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मेगा पावर प्रोजेक्ट की जीत

Last Updated- December 06, 2022 | 12:40 AM IST

गुजरात के मूंदड़ा स्थित ‘अल्ट्रा मेगा’ पावर प्रोजेक्ट (यूएमपीपी) के लिए 17 हजार करोड़ रुपये का फंड मुहैया कराया जाना तकरीबन सुनिश्चित हो चुका है।


इसके साथ यूएमपीपी के आलोचकों का मुंह बंद हो जाना चाहिए। तकरीबन 2 साल पहले जब इस आइडिया के बारे में कहा गया था, तो उस वक्त इस पर कई सवाल उठाए गए थे। आलोचकों ने ऐसे प्रोजेक्टों के लिए कंपनियों के आगे आने और इसकी व्यावहारिकता (4 हजार मेगावॉट वाले प्लांट) पर संदेह जताया था।


उस वक्त यह भी कहा गया था कि अगर कुछ कंपनियां साहस कर आगे आती भी हैं तो उनके लिए फंड जुटाने की समस्या आड़े आ जाएगी। लेकिन इस प्रोजेक्ट के लिए न सिर्फ कंपनियों की कतार लगी हुई है, बल्कि ऐसा पहला प्रोजेक्ट (टाटा की मदद से) जल्द ही शुरू होने वाला है। इसके अलावा सब-प्राइम संकट के बावजूद यह प्रोजेक्ट 20 साल तक के लिए फंड सुनिश्चित करने में सफल रही है।


भारतीय स्टेट बैंक समेत कई सरकारी बैंकों ने इस प्रोजेक्ट के लिए 5,550 करोड़ रुपये मुहैया कराने की प्रतिबध्दता जताई है। प्राइवेट सेक्टर के बैंकों के इस प्रोजेक्ट से अलग रह जाने की वजह लंबे अर्से तक की फंडिंग से इन बैंकों का संकोच और इन फंडों के लिए अपेक्षाकृत ज्यादा ब्याज दरें हैं।


इस प्रोजेक्ट के तहत 20 साल तक के लिए आधा फंड अंतरराष्ट्रीय फाइनैंस कॉरपोरेशन और एशियन विकास बैंक से हासिल किया जाएगा। इसके अलावा एक्सपोर्ट-इंपोर्ट बैंक ऑफ कोरिया और कोरिया एक्सपोर्ट इंश्योरेंस कॉरपोरेशन ने भी फंड मुहैया कराने के लिए प्रतिबध्दता जताई है।


हालांकि इस प्रतिबध्दता को इस बात से जोड़ा जा सकता है कि इस प्रोजेक्ट में उपकरणों की सप्लाई के लिए कोरियाई फर्म दूसन हेवी इंडस्ट्रीज को ऑर्डर हासिल हुआ है। इसके अलावा प्रोजेक्ट के प्रमोटरों द्वारा इक्विटी के रूप में 4,250 करोड़ रुपये भी मुहैया कराए जाएंगे। प्रोजेक्ट स्थल पर उपकरण पहले से पहुंचने शुरू हो चुके हैं।


800 मेगावाट के पहले यूनिट के सिंतबर 2011 तक तैयार हो जाने की उम्मीद है। पूरा 4,000 मेगावाट का प्रोजेक्ट साल 2012 के अंत तक पूरा हो जाने की उम्मीद है, जो तय वक्त से एक साल पहले होगा।


इस प्रोजेक्ट की सफलता से दो सबक मिलते हैं। पहला यह है कि हमें कभी भी बड़ा सोचने से नहीं हिचकना चाहिए। प्रोजेक्ट जितना ही बड़ा होगा, प्रति मेगावाट के लिए कवायद उतनी ही कम करने की जरूरत होगी। इसके मद्देनजर 500 मेगावॉट के प्रोजेक्ट के बजाय 4,000 मेगावाट पर काम करना ज्यादा बेहतर है। खासकर उस स्थिति में जब छोटे प्रोजेक्ट के लिए मंजूरी की प्रक्रिया वैसी ही है, जैसी बड़े प्रोजेक्ट के लिए।


दूसरा सबक यह है कि सरकार को इन्फ्रास्ट्रक्टर संबंधी परियोजनाओं पर पहले होमवर्क करने की जरूरत है, ताकि प्राइवेट निवेशकों को सौंपे जाने से पहले पर्यावरण संबंधी और अन्य बाधाएं दूर की जा सकें। अगर ऐसा नहीं होता है तो अगले पांच साल में इन्फ्रास्ट्रक्चर और इसके लिए फंड के बीच की दूरी को पाटना मुमकिन नहीं हो सकेगा।

First Published - April 28, 2008 | 11:23 PM IST

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