कोलकाता से करीब 130 किलोमीटर दूर स्थित नंदीग्राम इस समय जबरदस्त सियासी संग्राम का रण बना हुआ है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री एवं तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी का मुकाबला करीबी सहयोगी से सियासी विरोधी बने शुभेंदु अधिकारी से है। यह मुकाबला पूरे राज्य के चुनावी परिदृश्य का सबसे बड़ा संग्राम बन चुका है।
इस विधानसभा क्षेत्र में हर तरफ ‘बांग्ला निजेर मेयेकेइ चाइ’ (यानी बंगाल अपनी बेटी चाहता है) के पोस्टर एवं बैनर नजर आते हैं। शुभेंदु अधिकारी भी अपनी तरफ से ‘नंदीग्राम- मेदिनीपुर अर भूमिपुत्र के चाइ, बहिरगत नाइ’ का नारा बुलंद करते हुए बाहरी के बजाय भूमिपुत्र के ही लोगों की पसंद होने का दावा कर रहे हैं। इसके साथ दोनों पक्षों द्वारा किए जाने वाले मंदिरों के दर्शन-पूजन को भी जोड़ दें तो तस्वीर धर्म एवं राजनीति के घालमेल वाली बन जाती है। अब नंदीग्राम के करीब 2.57 लाख मतदाताओं को ही तय करना है कि वे किसके दावे पर यकीन करेंगे।
पिछले कुछ दिनों में ममता ने उस जगह के साथ अपनी जड़ों को फिर से मजबूत करने की कोशिश की है जिसने उन्हें आज से 10 साल पहले पहली बार सत्ता की कुर्सी तक पहुंचाने की जमीन तैयार की थी। इसकी शुरुआत स्थानीय कार्यकर्ताओं के सम्मेलन से हुई जहां पर उन्हें मां दुर्गा की स्तुति करते हुए चंडी पाठ किया और फिर कई मंदिरों के दर्शन के लिए चल पड़ीं।
तृणमूल कांग्रेस के स्थानीय नेताओं ने बताया कि नंदीग्राम से रवाना होने तक ममता 19 मंदिरों में दर्शन-पूजन कर चुकी थीं। इसके अलावा वह एक मुस्लिम दरगाह पर भी गईं।
इस बीच शुभेंदु अधिकारी ने महाशिवरात्रि के अवसर पर तीन अलग-अलग स्थानों पर पूजा-पाठ में हिस्सा लिया। ममता भी महाशिवरात्रि के अवसर पर कई धार्मिक आयोजनो में शामिल होने वाली थीं लेकिन पैर में लगी चोट के चलते ऐसा नहीं हो पाया। लेकिन वह फिर से सियासी समर में नजर आने लगीं।
नंदीग्राम संग्राम के दोनों योद्धाओं के धार्मिक स्थलों पर जाने से कार्ल माक्र्स की वह उक्ति लोगों को फिर से याद आ गई कि धर्म अवाम के लिए अफीम जैसा होता है। और बंगाल तो इसके चरितार्थ होने की दशा में अभी बस आया ही है।
राजनीतिक टिप्पणीकार सव्यसाची बसु राय चौधरी कहते हैं, ‘बंगाल में पहचान आधारित राजनीति की नई लहर वैचारिक विभेद के दौर की जगह लेती जा रही है।’
ऐसा नहीं है कि ममता और शुभेंदु दोनों अनायास ही नंदीग्राम के धार्मिक प्रतीकों का इस्तेमाल कर रहे हैं। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि नंदीग्राम में करीब 1.86 लाख हिंदू मतदाता हैं जबकि मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 71,000 है। तृणमूल कांग्रेस और उसकी मुखिया ममता दोनों को ही पता है कि अल्पसंख्यक समुदाय के 71,000 मतदाताओं पर उनकी मजबूत पकड़ है। ऐसी स्थिति में ममता को हिंदू मतदाताओं के बीच पैठ बनाकर भाजपा के संभावित मतदाताओं की संख्या में कटौती करने पर ध्यान देना है। तृणमूल के एक नेता कहते हैं, ‘हमें करीब 90 फीसदी मुस्लिम मतदाताओं का साथ मिलेगा। लेकिन शुभेंदु को 1.86 लाख हिंदू मतदाताओं में से सबके मत नहीं मिलने वाले हैं। इनमें से करीब 2 फीसदी लोग हमारी बूथ कमेटी के सदस्य हैं और उनमें से अधिकतर हिंदू ही हैं। अपने-अपने क्षेत्रों में उनका खासा आधार भी है।’ हालांकि शुभेंदु नंदीग्राम को लेकर यही संकेत देना चाहते हैं कि सिर्फ धर्म के दम पर वह यहां जीत नहीं हासिल करने वाले हैं। नंदीग्राम को वह अपना मजबूत गढ़ बताते हैं। इस राय से इत्तफाक रखते हुए एक स्थानीय व्यक्ति कहते हैं, ‘ममता बनर्जी भले ही नंदीग्राम प्रदर्शन का चेहरा रही हैं लेकिन जमीनी स्तर पर उस आंदोलन को खड़ा करने का श्रेय शुभेंदु अधिकारी को ही जाता है। वह यहां के लोगों को नाम से पहचानते हैं।’
शुभेंदु रोजगार एवं उद्योग-धंधों की कमी का मुद्दा भी उठा रहे हैं। नंदीग्राम के तमाम लोग काम की तलाश में गुजरात एवं उत्तर प्रदेश जाते हैं। नंदीग्राम में साक्षरता दर राज्य के औसत 76.26 फीसदी से कहीं अधिक है। इसके ब्लॉक-1 में साक्षरता दर 84.89 फीसदी है तो ब्लॉक-2 में यह 89.16 फीसदी है। स्थानीय नेता यह मानते हैं कि इतने शिक्षित लोगों के लिए रोजगार का इंतजाम करना एक मसला बना हुआ है।
वाममोर्चे को लगता है कि इस मुद्दे ने उसके लिए जगह बनाने का एक मौका दे दिया है। तीन दशक से सत्ता पर काबिज वामदलों को हटाने में नंदीग्राम से ही शुरू हुए आंदोलन की अहम भूमिका रही थी लेकिन अब वहां के आर्थिक सवाल उसे अपने माकूल लग रहे हैं। माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के वरिष्ठ नेता मोहम्मद सलीम कहते हैं, ‘हम नंदीग्राम में उद्योग, व्यापार एवं वाणिज्य को चुनावी मुद्दा बनाएंगे।’ माकपा ने इस चर्चित सीट से मीनाक्षी मुखर्जी को अपना उम्मीदवार बनाया है जो डेमोक्रेटिक यूथ फेडरेशन ऑफ इंडिया की पश्चिम बंगाल इकाई की अध्यक्ष हैं।
ममता की अगुआई वाली राज्य सरकार ने सड़क, बिजली एवं पेयजल जैसी बुनियादी सुविधाएं पूरे राज्य में मुहैया कराई हैं और नंदीग्राम भी इससे अछूता नहीं रहा है। इसके अलावा कई सामाजिक कल्याण योजनाएं भी उनकी रैलियों एवं सभाओं में दिख रही भीड़ के लिए एक हद तक जिम्मेदार हैं। खासकर महिलाएं ममता के कार्यक्रमों में अधिक नजर आ रही हैं। लेकिन यह सब पृष्ठभूमि में चला गया है। अब तो सारा ध्यान नंदीग्राम में मंदिर दर्शन के दौरान ममता को लगी चोट और उन पर हुए कथित हमले पर टिक गया है। इस समय हर तरफ और हर जगह यही चर्चा चल रही है कि ममता को यह चोट किसी हादसे में लगी है या फिर यह किसी हमले का नतीजा है। कुछ टेलीविजन चैनलों पर खुद को प्रत्यक्षदर्शी बताने वाले लोगों ने दावा किया कि यह महज एक हादसा था।
लेकिन तृणमूल कांग्रेस ने इसे मुख्यमंत्री पर हमला बताते हुए भाजपा पर हमला तेज कर दिया है। इस बारे में चुनाव आयोग से शिकायत करने के लिए तृणमूल ने एक संसदीय प्रतिनिधिमंडल भी भेजा। नंदीग्राम में पार्टी कार्यकर्ताओं ने विरोध प्रदर्शन भी किया। ममता ने अस्पताल में अपने बिस्तर पर लेटे हुए ही एक वीडियो संदेश जारी किया था जिसमें उन्होंने खुद को लगी चोटों का तो जिक्र किया लेकिन किसी हमले की बात नहीं की। अस्पताल से बाहर आने के बाद अब वह व्हीलचेयर का ही सहारा ले रही हैं।
सवाल है कि चुनाव संग्राम के शुरुआती दौर में लगी यह चोट नंदीग्राम के साथ-साथ पश्चिम बंगाल के सियासी संग्राम में किस तरह का असर दिखाएगी? इसका जवाब तो सिर्फ नंदीग्राम की फिजा में ही है।