मध्य प्रदेश में किसानों को खेती के लिए कर्ज देने के मुद्दे पर राज्य सरकार और बैंकों में आजकल तनातनी चल रही है। सवाल यह है कि क्या खेती के लिए दिया जा रहा कर्ज सही हाथों में जा रहा है।
सही कार्यप्रणाली के अभाव में इस बात की पूरी आशंका है कि बड़े किसान योजनाओं का पूरा फायदा उठा ले और छोटे किसान हाथ मलते रह जाए। राज्य सरकार और बैंकों ने किसानों द्वारा समय पर कर्ज की अदायगी न करने का दोष एक-दूसरे पर मढ़ा है।
राज्य सरकार ने बैंकों से कहा है कि यदि उनके पास जरुरतमंद किसानों को प्राथमिकता के आधार पर कर्ज देने के लिए कोई योजना नहीं है तो यह काम राज्य सरकार अपने दम पर करेगी। जवाब में बैंकों ने सभी फसलों को फसल ऋण के दायरे में न लाने के लिए राज्य सरकार को दोषी ठहराया है। इसका खामियाजा बड़ी संख्या में छोटे किसानों और भूमिहीन खेतिहर मजदूरों को उठाना पड़ रहा है।
राज्य सरकार ने लक्ष्य आधारित कृषि ऋण योजना पर सवाल उठाए हैं, जिससे राज्य के 67 लाख सीमांत और छोटे किसानों और भूमिहीन खेत मजदूरों को कोई फायदा नहीं मिल रहा है। राज्य सरकार ने भारतीय रिजर्व बैंक से भी इस मामले में हस्तक्षेप की मांग की है और बैंकों से कहा है कि वे किसानों की अलग-अलग श्रेणियां तैयार करें ताकि राज्य को यह पता चल सके कि किसे क्या मिल रहा है। मध्य प्रदेश में बैंकों ने लक्ष्य के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन किया है।
खासतौर से उनका ऋण जमा अनुपात बढ़ा है। इस समय यह अनुपात 67 प्रतिशत है। बैंकों ने कृषि ऋण को भी दोगुना करने में कामयाबी हासिल की है। यह दीगर बात है कि राज्य में कृषि की विकास दर अभी भी 3 प्रतिशत से कम है जबकि बैंकों के कृषि ऋण में 119 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। यह आंकड़ा 8905 करोड़ रुपये के लक्ष्य के मुकाबले बढ़कर 2007-08 में 10,612 करोड़ रुपये हो गया है। राज्य की कृषि उत्पादन आयुक्त रंजना चौधरी ने राज्य स्तरीय बैंकर्स की बैठक में कहा कि ‘जब इतनी बड़ा मात्रा में कर्ज दिया जा रहा है तो अन्य राज्यों के मुकाबले मध्य प्रदेश में कृषि गतिविधियों में तेजी क्यों नहीं आ रही है।
बैंक किसानों की श्रेणियां क्यों नहीं बनाते हैं ताकि यह पता चल सके कि कितनी संख्या में सीमांत किसानों, छोटे किसानों और भूमिहीन खेत मजदूरों को कर्ज दिया गया है।’ उन्होंने कहा कि ‘आपको कृषि अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देना चाहिए, यदि आप ऐसा नहीं करेंगे तो हम इसे अपने दम पर करेंगे।’ चौधरी ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि ‘बैंकों ने विनिर्माण क्षेत्र में बड़ी इकाइयों, मझोले उद्यमियों और छोटे कारोबारियों के लिए अलग-अलग श्रेणियां बनाई हैं तो वे कृषि क्षेत्र में भी ऐसा क्यों नहीं करते हैं। आज के दौर में ऐसे किसान हैं जो मर्सडीज से चलते हैं और ऐसे किसान भी हैं जो साइकिल भी नहीं खरीद सकते हैं।
कृषि ऋण योजना लक्ष्य आधारित नहीं होनी चाहिए।’ राज्य में कुल 71 लाख किसान हैं। इनमें से 68 लाख छोटे और सीमांत किसान तथा भूमिहीन खेत मजदूर हैं। राज्य में विभिन्न बैंकों और खासतौर से क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक के कामकाज के तौर तरीकों पर भी सवालिया निशान लग गया है। आंकड़ों पर गौर करें तो आरआरबी ने प्रत्येक शाखाओं में केवल 81 नए किसानों को कर्ज दिया है जबकि नियम यह है कि हर साल प्रत्येक शाखा पर 100 नए किसानों को कर्ज दिया जाए।
राज्य स्तरीय बैंकर्स समिति के संयोजक के सुब्बारमन ने बताया कि ‘हम एक ऐसे किसान को कर्ज नहीं दे सकते हैं जो पहले ही कर्ज न चुका पाया हो। हम ऐसे किसान को कर्ज देने से मना नहीं कर कसते जिसके पास लक्जरी कार है। हमें धनी किसान और भूमिहीन मजदूरों दोनों का ही स्वागत करना होगा। लेकिन बैंकों के पास ऐसे कोई प्रणाली नहीं है जिससे छोटे और सीमांत किसानों को प्राथमिकता के आधार पर कर्ज दिया जा सके।
कर्ज माफी और कर्ज राहत योजना के पूरा होने के बाद राज्य के सभी किसान ताजा कर्ज ले सकेंगे।’ उन्होंने कहा कि राज्य सरकार को चाहिए कि प्राथमिकता के आधार पर सभी फसलों को फसल बीमा योजना के दायरे में लाए। हालांकि एक डिफाल्टर को ताजा कर्ज नहीं दिया जा सकता है।