दीवाली के जश्न के बाद जब अगली सुबह नई दिल्ली के बाशिंदे जगे तब चारों तरफ जहरीले धुएं की धुंध छाई हुई थी और उन्हें इस साल की सबसे खतरनाक प्रदूषित हवा में सांस लेने को मजबूर होना पड़ा। हमेशा की तरह इस बार भी आतिशबाजी पर लगाए गए प्रतिबंधों का भरपूर उल्लंघन हुआ। दुनिया के सभी देशों की राजधानियों के मुकाबले नई दिल्ली की वायु गुणवत्ता इस वक्त सबसे ज्यादा खराब है। शुक्रवार से ही वायु गुणवत्ता काफी खराब होने लगी थी और लोगों को देश के सबसे बड़े त्योहार को मनाने की बड़ी कीमत चुकानी पड़ी क्योंकि हर जगह विषाक्त धुंध छा गई है।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुताबिक वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 500 के पैमाने पर 451 के स्तर पर पहुंच गया जो इस साल दर्ज बेहद ‘गंभीर’ स्थितियों का संकेत देता है। खराब वायु गुणवत्ता से स्वस्थ लोग भी प्रभावित हो रहे हैं और इससे उन लोगों पर गंभीर असर देखा जा रहा है जो पहले से ही किसी बीमारी से ग्रस्त हैं।
एक्यूआई एक घन मीटर हवा में विषाक्त कण पदार्थ पीएम 2.5 की सघनता को मापता है। दिल्ली में करीब 2 करोड़ लोग रहते हैं और शुक्रवार को पीएम 2.5 औसतन 706 माइक्रोग्राम रहा, जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) 5 माइक्रोग्राम के वार्षिक औसत से ऊपर किसी भी आंकड़े को असुरक्षित मानता है। हवाजनित पीएम 2.5 हृदय और सांस के रोग जैसे कि फेफड़ों के कैंसर का कारण बन सकता है। भारत में, विषाक्त हवा की वजह से सालाना एक लाख से अधिक लोगों की मौत होती है। सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी ऐंड क्लीन एयर (सीआरईए) के विश्लेषक सुनील दहिया ने कहा, ‘पटाखा प्रतिबंध दिल्ली में सफल नहीं रहा और प्रदूषण के मौजूदा बारहमासी स्रोतों की वजह से प्रदूषण खतरनाक स्तर तक पहुंच गया।’
हर साल या तो सरकार या देश का उच्चतम न्यायालय पटाखों पर प्रतिबंध लगाता है। लेकिन प्रतिबंध शायद ही कभी लागू होता हुआ नजर आता है। मामला तब और बदतर हो जाता है जब दीवाली भी उसी वक्त पड़ती है जब दिल्ली के पड़ोसी राज्यों, पंजाब और हरियाणा में किसान अगली फसल के लिए अपने खेतों को तैयार करने के लिए कटाई के बाद बची रह गई पराली को जलाते हैं।
केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के तहत आने वाले ‘सफर’ निगरानी प्रणाली के आंकड़ों के अनुसार इस बार अक्टूबर में रुक-रुक कर बारिश होने और हवाओं के कारण दिल्लीवासियों को कम से कम चार साल बाद इस महीने में साफ हवा में सांस लेने का मौका मिला था। आमतौर पर सर्दियों के महीनों के दौरान उत्तर भारत में प्रदूषण का स्तर बढ़ जाता है क्योंकि कम तापमान और हवा की गति में कमी आने से हवा में प्रदूषक तत्त्व लंबे समय तक वायुमंडल में फंसे रहते हैं।
नई दिल्ली के मैक्स हेल्थकेयर अस्पताल के एक डॉक्टर अंबरीश मि_ल, दिल्ली में चिंताजनक एक्यूआई रीडिंग पर अपनी हताशा जताते हुए कहते हैं कि राजधानी को रहने योग्य बनाने के प्रति प्रतिबद्धता में कमी से हालात और बिगड़ रहे हैं। उन्होंने ट्विटर पर एक पोस्ट में लिखा, ‘यह स्थिति एलर्जी और अस्थमा वाले लोगों के लिए भयानक है। हम कारणों पर अपनी तकरार जारी रखेंगे और पीडि़त होने के लिए मजबूर होते रहेंगे।’
भारत सरकार पर अक्सर प्रदूषण को रोकने के लिए पर्याप्त उपाय नहीं करने का आरोप लगाया जाता है क्योंकि वह दुनिया की दूसरी सबसे अधिक आबादी वाले देश में जीवन स्तर को बेहतर बनाने के लिए आर्थिक विकास को प्राथमिकता दे रही है। सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ग्लासगो में सीओपी26 जलवायु शिखर सम्मेलन में कहा कि भारत साल 2070 तक शुद्ध शून्य कार्बन उत्सर्जन के स्तर को हासिल कर लेगा लेकिन कुछ विशेषज्ञों ने माना कि यह लक्ष्य कम से दो दशक देरी से तय किया गया।