देशव्यापी लॉकडाउन में चरणबद्ध तरीके से खुलापन आने के बाद मध्य प्रदेश की औद्योगिक इकाइयों ने कामकाम शुरू तो कर दिया है लेकिन उद्योगपतियों और उद्योग संगठनों की मानें तो मांग में कमी के चलते कारोबारी पूरी उत्पादन क्षमता का प्रयोग नहीं कर रहे हैं। कुछ औद्योगिक क्षेत्रों में कामगारों की कमी और पूंजीगत बाधाओं जैसे अन्य कारक भी उद्योग जगत के पहियों को थामे हुए हैं।
850 औद्योगिक इकाइयों वाले प्रदेश के प्रमुख औद्योगिक क्षेत्र पीथमपुर में ज्यादातर इकाइयां अपनी कुल क्षमता का 30 से 35 फीसदी उत्पादन कर रही हैं। इसके लिए एक ओर जहां 50 फीसदी श्रम शक्ति के साथ काम करने का सरकारी फरमान उत्तरदायी है, वहीं परिवहन की समस्या, श्रमिकों का उपलब्ध न होना, आयातित कच्चे माल की कमी तथा लॉकडाउन के दिनों में मशीनों का सही रखरखाव नहीं हो पाना भी एक बड़ी वजह है।
पीथमपुर इंडस्ट्रियल एसोसिएशन के अध्यक्ष गौतम कोठारी कहते हैं, ‘पीथमपुर में स्थानीय श्रमिक नहीं हैं। भले ही वे मध्य प्रदेश के दूसरे इलाकों के हों लेकिन फिलहाल वे यहां नहीं हैं। इसका असर उत्पादन पर पड़ रहा है। इससे भी बड़ी बात यह है कि आखिर उत्पादन किसके लिए किया जाए? बाजार में मांग ही नहीं है तो व्यापारी माल तैयार करके क्या करेगा?’
कारोबारियों के मुताबिक मार्च के अंत में लॉकडाउन लगने के कारण पिछले वित्त वर्ष के ऑर्डर लगभग निपट चुके थे लेकिन नए साल में कोई नया ऑर्डर कंपनियों को नहीं मिला। कुछ कंपनियां पुराने बकाया ऑर्डर को पूरा करने के लिए काम कर रही हैं। इस बीच कंपनियों को फंड की भी समस्या आई क्योंकि लॉकडाउन के चलते बड़े पैमाने पर पुराना भुगतान बकाया है। मांग खत्म होने और आपूर्ति बाधित होने से उनका राजस्व भी प्रभावित हुआ। लॉकडाउन के दौरान भी कारोबारियों को बिजली बिल तथा अन्य तयशुदा लागत का भुगतान करना पड़ रहा था।
तकरीबन 900 छोटे-बड़े उद्योगों वाले भोपाल के गोविंदपुरा इंडस्ट्रियल एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष सुनील कुमार पाली के मुताबिक गोविंदपुरा औद्योगिक क्षेत्र भी 30 से 35 प्रतिशत क्षमता के साथ उत्पादन कर रहा है। पाली कहते हैं, ‘चूंकि कोई नई आपूर्ति नहीं होनी है इसलिए कंपनियों के पास ऑर्डर की कमी है। जब ग्राहक ही नहीं हैं तो माल किसके लिए बनाया जाए। बस मशीनें चलाने भर के लिए काम हो रहा है।’ कारोबारियों का अनुमान है कि इस तिमाही के बाद चीजें पटरी पर आने लगेंगी क्योंकि श्रम कानूनों में बदलाव का प्रभावी लाभ भी कुछ हद तक सामने आने लगेगा।
कोविड-19 के कारण कारोबारियों को फैक्टरियों में कामकाज के मानकों में बदलाव करना पड़ा है। इससे न केवल खर्च बढ़ा है बल्कि उत्पादकता भी प्रभावित हुई है। कंपनियों ने अपने आकार के अनुसार थर्मल स्कैनिंग, सैनिटाइजेशन की व्यवस्था अलग-अलग की है। बड़ी कंपनियों में इसकी मासिक लागत 30,000 रुपये तक की आ रही है। इसके अलावा श्रमिकों को सामाजिक दूरी का पालन अनिवार्य रूप से करना पड़ रहा है। इसका असर श्रमिकों की उत्पादकता पर पड़ा है क्योंकि वे पहले की तरह स्वाभाविक अंदाज में और किफायती ढंग से काम नहीं कर पा रहे हैं।
राजधानी भोपाल के ही एक अन्य औद्योगिक क्षेत्र मंडीदीप में कुल 450 औद्योगिक इकाइयां हैं। इनमें से 40 बड़ी तथा शेष छोटे और मझोले उपक्रम हैं। इस औद्योगिक क्षेत्र की सभी इकाइयां चल रही हैं और वे करीब 80 फीसदी क्षमता के साथ काम कर रही हैं।