एक बार फिर बिहार में गन्ना एवं चीनी मिल की बात निकल पड़ी है। इस बार यह बात दूर तल्ख जाएगी। इसलिए कि सरकार भी तैयार है और चीनी उत्पादक भी।
गत तीन सालों के दौरान बिहार में 22 चीनी मिल खोलने के प्रस्ताव आए हैं और इनमें से अधिकतर को सरकार की मंजूरी मिल चुकी है। इतना ही नहीं, बंद पड़ी 15 सरकारी चीनी मिल को खोलने की कवायद शुरू हो चुकी है।
और एचपीसीएल जैसी कंपनी सुगौली एवं लौरिया की चीनी मिल को अपने अधीन भी कर चुकी है। वर्ष 2010 तक इन दोनों मिलों की शुरुआत होने की पूरी उम्मीद है। हालांकि चीनी मिल के लिए सबसे जरूरी चीज गन्ने की कमी से बिहार का यह कृषि आधारित उद्योग जरूर प्रभावित हो सकता है।
चीनी मिल की वर्तमान दशा
बिहार में कुल 9 चीनी मिलें चल रही हैं। चीनी उत्पादन के लिहाज से बिहार का योगदान नगण्य है। वर्ष 2005 के दौरान यहां कुल 2.4 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ तो 2006 में यह उत्पादन 4.25 लाख टन रहा।
बिहार के पूर्व गन्ना मंत्री नीतीश मिश्रा के मुताबिक अगर चीनी मिलों का विस्तार होगा तो आज की तारीख में बिहार ही इसके लिए सबसे उपयुक्त जगह है। यही वजह है कि 20 से अधिक चीनी मिलों ने बिहार में अपनी इकाई खोलने में दिलचस्पी दिखायी है। इनमें से 14 नई मिलें हैं तो बाकी अपनी क्षमता का विस्तार करना चाहती हैं।
खास कर उत्तरी बिहार का भौगोलिक वातावरण ऐसा है कि यहां गन्ने का उत्पादन भी आसानी से काफी अधिक मात्रा में हो सकता है। पश्चिमी चंपारण एवं गोपालगंज का इलाका गन्ना उत्पादन के लिए सबसे अधिक उपयुक्त हैं। पश्चिम चंपारण में सबसे अधिक 4 तो गोपालगंज में 3 चीनी मिलें हैं।
गन्ने का उत्पादन
फिलहाल बिहार में कृषि योग्य 5 फीसदी से भी कम जमीन पर गन्ने की खेती की जाती है। बिहार में कुल 80.26 लाख हेक्टेयर जमीन कृषि योग्य है। हालांकि वर्ष 2004 से लेकर वर्ष 2007 के दौरान गन्ने के उत्पादन में लगातार बढ़ोतरी दर्ज गयी है।
वर्ष 2004-05 के दौरान बिहार में कुल 104 हेक्टेयर जमीन पर गन्ने की खेती गयी और इसका उत्पादन 3769 टन रहा जो कि वर्ष 05-06 एवं 06-07 में बढ़कर क्रमश: 4337 व 5338 टन हो गया। देश के कुल गन्ना उत्पादन में बिहार का योगदान महज 1 फीसदी के आसपास है।
बिहार में गन्ने की उत्पादकता 46 टन प्रति हेक्टेयर है जो कि देश की औसत उत्पादकता 70 टन प्रति हेक्टेयर से काफी कम है। बिहार में चीनी प्राप्ति की दर देश में सबसे कम 9 फीसदी है जबकि राष्ट्रीय औसत 10.36 फीसदी है। उत्तम गुणवत्ता वाले गन्ने की कमी के कारण यहां की मिलों की पेराई अवधि साल में मात्र 122 दिनों की है।
मिश्रा कहते हैं, ‘बिहार में गन्ने के लिए कोई सरकारी मूल्य तय नहीं किया जाता है। चीनी मिल मालिकों की तरफ से ही गन्ने के लिए मूल्य तय होते हैं। दो साल पहले चीनी मिल मालिकों ने गन्ने के मूल्य में कमी कर दी। परिणाम स्वरूप गन्ना किसान अन्य फसल की ओर मुखातिब हो गए।’
दूसरी सबसे बड़ी दिक्कत जमीन की है। चीनी मिल के लिए प्रस्तावित कई जगहों पर किसान अपनी जमीन देने को तैयार नहीं है। और सरकार किसानों का विरोध झेलकर मिल स्थापित करने के पक्ष में नहीं है।