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महाराष्ट्र में सरकार और विपक्ष दोनों उतरे सड़क पर

Last Updated- December 12, 2022 | 8:42 AM IST

महाराष्ट्र में सत्ताधारी और विपक्ष दोनों सड़क पर उतर कर एक-दूसरे पर जनता को परेशान करने का आरोप लगा रहे हैं। पेट्रोल-डीजल के बढ़े हुए दाम को लेकर शिवसेना केंद्र सरकार को घेरने के लि ए सड़क पर उतरी,  जबकि भाजपा राज्य में बढ़े हुए बिजली के बिल को मुद्दा बनाकर राज्य सरकार पर हमलावार रही।
पेट्रोल-डीजल के आसमान छू रहे भाव के खिलाफ शिवसेना ने राज्यभर में मोर्च निकालकर केंद्र सरकार की नीतियों का विरोध किया।  शिवसेना का कहना है कि पेट्रोल-डीजल के भाव बढ़ने से महंगाई बढ़ रही है और इससे जनता में असंतोष है। आंदोलन कर रहे शिवसेना विधायक प्रताप सरनाइक ने कहा कि महाराष्ट्र की जनता के साथ उद्धव ठाकरे  पूरी ताकत के साथ खड़े हैं। इसलिए शिवसेना केंद्र सरकार के खिलाफ यह आंदोलन कर रही है जिससे केंद्र को जनता की तकलीफों का आभास हो सके।
दूसरी तरफ भाजपा ने बिजली बिल के खिलाफ राज्यभर में आक्रामक आंदोलन किया। भाजपा ने अपने आंदोलन को ताला ठोको नाम दिया। बिजली बिलों को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री और विपक्ष के नेता देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि जिस तरह से सरकार ने लोगों को बिजली कनेक्शन काटने का नोटिस भेजा है, उसे देखकर ऐसा लगता है कि राज्य में मुगलों का शासन फिर से लौट आया है। बिजली का बिल नहीं भरने वाले महाराष्ट्र के करीब 75 लाख बिजली ग्राहकों का कनेक्शन काटने की धमकी सरकारी बिजली कंपनी महावितरण ने दी है। इन 75 लाख बिजली ग्राहकों में ज्यादातर किसान और आम लोग हैं। इतने बिजली कनेक्शन काटे गए तो करीब चार करोड़ लोग प्रभावित होंगे। महावितरण बिजली कंपनी की इस धमकी के विरोध में बीजेपी आज पुरे राज्य में कंपनी के कार्यालयों के बाहर बड़ा आंदोलन कर रही है।
भाजपा का कहना हैं कि कोरोना संकट और नौकरियां जाने की वजह से ये लोग बिजली का बिल नहीं भर पाए हैं। ठाकरे सरकार ने वाहवाही लूटने के लिए कोरोना काल में वादा किया था कि 100 यूनिट तक के बिजली बिल माफ कर दिए जाएंगे। बाद में ऊर्जा मंत्री का ये प्रस्ताव उप मुख्यमंत्री अजित पवार ने ठुकरा दिया। किसान और आम जनता वैसे ही परेशानियों के बोझ तले दबी हुई है और सरकार से राहत की अपेक्षा कर रही है। बिजली बिल माफ करने अपने वादे को सरकार पूरा करे,  ठाकरे सरकार बिजली बिल का बोझ खुद उठाए।
पेट्रोल और डीजल के आसमान छूते दाम को लेकर सड़क पर उतरने के पहले शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना के जरिए केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए लिखा है कि केंद्र की सरकार कहती कुछ है और करती कुछ अलग ही है। पेट्रोल-डीजल की दर वृद्धि के मामले में यही हुआ है। सामना के माध्यम से शिवसेना ने कहा कि पेट्रोल-डीजल की कीमत 35 से 37 पैसे बढ़ी है। चार दिन पहले सरकार के एक मंत्री ने कहा था कि पेट्रोल-डीजल पर लगाए गए कृषि उपकर का कोई भी परिणाम पेट्रोल-डीजल की दर वृद्धि पर नहीं होगा। फिर चार ही दिन में यह दर वृद्धि कैसे हुई? अब यह सरकार हमेशा की तरह एक तो चुप्पी साधकर बैठ जाएगी या फिर अंतरराष्ट्री य बाजार में आए उतार-चढ़ाव की ओर उंगली दिखाकर हाथ खड़े कर लेगी। पेट्रोल पर प्रति लीटर ढाई रुपये तो डीजल पर प्रति लीटर चार  रुपये कृषि उपकर लगाया जाएगा। इसका हवाला देते हुए की गई ईंधन दर वृद्धि कम कैसे है? इसका कृषि कर से संबंध क्यों नहीं है?
रसोई गैस की कीमत भी बढ़ा दी गई, रसोई गैस सिलिंडर महंगा और व्यावसायिक गैस सिलिंडर सस्ता किया गया। रसोई गैस सिलिंडर सीधे 25 रुपये महंगा हो गया तो व्यावसायिक गैस सिलिंडर की कीमतें पांच रुपये सस्ती हो गईं। मूल्य निर्धारण नीति का यह कैसा मामला है? सामना में लिखा है कि लॉकडाउन के कारण पहले ही सामान्य जनता की कमर टूट गई है। कई लोगों की नौकरी छिन गई है। जिनकी सुरक्षित है, उन पर भी नौकरी जाने की तलवार लटक रही है। ऐसे समय में आम जनता की जेब में कुछ डाल नहीं सकते होंगे तो कम से कम जितना कुछ शेष बचा है, उसे भी क्यों छीनते हो? केंद्रीय वित्तीय बजट में सपनों की बरसात करनेवाली सरकार ने मध्यमवर्गीय व नौकरीपेशा वालों की साधारण आय कर में राहत की अपेक्षा भी पूरी नहीं की।

First Published - February 5, 2021 | 8:27 PM IST

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