बृज मोहन खेतान की कारोबारी यात्रा तब शुरू हुई थी जब उन्हें विलियमसन मेगर ऐंड कंपनी में शामिल होने का न्यौता मिला।
यह 1963 की बात है जब उन्होंने विलियमसन मेगर टी एस्टेट्स के प्रमुख प्रतिष्ठान विष्णुनाथ टी कंपनी में अच्छी खासी हिस्सेदारी हासिल की। एक साल बाद ही कंपनी ने उन्हें प्रबंध निदेशक की जिम्मेदारी दे दी।
उसके बाद से इस समूह ने दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की की। समूह का दायरा कई क्षेत्रों में फैल गया। अगर बृज मोहन ने इस कारोबारी साम्राज्य की बुनियाद रखने का काम किया है तो उनके बेटे दीपक खेतान और आदित्य खेतान इस मजबूत बुनियाद पर शानदार इमारत खड़ी करने का काम कर रहे हैं। बड़े बेट दीपक खेतान 1982 में कंपनी में शामिल हुए और उन्होंने बड़े पैमाने पर इंजीनियरिंग क्षेत्र में निवेश करना शुरू किया।
वह कहते हैं, ‘एमबीए करने के बाद ही मैं कंपनी में शामिल हुआ। इससे पहले मैंने टी डिवीजन में बतौर सहायक काम किया। अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। हमनें कुछ नई चीजों की शुरुआत की है और पुरानी चीजों को बंद भी किया है। जैसे 1986 में हमने मैकनेली भारत इंजीनियरिंग और बाद में 1989 में मेटल बॉक्स को खरीदा, लेकिन बाद में उन्हें बेच भी दिया।’
कंपनी ने इंडिया फॉयल्स को खरीदा और बाद में बेचा। खेतान के कारोबार में अहम मोड़ 1994 में आया जब कंपनी ने यूनियन कार्बाइड के बैटरी के कारोबार को 300 करोड़ रुपये में खरीदा। खेतान ने यूनियन कार्बाइड की बैटरी ब्रांड का नाम बदलकर एवरेडी कर दिया। एवरेडी ने कंपनी को काफी पहचान दिलाई।
इसके बाद कंपनी ने एक राइट कम पब्लिक इश्यू भी जारी किया जो सफल नहीं रहा। इसकी वजह से कंपनी के ऊपर काफी कर्ज भी चढ़ गया। 1982 से लेकर अब तक कंपनी में काफी कुछ बदलाव देखने को मिले। उस वक्त की 15 कंपनियों को अब चार कंपनियों में समायोजित कर दिया गया है।
खेतान बताते हैं कि लाइसेंस राज के बावजूद भी कंपनी ने लगातार तरक्की करते हुए कई दूसरी कंपनियों का अधिग्रहण करने में कामयाबी हासिल की। खेतान कहते हैं, ‘फिलहाल हम काफी संतुष्ट हैं। हमारी चार कंपनियों एवरेडी इंडस्ट्रीज इंडिया, मैकलॉयड रसेल इंडिया, मैकनेली भारत इंजीनियरिंग और किलबर्न इंजीनियरिंग का सालाना कारोबार 2,600 करोड़ रुपये से ज्यादा का है।’
दीपक खेतान के मुताबिक एवरेडी में से अलग-अलग कंपनियां बनाना समूह के लिए टर्निंग प्वाइंट रहा। वह कहते हैं, ‘डीमर्जर से विशेष उद्देश्यों वाली दो कंपनियां बन पाईं जिससे विस्तार के लिए संभावनाएं बनीं और कर्ज को उतारने में भी इस कवायद से मदद मिली।’ यह दीपक और उनके भाई का मिला-जुला फैसला था, जिसकी सफलता पर दीपक काफी गर्व की अनुभूति महसूस करते हैं।
मेगर से अलग होने के बाद खेतान की कंपनी मैकलॉयड रसेल ने इंग्लैंड में बसे मेगर परिवार से 17 चाय बागान खरीदे। अधिग्रहण के मामले में कंपनी के कदम यहीं नहीं थमे बल्कि कई दूसरी कंपनियों का भी मैकलियोड ने अधिग्रहण किया। इसकी नतीजा है कि मौजूदा दौर में 8 करोड़ किलोग्राम चाय के साथ मैकलॉयड दुनिया की सबसे बड़ी बल्क टी कंपनी है।
1963 में की अपने कारोबार की शुरुआत
दुनिया में बल्क टी की सबसे बड़ी कंपनी के मालिक
चार कंपनियों का सालाना कारोबार 2,600 करोड़ रुपये
एवरेडी को अलग करना रहा टर्निंग प्वाइंट