिए पंचायतों और स्कूल प्राधिकरणों से समझौता किया है। इसके अलावा कंपनी लगातार इन स्कूलों द्वारा मुहैया कराए जा रहे शिक्षा के स्तर पर भी निगरानी करती है। वासी तालुका में जिला परिषद के तहत चलने वाले एक स्कूल के शिक्षक दिवाकर पाटिल ने बताया कि इन बच्चों को किताब, नोट बुक और स्कूल ड्रेस मिलने की वजह से ये फिर से स्कूलों में आने लगे हैं।


इसके अलावा कंपनी ने शिक्षकों की सुविधा के लिए भी स्कूलों में कई तरह की सामग्री उपलब्ध कराई है।पाटिल ने बताया कि पहले यहां स्थिति काफी बुरी थी। स्कूल में दाखिला लेने वाले 10 में सिर्फ 3 छात्र ही प्राथमिक शिक्षा पूरी कर पाते थे। लेकिन एस्टर्क ग्रुप द्वारा सहायता कार्यक्रम शुरू किए जाने के बाद इलाकों के स्कूलों में उपस्थिति 95 फीसदी तक पहुंच गई है। उनके मुताबिक, स्कूलों में बुनियादी सुविधाएं मसलन ब्लैकबोर्ड, चॉक, डस्टर आदि की उपलब्धता शिक्षकों को भी बेहतर तरीके से अपना काम करने के लिए प्रेरित करती है। एस्टर्क के चेयरमैन और प्रबंध निदेशक किशोर मुसाले कहते हैं कि उन्हें इस कार्यक्रम को शुरू करने की प्रेरणा अपने पिताजी से मिली।


उन्होंने बताया कि उनके पिता ने यह बिजनेस शुरू किया था और उन्होंने सिर्फ चौथी कक्षा तक पढ़ाई की थी। किशोर बताते हैं कि उनके पिता अक्सर कहा करते थे कि अगर वह पढ़े-लिखे होते तो बिजनेस के क्षेत्र में वह काफी आगे जाते और साथ ही जिंदगी में कई और चीजें कर सकते थे। मुसाले ने बताया, ‘मेरे पिताजी की इस बात का मुझ पर इतना असर पड़ा कि जब मैंने कॉरपोरेट सामाजिक जवाबदेही (सीएसआर) के तहत काम शुरू करने का फैसला किया तो शिक्षा मेरी पहली प्राथमिकता थी।’ वह कहते हैं कि हम अपनी 1 अरब से भी ज्यादा की आबादी पर गर्व करते हैं और कहते हैं कि यह हमारे लिए बहुत बड़ा संसाधन है।


लेकिन अगर हम इस संसाधन को शिक्षा और अन्य तकनीकों से लैस नहीं करते हैं तो एक बहुत बड़ा अवसर गंवा देंगे।जो बच्चे किताब और स्कूल ड्रेस की कमी के कारण स्कूल जाने से कतराते थे, वे अब इन चीजों के मिलने पर खुशी-खुशी स्कूल जा रहे हैें। इस इलाके में मौजूद हलोल गांव के जिला परिषद स्कूल के शिक्षक विजय कटकर के मुताबिक, यह एस्टर्क की पहल के कारण ही मुमकिन हो पाया है। एस्टर्क ग्रुप की सीएसआर पहल का फायदा कटकर को भी मिला है। इसके तहत उन्हें कंप्यूटर की बुनियादी ट्रेनिंग दी गई है। स्कूल में जब भी बिजली होती है, कटकर अपने कंप्यूटर ज्ञान को छात्रों को बताने से नहीं चूकते।


किशोर मुसाले चैरिटेबल ट्रस्ट के कोऑर्डिनेटर बालासाहब बब्बर कहते हैं कि एस्टर्क ग्रुप छात्रों को स्कूल ड्रेस और शिक्षा सामग्री मुहैया कराने के अलावा स्कूलों को भी विभिन्न सुविधाओं से लैस करने में जुटा है। मसलन ट्रस्ट स्कूलों में लैबरटरी, कंप्यूटर, खेल से जुड़े उपकरण और छतों और बाथरूम की मरम्मत करने का भी काम बड़े पैमाने पर कर रहा है। कंपनी ने यह पहल थाने जिले के वासी और विक्रमगढ़ ताल्लुके के 350 स्कूलों में शुरू की है।  इस पहल से इलाके के 25 हजार बच्चों को फायदा पहुंचेगा और कंपनी का इरादा जल्द से जल्द इस तादाद को दोगुना करना है।


एस्टर्क ने इस काम के लिए सुनियोजित तौर-तरीका अपनाया है। इसके तहत बब्बर और 4 सामाजिक कार्यकर्ताओं की उनकी टीम विभिन्न गांवों का दौरा करती है। यह टीम स्कूलों में जाकर शिक्षकों, छात्रों और उनके माता-पिता और पंचायत सदस्यों से बातचीत करती है। इसके बाद ये लोग ट्रस्ट को स्कूलों की मदद के लिए सिफारिश करते हैं। इसके बाद स्कूलों पर भी लगातार निगरानी रखी जाती है, जिसके तहत छात्रों की उपस्थिति, उनके प्रदर्शन आदि का जायजा लिया जाता है।


ऐसे स्कूलों की मदद के अलावा एस्टर्क ग्रुप कई अन्य सामाजिक अभियानों में भी अपनी भूमिका निभा रहा है। यह ग्रुप सीएसआर पर सालाना 4 से 5 करोड़ रुपये खर्च कर रहा है। बब्बर कहते हैं कि प्राथमिक शिक्षा अनिवार्य है, लेकिन रोजगार पाने के लिए व्यावसायिक प्रशिक्षण भी उतना ही जरूरी है। इसके मद्देनजर कंपनी अगला सीएसआर कदम इसी दिशा में उठाने की योजना बना रही है।

First Published - April 16, 2008 | 12:25 AM IST

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