वायदा कारोबार पर सरकार का रवैया काफी हैरान करने वाला है। एक ओर जहां सरकार मान्यता प्राप्त कमॉटिडी एक्सचेंजों के जरिये हो रहे वायदा कारोबार पर असहजता जताने का एक भी मौका नहीं चूकती।
वहीं दूसरी ओर इसके समानांतर गैरकानूनी चैनलों से होने वाले ऐसे कारोबार धड़ल्ले से चल रहे हैं। व्यापारिक हलकों में यह ‘डब्बा’ कारोबार के नाम से मशहूर है। इसके तहत अनौपचारिक लेन-देन के जरिये कमॉडिटी एक्सचेंज की कीमतों पर एक्सचेंज के बाहर इसे अंजाम दिया जाता है, जो वास्तव में गैरकानूनी है।
इसमें रोज-ब-रोज बढ़ोतरी हो रही है। एक अनुमान के मुताबिक, ‘डब्बा’ कारोबार के तहत सोयाबीन, मेंथा तेल और गुड़ जैसी कमॉिडिटीज में रोजाना 12 हजार करोड़ रुपये के सौदे किए जा रहे हैं। सरकार द्वारा कमॉडिटी ट्रांजेक्शन टैक्स (सीटीटी) के प्रस्ताव और फॉरवर्ड कॉन्ट्रैक्ट में संशोधन संबंधी अध्यादेश के निरस्त होने देने जैसे कदमों ने इस कारोबार को और फलने-फूलने का मौका मुहैया कराया है।
एक ओर जहां सीटीटी प्रस्ताव से लेनदेन खर्चों में भारी बढ़ोतरी की आशंका पैदा हो गई है, वहीं दूसरी ओर अध्यादेश निरस्त हो जाने से ‘डब्बा’ कारोबारियों के खिलाफ कदम उठाने में फॉरवर्ड मार्केट कमीशन अक्षम हो गया है।
ऐसे कारोबारियों में मान्यता प्राप्त कमॉडिटी एक्सचेंजों के सदस्य भी शामिल हैं। कमॉडिटी एक्सचेंजों को नजरअंदाज कर कारोबारी कई तरह के शुल्क और अधिभार से बच निकलने में सफल रहते हैं। इससे कारोबारियों के मुनाफे में कमी आ सकती है। अगर सीटीटी का नियम अमल में आ जाता है, तो वायदा कारोबार का एक अहम हिस्से का ‘डब्बा’ कारोबार के रूप में बदलना तय है। साथ ही कुछ कारोबार विदेशों के कमॉडिटी एक्सचेंजों में शिफ्ट जाएंगे।
पहले ही कई कमॉडिटी घराने हेजिंग के लिए विदेशी कमॉडिटी एक्सचेंजों का रुख कर चुके हैं। नतीजतन देश के प्रमुख कमॉडिटी एक्सचेंजों के कारोबार में 20 से 25 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। वायदा कारोबार में सरकार दोहरे मापदंड अपना रही है। घरेलू कमॉडिटी एक्सचेंजों में गेहूं के वायदा कारोबार पर सरकार ने पाबंदी लगा रखी है, जबकि सरकारी एजेंसियां खुद शिकागो बोर्ड ऑफ ट्रेड में वायदा कारोबार के तहत गेहूं खरीद रही हैं।
जाहिर है गेहूं आयात करने की सूरत में कीमतों के जोखिम को कम करने के मकसद से सरकारी एजेंसियां ऐसा कर रही हैं। ऐसे में आज जरूरत वायदा कारोबार को को सरल बनाने की है, न कि इस पर पाबंदी लगाने और अवैध रूप से यह कारोबार करने वाले लोगों के लिए मैदान खुला रखने की। इस बात पर अटकलबाजी करने का कोई मतलब नहीं है कि कीमतों पर वायदा कारोबार के पड़ने वाले प्रभाव के बारे में बहुप्रतीक्षित अभिजीत सेन की रिपोर्ट क्या कहेगी।
यह बात पहले ही साफ हो चुकी है कि हाल में कीमतों में हुई बढ़ोतरी का वायदा कारोबार से कोई संबंध नहीं है। ऐसे में सरकार को निरस्त हो चुके अध्यादेश को फिर से जारी करने की जरूरत है या ऐसा बिल चाहिए जिसके जरिये इस कारोबार में पारदर्शिता का पालन हो सके।