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‘टूर्नामेंट’ क्रिकेट और फुटबॉल खिलाड़ियों का…

Last Updated- December 05, 2022 | 9:44 PM IST

पहले एक सच की पड़ताल। क्रिकेट के तय मानदंडो के मुताबिक, इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) के ट्वेंटी-20 टूर्नामेंट में खेलने वाले खिलाड़ियों को मोटी तनख्वाह मिलेगी।


यह टूर्नामेंट 18 अप्रैल से 1 जून तक चलेगा। लेकिन अगर हम यूरोपीय फुटबॉल लीग के मुकाबले आईपील की तुलना करें तो क्रिकेट खिलाड़ियों को मिलने वाली यह रकम काफी कम है। पहले हम दोनों टूर्नामेंटों में खिलाड़ियों के लिए लगने वाली बोली की रकम की तुलना करते हैं। यह रकम दरअसल खिलाड़ियों की सालाना तनख्वाह होगी। इस मामले में यूरोपीय फुटबॉल लीग के प्रमुख खिलाड़ियों के मुकाबले शायद महेंद्र सिंह धोनी भी नहीं टिक पाएं।


धोनी चेन्नई टीम के कप्तान होंगे और फरवरी में मुंबई में उनके लिए 6 करोड़ की बोली लगी। अगर आप यह मान लें कि विज्ञापन अनुबंधों के जरिये वह इतनी ही राशि कमाने में सफल होंगे, तो भी धोनी की सालाना कमाई 12 करोड़ रुपये होगी। फुटबॉल खिलाड़ी (अन्य खेलों के खिलाड़ियों की तरह) 27-28 साल की उम्र में अपने करियर के चरम पर होते हैं।


इस उम्र में शारीरिक क्षमता और मानसिक परिपक्वता सबसे ज्यादा होती है और इस वजह से इस उम्र के खिलाड़ी सबसे ज्यादा महंगे होते हैं। यह बात क्रिकेटरों पर भी लागू होती है, हालांकि इस खेल में ताकत की अपेक्षाकृत कम जरूरत होती है। इस उम्र के यूरोप के बेहतरीन फुटबॉल खिलाड़ियों की सालाना तनख्वाह 22 लाख डॉलर (तकरीबन 9 करोड़ रुपये) होती है।


अगर विज्ञापन अनुबंधों को जोड़ दिया जाए तो यह आंकड़ा दोगुना हो जाएगा। 7 जुलाई 1981 को पैदा हुए धोनी भी इस आयु वर्ग में पहुंच चुके हैं। अगर धोनी को पूरी तरह परिपक्व मान लिया जाए तो भारत की ट्वेंटी-20 और वनडे टीम के कप्तान की कमाई एक औसत यूरोपीय लीग फुटबॉल खिलाड़ी से काफी कम है। यहां यह बात भी गौर करने लायक है कि धोनी क्रिकेट के उभरते सितारों में एक हैं। अगर हम इस बात को ध्यान में रखें तो वह कमाई के मामले में फुटबॉल के स्टार खिलाडियों से कोसों पीछे हैं।


बहरहाल हम फुटबॉल स्टार डेविड बेकहम को छोड़ देते हैं, जिनकी कुल कमाई 2 करोड़ 91 लाख डॉलर (तकरीबन 116.40 करोड़ रुपये) आंकी गई है। उन्होंने यह कमाई ऐसे वक्त में की है, जब उनका करियर ढलान पर है। हम बेकहम के बदले ब्राजील के स्टार फुटबॉल खिलाड़ी रोनाल्डीनो की बात करते हैं। फिलहाल वह स्पैनिश क्लब बार्सिलोना के साथ जुड़े हैं। हालांकि रोनाल्डीनो अभी अपने फॉर्म में नहीं हैं, इसके बावजूद वह कमाई के मामले में मैनचेस्टर यूनाइटेड के रोनाल्डो और ए. सी. मिलान के काका के आसपास हैं।


रोनाल्डीनो को दुनिया के बेहतरीन फुटबॉल खिलाड़ियों में गिना जाता है और उनकी सालाना कमाई 2 करोड़ 95 लाख डॉलर (118 करोड़ रुपये) है। मखाया नतिनी, अनिल कुंबले या मैथ्यू हेडन जैसे मध्यम दर्जे के स्टारों के लिए आईपीएल ज्यादा फायदे का सौदा नजर आ रहा है, जिनकी औसतन सालाना कमाई 5 लाख से 2 लाख डॉलर ( 2 करोड़ से 80 लाख रुपये के बीच) होगी, जो इंग्लिश प्रीमियर लीग के औसत सालना वेतन 1 लाख 77 हजार 967 डॉलर (तकरीबन 70 लाख रुपये) से ज्यादा है।


अब यहां क्रय शक्ति समानता को ध्यान में रखे बगैर यूरोपीय टूर्नामेंट से भारतीय क्रिकेट टूर्नामेंट की तुलना करना उचित नहीं माना जाएगा। लेकिन आईपीएल इसे ग्लोबल टूर्नामेंट मानकर चल रही है और साथ ही इसमें पूरी दुनिया के खिलाड़ियों की भागीदारी है, इसलिए क्रय शक्ति समानता की तुलना बेमानी होगी। इसके अलावा 100 साल पुराने यूरोपीय क्लबों की आईपीएल जैसे नए संगठन से तुलना को भी उचित नहीं माना जा सकता है।


हालांकि इंग्लिश प्रीमियर लीग (जिससे आईपीएल कमिश्नर ललित मोदी गठबंधन को उम्मीद है) महज 16 साल पुराना संगठन है और इतने ही समय में यह दुनिया के सबसे धनी स्पोट्र्स लीग में शुमार हो चुकी है। बीसीसीआई के व्यावसायिक रवैये को देखते हुए इस बात की पूरी संभावना है कि कुछ ही समय में राजस्व और लाभ के मामले में आईपीएल इंग्लिश प्रीमियर लीग को पीछे छोड़ दे और आईपीएल के स्टारों को उसी तरह बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जाए, जैसे प्रीमियर लीग के खिलाड़ियों को पेश किया जाता है।


मसलन इन खिलाड़ियों के स्टारडम का आलम यह है कि बीबीसी ने फुटबॉल खिलाड़ियों की बीवियों पर एक सीरीज चलाई थी।आईपीएल और अपेक्षाकृत कम चर्चित सुभाष चंद्रा की इंडियन क्रिकेट लीग में ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों ने सबसे पहले अवसरों को पहचानना शुरू किया। दरअसल ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट टीम का वेस्टइंडीज दौरा और आईपीएल के शुरुआती मैच एक ही समय में होंगे।


राष्ट्रीय चयनकर्ताओं की चेतावनी के बावजूद ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेटरों ने संकेत दिया है कि अगर उन्हें क्लब और देश में किसी एक को चुनने की नौबत आई, तो वे क्लब को ही चुनेंगे। ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों के रवैये में बदलाव को असामान्य नहीं कहा जा सकता।  फुटबॉल खिलाड़ी अक्सर 30 साल में अंतरराष्ट्रीय खेल से अलग हो जाते हैं और इसके मद्देनजर उनके लिए क्लब करियर पर फोकस करना ज्यादा बेहतर होता है, क्योंकि वहां उनके लिए 36 साल की उम्र तक खेलना मुमकिन होता है। 


इस बीच दिलचस्प सवाल यह है कि क्या राज ठाकरे और उनकी पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के कार्यकर्ता आईपीएल टूर्नामेंट देखेंगे? उनके राजनीतिक नजरिये से भारत में बहु-नस्लीय टूर्नामेंट के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए। दरअसल, मुंबई टीम में सचिन तेंदुलकर के अलावा मराठीभाषी खिलाड़ियों की तादाद काफी कम है। हालांकि इस टूर्नामेंट को स्थानीयता की भावना से जोड़ने की कोशिश की गई है, लेकिन इसमें स्थानीयता के बजाय प्रतिभा पर ज्यादा तवाो दी गई है।


विश्लेषक इस टूर्नामेंट का भविष्य काफी उावल बता रहे हैं। फुटबॉल टूर्नामेंटों में भी स्थानीयता की भावना काफी प्रबल होती है। लेकिन मिसाल के तौर पर मैनचेस्टर यूनाइटेड के किसी भी फैन को क्लब के स्टार और पुर्तगाल के मिडफील्डर रोनाल्डो की लोकप्रियता से चिढ़ नहीं होती। अगर यूरोपीय फुटबॉल टूर्नामेंटों की तरह आईपीएल का प्रयोग भी सफल रहता है तो यह दर्शाएगा कि किस तरह श्रम की बेरोकटोक आवाजाही व्यावसायिक गतिविधियों को बढ़ावा देने में कारगर साबित हो सकती है और ठाकरे भी शायद अपना मराठी राग अलापना छोड़ दें।

First Published - April 17, 2008 | 12:17 AM IST

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