अगर कोलकाता में मारवाड़ियों के इतिहास का जिक्र हो और उसमें जूट उद्योग का नाम न आए, ऐसा हो ही नहीं सकता।
बंगाल में जूट उद्योग की शुरुआत करने का श्रेय स्कॉटलैंड के डयूनडी में एक जूट मिल मालिक मार्गरेट डॉनेली 1 को जाता है। शहर में जूट उद्योग की शुरुआत काफी पहले 18 वीं सदी में ही की गई थी।
1947 में ब्रिटिश शासन के खत्म होने के बाद राज्य में विदेशी जूट मिल मालिकों ने अपने जूट कारोबार को संपन्न मारवाड़ी कारोबारियों को बेच दिया। सिंघानिया, बागड़ी, बांगड़, पोद्दार, मूंदड़ा, बाजोरिया, गोयनका और बिड़ला ने अपने कारोबारी जीवन की शुरुआत शेयर या फिर जूट बाजार में ब्रोकर के तौर पर ही की थी।
आज भी कई युवा मारवाड़ी उद्यमी जूट उद्योग के जरिए ही अपने करियर की शुरुआत करते हैं। युवा पीढ़ी जूट मिल मालिकों से मुनाफे में हिस्सेदारी के आधार पर मिलों को चलाने के लिए लाइसेंस प्राप्त कर लेते हैं। इस तरह उनके कारोबारी जीवन की शुरुआत काफी समय से चली आ रही इस परंपरा के मुताबिक ही होती है।
जूट मिल मालिक घनश्याम शारदा बताते हैं, ‘स्वर्गीय जी डी बिड़ला ने भी अपने करियर की शुरुआत एक जूट ब्रोकर के तौर पर की थी और आगे जाकर वह एक प्रमुख जूट उत्पादक बन गए।’ अगर जूट कारोबार की प्रमुख हस्ती अरुण बाजोरिया का जिक्र न हो तो मारवाड़ी जूट कारोबारियों की कहानी अधूरी रह जाती है।
उन्होंने बांबे डाइंग के शेयर खरीदे थे, जिसको लेकर काफी विवाद खड़ा हुआ था और भारतीय प्रतिभूति एवं नियामक बोर्ड ने इस मामले की जांच भी की थी। उनकी दूरदर्शिता को अक्सर बिजनेस स्कूलों में केस स्टडी बनाया जाता है।
वर्ष 1919 में कोलकाता में कलकत्ता हेसियन एक्सचेंज लिमिटेड में कच्चे जूट और जूट उत्पादों की फ्यूचर ट्रेडिंग शुरू की गई। साल 1945 में मौजूदा ईस्ट इंडिया जूट और हेसियन लिमिटेड का गठन किया गया था ताकि कच्चे जूट और जूट उत्पादों का संगठित कारोबार किया जा सके।
उन दिनों को जूट उद्योग के लिए सबसे अच्छे दिनों में गिना जा सकता है क्योंकि भारत में कुल जूट उत्पादन का 95 फीसदी पश्चिम बंगाल से ही आता था। त्रिवेणी में हुगली नदी के तट पर, भद्रेश्वर, चंपदनी और श्रीरामपुर में मारवाड़ी जिन जूट मिलों को चलाते थे, उनमें सैकड़ों स्थानीय लोगों को रोजगार मिला हुआ था।
कुछ मारवाड़ियों ने यह पाया कि बेहतर दौर से गुजर रहे जूट उद्योग में भी मजदूर आंदोलन के जरिए एक हलचल पैदा हो गई थी। कई मिल मालिकों का मानना है कि बाद में इस आंदोलन ने आतंकवाद की शक्ल ले थी। पिछले साल मई में उत्तर 24 परगना के टीटागढ़ में एक जूट मिल के प्रबंधक की मिल परिसर में ही हत्या कर दी गई थी।
काफी समय से लंबित बकाये, प्रॉविडेंट फंड और ग्रैच्युटी जैसे मसलों पर संग्रामी मजदूर संगठन (एसएमयू) मिल प्रबंधन का विरोध कर रहा था। जूट मिल परिसर में हत्या की यह पहली घटना नहीं थी। दरअसल, जूट क्षेत्र में पीएफ को लेकर भुगतान में अक्सर गड़बड़ी पाई जाती है और खुद सरकारी अधिकारी भी इस बात को मानते हैं।
पैकेजिंग उद्योग में प्लास्टिक के दबदबे और जूट मिल मालिकों द्वारा उत्पादन की नई तकनीकों का इस्तेमाल नहीं करने से जूट की मांग काफी घट गई है और इससे जूट मिलों में उत्पादन कम होता गया है।
मौजूदा समय में कोलकाता में 59 जूट मिलें हैं जिनमें से 52 में काम चल रहा है। बाकी मिलों में नकदी की किल्लत के कारण काम बंद पड़ा है। ईस्ट इंडिया जूट ऐंड हेसियन एक्सचेंज अब बंद होने के कगार पर है और यहां फ्यूचर ट्रेडिंग भी नहीं के बराबर हो रही है।(समाप्त)
शहर के सबसे पुराने उद्योगों में से एक है जूट उद्योग
18 वीं शताब्दी में स्कॉटलैंड निवासी ने की थी शुरुआत
मारवाड़ी समुदाय इसी उद्योग से करता रहा है श्रीगणेश
समय के साथ कुछ फीकी पड़ी है चमक