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बी-स्कूलों में बह रही है उद्यमशीलता की बयार

Last Updated- December 06, 2022 | 12:00 AM IST

नीरज त्रिवेदी दिखने में एक साधारण से शख्स हैं। उन्हें देखकर तो बिल्कुल नहीं लगता कि वह उन हजारों टीनएजर्स के रोल मॉडल हो सकते हैं, जो भारतीय प्रबंधन संस्थानों (आईआईएम) में पढ़ने की हसरत रखते हैं।


लेकिन जब गूगल पर ‘फ्रेश मैनेजमेंट ग्रैजुएट्स+इंटरप्रेन्योर’ डालेंगे तो ज्यादा उम्मीद यही है कि आपके सामने डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू.स्टार्टअप्स.इन नाम की एक भारतीय वेबसाइट का नाम होगा। इस पर आपको त्रिवेदी जैसे सैकड़ों नाम मिल जाएंगे, जिन्होंने लाखों रुपये की मोटी सैलरियों को ठुकरा दिया।


वैसे, यह त्रिवेदी को उन लोगों को हीरो नहीं बना सकता, जिनकी नजर पहले से ही कॉरपोरेट जगत की नौकरियों पर टिक चुकी है। आपको बता दें कि आईआईएम-लखनऊ के पास आउट त्रिवेदी आजकल गैर सरकारी संस्था ‘प्रथम’ के साथ जुड़े हुए हैं।


लेकिन इस राह पर चलने वाले त्रिवेदी अकेले आईआईएम ग्रैजुएट नहीं हैं। हर साल भारत के इन प्रीमियर शिक्षण संस्थानों की ऊंची दीवारों से 1800 छात्र बाहर निकलते हैं। इनमें से अधिकतर तो बड़ी कंपनियों में ऊंचे ओहदों को मोटी सैलरी पर अपना लेते हैं। लेकिन इनमें से कुछ ऐसे भी हैं, जो अपने साथियों की राह पर नहीं चलते और अपनी डगर खुद बनाने की कोशिश करते हैं।


कुछ त्रिवेदी की तरह भी होते हैं, जो गैर सरकारी संस्थाओं से जुड़कर समाज की सेवा में लग जाते हैं। त्रिवेदी बताते हैं, ‘मैं यहां इसलिए आया क्योंकि मैं अपने देश के लिए कुछ करना चाहता हूं। पिछले साल जब मैं पास ऑउट हुआ था, तो मेरे इस फैसले मेरे घर वाले काफी नाराज हुए।


आखिर मैं इस वक्त अपने साथियों के मुकाबले केवल 30 फीसदी ही कमा पा रहा हूं। बिहार-नेपाल सीमा पर स्थित एक छोटा सा जिला, सीतामढ़ी काम करने के लिहाज से सबसे बेहतरीन इलाका नहीं हो सकता, लेकिन इन सबके बावजूद मैं खुश हूं। मैं अंदर से संतुष्ट महसूस करता हूं।’


उन्हीं की तरह दीपक धमीजा ने भी अपने दिल की धड़कन को चुना। आईआईएम-कोलकाता के इस स्टूडेंट ने इस साल प्लेंसमेट में न शामिल होकर ‘बेसिक्स’ के लिए काम करने का फैसला किया है। यह संस्था विदर्भ में किसानों को लघु स्तर पर कर्जे देने में लगी हुई है। बी-स्कूलों में प्लेसमेंट्स में नहीं बैठने की आदत को ‘ऊप्स’ (ऑउट ऑफ प्लेसमेंट सीजन) कहा जाता है।


पहले हो सकता है ऐसे लोगों को विद्रोही या आवारा की संज्ञा दी जाती हो, लेकिन आज तो ऐसे लोगों की तादाद तेजी से बढ़ रही है। आईआईएम, कोलकाता के अंकुर गट्टानी व आदित्य कुमार, आईआईएम, लखनऊ के हेमंत बंसल, आईआईएम, अहमदाबाद के अंकित माथुर, सात्विक उपाध्याय तथा निर्मल कुमार और आईआईएम, इंदौर के ध्रुव भूषण एवं अनुभव जैन ने अपनी राह खुद बनाने का फैसला किया है।


लेकिन वह कौन सी चीज है, जिसकी वजह से ये लोग इस तरफ खींचे चले आ रहे हैं? वह कौन सी चीज है, जो लाल इमारतों वाले मैनेजमेंट संस्थानों में उद्यमशीलता के बम पलीते में चिंगारी लगा रही है?


क्यों इनके स्टूडेंट्स अब समाज सेवा के विभिन्न पहलूओं, ऑनलाइन पोर्टल्स, मैन्यूफैक्चरिंग यूनिट्स या कंसल्टिंग में अपना भविष्य तलाश रहे हैं? क्यों ये नौजवान कॉरपोरेट जगत के लुभावने ऑफरों और माता-पिता के गुस्से को दरकिनार करते हुए अपने दिल की बात मान रहे हैं? इन सवालों के जवाब जानने के लिए आप भी बेताब होंगे, है न? जानने के लिए पढ़ते रहिए।


त्रिवेदी और धमीजा जैसे अपने सीनियर्स से प्रभावित होकर आईआईएम, कोलकाता में फर्स्ट इयर में पढ़ने वाले आदित्य कुमार ने अपनी समर इंटर्नशिप असम के कामरूप इलाके में काम करने वाली एनजीओ ‘सोलैस’ के साथ करने का फैसला किया है। यह फैसला उन्होंने किया कैसे? उनका कहना है, ‘असम और पूर्वोत्तर के दूसरे राज्यों में आतंकवाद और हिंसा बड़ी समस्या है।


इस वजह से वहां की दूसरी बड़ी दिक्कतों की तरफ लोगों का ध्यान नहीं जा पाता। इसी वजह से तो वहां का अब भी विकास नहीं हो पा रहा है। ‘सोलैस’ यहां ग्रामीण समस्याओं, शिक्षा और बाल श्रम जैसे उपेक्षित मुद्दों पर नजर डालने की कोशिश करता है।’ आदित्य अगर समाज सेवा में लगे हुए हैं, लेकिन कुछ ऐसे भी हैं जो अपनी अपना उद्यम लगाने में व्यस्त हैं।


हेमंत बंसल का कहना है,’मेरे लिए तो अपना खुद की कंपनी शुरू करना किसी दूसरे का ऑडर मानने से ज्यादा अच्छी बात है। मैंने आईआईएम में जो कुछ सीखा है, उसे मैं अपनी कंपनी को खड़ा करने में इस्तेमाल करूंगा।’ बंसल राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में अपनी फैक्टरी लगाने की सोच रहे हैं, जिसमें शुरू में 50-100 लोग-बाग काम करेंगे।


आईआईएम के इतिहास में एक दौर वह भी हुआ करता था, जब अपना धंधा शुरू करना बुरी बात हुआ करती थी। तब अपना उद्यम लगाने की ख्वाहिश रखने वाले शख्स को लालची समझा जाता था। लेकिन आज आईआईएम अहमदाबाद के छात्र निर्मल कुमार के लिए यह एक बड़ा मौका है।


वह चाहते तो वह भी अपने साथियों की उस भीड़ में शामिल हो जाते, जिन्हें बड़े-बड़े कॉरपोरेट हाऊसों की तरफ मोटे-मोटे ऑफर आते हैं। लेकिन उन्होंने अपने दिल की आवाज सुनने की ठानी। उन्होंने अपनी खुद की ऑउटडोर ऐड एजेंसी खोली है। इस एजेंसी को खोलने का ख्याल उनके दिल में तब आया, जब उन्होंने यह देखा कि हर दिन देश के रेलवे स्टेशनों पर हजारों यात्री घंटों बिताते हैं। उन्हें लगा कि यह सही जगह हो सकती है, लोगों का ध्यान खींचने के लिए।


उनका कहना है कि, ‘ऑउटडोर विज्ञापनों के मामले में नई सोच का तो घोर अभाव है। इसी वजह से ज्यादातर कंपनियां अपने ग्राहकों को खो रही हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह यही है कि ज्यादातर कंपनियां पुरानी सोच से बाहर नहीं निकलना चाहतीं। विज्ञापन के नए तरीके और साधन अपना कर वह अपने उत्पाद की मदद कर सकती हैं।’


वैसे, आईआईएम अहमदाबाद के ही अंकित माथुर व सात्विक उपाध्याय को केवल नई सोच ने ही नहीं, बल्कि नंबरों ने भी काफी लुभाया। उन्होंने दिल्ली के फैकल्टी फॉर मैनेजमेंट स्टडीज (एफएमएस) की नेहा जुनेजा और अपने एक और साथी के साथ मिलकर एक ऑनलाइन पोर्टल, एशियापैसा.कॉम लॉन्च कर दिया। उनकी यह वेबसाइट रिटेल निवेशकों को वायदा बाजार विश्वसनीय और व्यापक जानकारी बड़ी आसानी के साथ देती है।


दूसरी तरफ, आईआईएम, इंदौर के ध्रुव भूषण और अनुभव जैन ने तो एक अनोखी ही वेबसाइट खोल रखी है। ऑवरऑनबुक.कॉम नाम के इस वेबसाइट पर किताब लिखी जाती है। सचमुच इस वेबसाइट का कॉन्सपेट काफी अनोखा है। इस वेबसाइट पर आपको मिलेगी एक स्टोरी लाइन, जिसे जरूरत होती है डेवलप करने की। एक बार कहानी पूरी हो जाती है, तो यह मान लिया जाता है कि इसे छपने के लिए भेज दिया गया है।


इस वेबसाइट पर अब तक करीब 50 हजार लोग-बाग आ चुके हैं। इस पर तो करीब 200 मेंबर रजिस्टर भी हो चुके हैं। भूषण का कहना है कि, ‘अब स्टोरी कंपलीट करने के बाद अब हम शॉर्ट स्टोरीज, बायोग्राफी और तो और फिल्मों की तरफ भी जाना चाहते हैं।’ अब तो इस वेबसाइट के लिए भूषण और जैन ने पैसे अपनी बचत से ही जुटाए हैं। लेकिन वह सोच रहे हैं एक बड़े विस्तार योजना के बारे में, जिसके लिए जरूरत पड़ेगी काफी पैसों की।


आईआईएम, कोलकाता में अंकुर गट्टानी 2006-08 बैच के इकलौते ऐसे स्टूडेंट हैं, जिन्होंने प्लेसमेंट के लिए नहीं बैठने का फैसला किया है। उन्होंने अपने एक ऑनलाइन पोर्टल, लाइफलाइन्स.कॉम की शुरूआत की है। साथ ही, उन्होंने अपनी कंपनी वनलाइफ नोलेज सर्विसेज की भी स्थापना की है। वह इस कंपनी के सीईओ हैं।


वैसे, इस वक्त उनका यह वेबसाइट टेस्ट रन फेज में चल रहा है। इस वक्त उसे मैनेज करने की जिम्मेदारी संभावी है अपैक्स डिवीजन ने। यह ऑफशोर सॉफ्टवेयर ऑउटसोर्सिंग कंपनी को वेब डिजाइनिंग और डेवलपमेंट में महारत हासिल है।


लेकिन क्या अपने धंधा शुरू के लिए पैसों का जुगाड़ कर पाना आसान है? बिल्कुल नहीं। निर्मल कुमार जैसे आत्म विश्वास से लबरेज इंसान के लिए भी पैसों का इंतजाम कर पाना कोई आसान काम नहीं था। अहमदाबाद शहर में खुद का ऑउटडोर एड्वर्टाइजिंग एजेंसी को लॉन्च करने लिए उन्हें काफी पापड़ बेलने पड़े थे। निर्मल की राह में पैसों की कमी ही इकलौता रोड़ा था। उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि भी आर्थिक रूप से बेहद अच्छी नहीं थी।


लिहाजा, वह पैसों के लिए अपने परिवार वालों पर भी निर्भर नहीं रह सकते थे। दूसरी तरफ, उसके पास इतने रुपये नहीं थे कि वे अपने सपने को हकीकत का चोला पहना सकें। लेकिन एक दिन निर्मल की किस्मत जाग उठी। उनके लिए एक निवेशक देवदूत की तरह आया और निर्मल को 20 लाख रुपये मुहैया करवाए। इसके बाद तो निर्मल ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। उनका कहना है, ‘लोगों से मिला रिस्पॉन्स वाकई काफी जबरदस्त था।


अब तो हम अपने कारोबार को गुजरात के चार दूसरे स्टेशनों की तरफ लेकर जाएंगे। इस बारे में हम वेस्टर्न रेलवे से बातचीत कर रहे हैं। इसके अलावा, हम इसी तरह के कारोबार के लिए गुजरात राज्य सड़क परिवहन निगम से भी गठजोड़ करने की जुगत में हैं।’


बहरहाल, एशियापैसा.कॉम के प्रमोटरों के लिए मनी कभी भी कोई मैटर नहीं था। इसकी सबसे बड़ी वजह तो यह थी कि वे अच्छी तरह जानते थे कि इस कारोबार के लिए उन्हें बहुत ज्यादा पूंजी की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। साथ ही, वे खुद ही सारी जानकारी मुहैया करवाएंगे और खुद ही उनका विश्लेषण भी करेंगे।  उन चारों ने अपनी समर इंटर्नशिप के दौरान कमाए गए पैसे जुटाए। साथ ही, उन्होंने अपने परिवार से भी वित्तीेय मदद मांगी।


नेहा ने बताया, ‘हम अपनी वेबसाइट पर आने वाले किसी भी इंसान को भ्रम में नहीं डालना चाहते हैं, इसलिए अपनी वेबसाइट पर हमलोगों ने विज्ञापन को नहीं लगाने का फैसला किया है। हमलोगों को पूरी उम्मीद है कि हम जो सेवाएं मुहैया करवाएंगे, उसी के जरिए हमें काफी कमाई हो जाएगी।’ हालांकि, उनलोगों की इस वेबसाइट ने सूचनाएं प्राप्त करने के लिए एक खबरिया चैनल और नेशनल स्टॉक एक्सचेंज से भी गठजोड़ कर लिया है।


नेहा ने यह भी बताया, ‘न्यूज चैनल हम लोगों को दिन भर लाइव न्यूज मुहैया करवाएगी। इसके अलावा, हमलोग बाजार पूर्वानुमान, बाजार आंकड़े, दिनभर में हुई शेयर की गतिविधियों का विश्लेषण और अन्य विश्लेषणात्मक आंकड़ों को प्रतिदिन मिनट दर मिनट मुहैया करवाया जाएगा। हम यह सारा विश्लेषण खुद ही करेंगे।’ दूसरी तरफ, उपाध्याय का कहना कि, ‘आईआईएम के प्लेसमेंट में नहीं बैठना आज कोई बड़ी बात नहीं रह गई है।


आज हम सभी बहुत खुश हैं क्योंकि हमें मौका मिला है अपने पसंद का काम करने का। आज हम वायदा कारोबार कर रहे हैं। साथ ही, हम दूसरे खुदरा निवेशकों की भी मदद कर रहे हैं।’ नए जमाने के ये नए उद्यमी उसी करिश्मे को दोहराने की कोशिश कर रहे हैं, जो फेसबुक ने सोशल नेटवर्किंग की दुनिया में किया था। ये छोटी से छोटी जानकारी भी सही समय पर पहुंचा देते हैं।


अब तो वे रिटेल निवेशकों की मदद के लिए नए मॉडयूल निकालने वाले हैं। वे ऐसे ही एक वेबसाइट को हिन्दी में भी लॉन्च करने वाले हैं।दूसरी तरफ, हैदराबाद स्थित इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस के संजना राय और प्रदीप मशीनी ने अपनी नैनोटेक्नोलॉजी कंपनी के  लिए 1.5 लाख डॉलर की जुटाए हैं। यही नहीं, उन दोनों की योजना अगले कुछ सालों में एक करोड़ डॉलर जुटाने की है।


दूसरी तरफ, कुछ ऐसे भी लोग हैं जिन्हें दूसरों के आगे नहीं झुकने की जरूरत नही है। ऐसे ही मिसाल हैं, आईआईएम-लखनऊ के हेमंत बंसल। इसकी वजह है मजबूत पारिवारिक पृष्ठभूमि। उनके परिवार का अच्छा-खासा कारोबार है। इस वजह से तो इन्हें पैसों के कम पड़ने का डर नहीं सताता। हेमंत ने बताया, ‘मैं प्राइवेट या इक्विटी निवेशकों को जुटाने में लगा हुआ हूं। इस कारोबार में 20-30 फीसदी पूंजी तो मैं खुद ही लगाऊंगा।


हालांकि, अगर इन लोगों का इंतजाम न भी हो पाया तब भी मुझे उम्मीद है कि मैं शुरुआती पूंजी का इंतजाम कर लूंगा।’ये कहानियां भारत की किसी भी प्रमुख प्रबंधन संस्थानों में नई नहीं है। पिछले साल भी कुछ छात्रों ने प्रबंधन संस्थानों की प्लेसमेंट को ठुकरा कर खुद के कारोबार को शुरू करने का जोखिम उठाया था। पिछले साल, श्रीराम विद्यानाथन ने बेंगलुरु में बू्रहॉहॉ नामक एक इंटरटेनमेंट लाउन्ज बनाने का फैसला किया था।


हालांकि, उन्हें अब भी काफी मुश्किल का सामना करना पड़ रहा है, लेकिन उनका हौसला नहीं टूटा है। वह बेंगलुरु, हैदराबाद और चेन्नई में छह और बू्रहॉहॉ खोलने की योजना बना रहे हैं। आईआईएम, कोझिकोड के एक पूर्व छात्र ने बताया कि, ‘ हम जल्दी हार नहीं मानते। मैनेजमेंट की पढ़ाई हमें खतरों का सामना करते हुए भी अपना आत्म विश्वास का लेवल हाई रखने में मदद करती है।’ वाकई यह जज्बा सलाम करने  योग्य है।

First Published - April 25, 2008 | 11:27 PM IST

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