कानपुर के उद्योगपतियों ने चमड़ा फैक्टरियों से निकलने वाले कचरे के बेहतर इस्तेमाल का तरीका ढूंढ़ निकाला है।
शहर के प्रमुख चमड़ा उत्पादक मिर्जा इंटरनैशनल ने एक अनूठे प्रयास की शुरुआत की है जिसके जरिए इस कचरे से बिजली तैयार की जा सकेगी। इसके लिए कंपनी ने 20 मेगावाट क्षमता की एक विद्युत इकाई लगाई है जिसमें चमड़ा शोधन के बाद बचे अवशिष्ट से बिजली तैयार की जाएगी।
कचरे से बिजली तैयार करने की इस तकनीक का विकास हरकोर्ट बटलर टेक्नोलॉजिकल इंस्टीटयूट (एचबीटीआई) में शोध के छात्र रंजीत सिंह ने किया है, जो बायोगैस तकनीक पर काम कर रहे हैं।
मिर्जा इंटरनैशनल के प्रबंध निदेशक इरशाद मिर्जा ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि इस परियोजना को प्रायोगिक तौर पर चलाया जा रहा है और जल्द ही यहां पूरी क्षमता के साथ काम शुरू हो जाएगा। उन्होंने बताया कि योजनाबद्ध तरीके के साथ विस्तार के जरिए हम 250 मेगावाट बिजली पैदा करने का लक्ष्य रखते हैं।
उन्होंने बताया कि अगले हफ्ते से पहली इकाई पूरी क्षमता के साथ काम करना शुरू कर देगी हालांकि, उत्पादन पहले ही शुरू किया जा चुका है। उन्होंने बताया कि बिजली आपूर्ति करने वाली स्थानीय कंपनी केसको जिस दर पर बिजली वितरित करती है, उससे 75 फीसदी कम दर पर इन इकाइयों में बिजली तैयार की जा रही है।
इस इकाई के लिए तकनीक का विकास करने वाले रंजीत सिंह ने बताया कि इस संयंत्र में कुशलतापूर्वक कचरे का निपटारा किया जाएगा और उससे बिजली तैयार की जाएगी। सिंह ने बताया, ‘चमड़ा शोधन फैक्टरियों में जानवरों के कई टन चमड़े बचे रह जाते हैं जिन पर रसायन का इस्तेमाल किया गया होता है। इस चमड़े को पहले गंगा में ऐसे ही बहा दिया जाता था पर अब हम इसे गाय के गोबर के साथ मिलाकर इसका इस्तेमाल करेंगे। इस मिश्रण को 40 दिनों के लिए ऐसे ही छोड़ दिया जाएगा, जिसके बाद इससे ऊर्जा उत्पादन के लिए ईंधन गैस पैदा होगी।’
फिलहाल आठ टन अवशिष्ट ईंधन से हर दिन 20 मेगावाट बिजली तैयार की जा रही है और साथ ही जैविक खाद और कैल्शियम कार्बोनेट भी तैयार हो रहा है। प्रति इकाई बिजली तैयार करने में महज 1.5 से 2 रुपये का खर्च बैठता है।
एक अनुमान के मुताबिक शहर में चमड़ा फैक्टरियों से हर दिन करीब 100 टन अवशिष्ट चमड़ा निकलता है, जिससे बड़ी आसानी से 2500 मेगावाट बिजली पैदा की जा सकती है। मिर्जा ने बताया, ‘हम दूसरी चमड़ा फैक्टरियों के मालिकों से बात कर रहे हैं ताकि बड़े पैमाने पर अवशिष्ट चमड़े से बिजली तैयार की जा सके।’
यह प्रयास जमुआ इलाके के किसानों के लिए एक बड़ी राहत साबित होगी और इससे शहर में दूषित भूमिगत जल की समस्या का भी समाधान मिल सकेगा। हाल ही में यूपीपीसीबी की ओर से किए गए एक सर्वे में पाया गया है कि शहर में भूमिगत जल मानक स्तर से 100 गुना अधिक प्रदूषित हो चुका है।
नई शुरुआत
चमड़ा शोधन के बाद बचे अवशिष्ट से बनाई जाएगी बिजली
इससे 1 यूनिट बिजली तैयार करने में होते हैं मात्र 1.5-2 रुपये खर्च