कर की मार और पड़ोसी राज्यों की मिलों से बाजार में कड़े मुकाबले के बीच मध्य प्रदेश सरकार ने सेधंवा स्थित रुई की जिंनिंग और प्रेसिंग (सफाई और गांठ बनाना) मिलों को प्रवेश कर माफी से मना कर दिया है।
पिछले दिनों बजट सत्र में राज्य सरकार ने फाइवर (रेशे) के निर्माण में उपयोग के लिए रुई मंगाने पर सूत मिलों को प्रवेश कर से मुक्त करने की घोषणा की थी।सेंधवा बडवानी जिले का एक बड़ा कस्बा है जो महाराष्ट्र की सीमा से लगा है। यहां की मंडी भारत ही नहीं बल्कि एशिया की एक बड़ी कॉटन (रुई) मंडी के रुप में जानी जाती थी। लेकिन पिछली सरकार में मंडी टैक्स एक फीसदी से बढ़ाकर ढ़ाई फीसदी कर दिया था।
पिछले साल काफी ना-नुकर के बाद प्रदेश के वित्त मंत्री राघव जी ने बजट में कपास उद्योग को शून्य प्रवेश कर के दायरे में ला दिया था। लेकिन वाणिज्य कर विभाग ने जिनिंग और प्रेसिंग मिलों को इस सुविधा का लाभ नहीं दिया है।
सेंधवा कॉटन मिल एसोसिएशन के सचिन गोपाल तायल के मुताबिक ‘हमसे कहा गया है कि मिलों को प्रवेश कर देना पड़ेगा। राज्य शासन ने रुई उद्योग को हाल ही में प्रवेश कर से मुक्त किया है। सेंधवा की मिलें लगभग बंद होने की कगार पर है। पडाेसी राज्यों जैसे महाराष्ट्र और गुजरात में प्रवेश कर की दर शून्य है। वहां मंडी टैक्स 0.59 फीसदी है।
उन्होंने बताया कि इसलिए किसान महाराष्ट्र की मंडियो में अपना माल बेच रहे है। पिछले साल कर की दर कम होने से इस साल मंड़ी आवक में बढ़ोत्तरी हुई है लेकिन प्रवेश कर को पूरी तरह से खत्म करने की उद्योग को राहत दी जा सकती है।’
उन्होंने कहा कि राज्य शासन को सूत मिलों और जिनिंग मिलों में अन्तर नहीं रखना चाहिए। इस संबध में वाणिज्य कर विभाग के प्रमुख सचिव जी पी सिंघल ने स्पष्ट किया, ‘सेंधवा या प्रदेश की अन्य जिनिंग मिलों पर प्रवेश कर लगेगा। हमारे पास दूसरे स्रोत नहीं है ..हालांकि, हम किसी न किसी व्यवस्था पर विचार कर रहें है ताकि इन्हें राहत पहुंचाई जा सके।’ सेधंवा में चार साल पहले सौ से भी ज्यादा मिलें थी। इनकी संख्या घटकर अब महज 24 रह गई है।
अधिकतर मिलें या तो बंद हो गई हैं या महाराष्ट्र चली गई है। महाराष्ट्र राज्य सरकार ने वहां किसान परिसंघ के माध्यम से एकल खरीद प्रणाली को समाप्त कर दिया और मंडी टैक्स घटाकर 0.50 फीसदी कर दिया।इससे किसानों और मजदूरों ने सेंधवा से पलायन कर दिया। ज्यादातर मिलें पास ही महाराष्ट्र में चालीस गांव, जलगांव और औरंगाबाद में स्थापित हो गई।
केवल सेंधवा ही नहीं बल्कि पास के स्थानों जैसे खण्डवा, धार, धामनौद, मनावर, खेतिया, पानसेमल, कुक्षी और अजंद की मिलें भी महाराष्ट्र चली गई। सभी मिलों को चलने के लिए लगभग 2,500 रुई की गांठो की जरुरत होती है। प्रत्येक गांठ का वजन 160 किलो होता है।
उन्होंने बताया कि प्रवेश कर के अलावा मिलों को मंहगी बिजली और 0.20 फीसदी उपकर भी देना होता है। एक अनुमान के मुताबिक मध्य प्रदेश में 7 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में कपास की खेती होती है और करीब दस लाख गांठे तैयार की जाती है।