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संक्रमण के सही आंकड़ों से ही मदद

Last Updated- December 15, 2022 | 5:12 AM IST

दिल्ली में कोरोनावायरस के मामले बढऩे के साथ ही यहां रोजाना स्वास्थ्य बुलेटिन के तहत दी जाने वाली जानकारी भी कम होने लगी है और जून के दूसरे पखवाड़े की शुरुआत से ही वेंटिलेटर या आईसीयू से जुड़ी जानकारी अब नहीं मिल पा रही है। रोजाना आधार पर दिए जाने वाले इन स्वास्थ्य बुलेटिन में मरीजों का उम्रवार ब्योरा भी देना बंद कर दिया गया है। मई और जून में कुछ दिनों तक तो कोई स्वास्थ्य बुलेटिन ही नहीं जारी किया गया। मई की शुरुआत से ही स्वास्थ्य मंत्रालय ने दिन में केवल एक बार कोविड संक्रमण की संख्या साझा करना शुरू कर दिया था और 11 जून से मंत्रालय ने महामारी पर अपडेट देने और महत्त्वपूर्ण सवालों के जवाब देने के लिए नियमित प्रेस ब्रीफिंग बंद कर दी।
महामारी विज्ञानियों को चिंता है कि स्वास्थ्य मंत्रालय, राज्य सरकारें और भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) कोविड-19 से जुड़े पर्याप्त डेटा साझा नहीं कर रहे हैं जिससे महामारी के खिलाफ लड़ाई में बाधा आ सकती है। आईसीएमआर पिछले दिन की गई जांच की कुल संख्या और अब तक के कुल आंकड़ों के बारे में जानकारी देती है लेकिन इसमें राज्यवार या शहर के आधार पर आंकड़े नहीं दिए जाते हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय भी हरेक राज्य में केवल सक्रिय मामलों, ठीक हुए मामले और मौत के आंकड़े से जुड़ी जानकारी देता है।
अब कोविड मरीजों के उम्र वर्ग, जो मरीज आईसीयू में हैं या वेंटिलेटर पर हैं, या जिन लोगों में हल्के लक्षण हों या बिल्कुल लक्षण नहीं हो उससे जुड़ी कोई जानकारी नहीं मिल पाती है। अशोक विश्वविद्यालय के कंप्यूटेशनल बायोलॉजी ऐंड थियरिटिकल फिजिक्स के प्रोफेसर गौतम मेनन ने कहा, ‘हमें भारत के विभिन्न क्षेत्रों में उम्र वर्ग के हिसाब से मृत्यु दर का कोई अंदाजा नहीं है। आईसीएएमआर के बाहर के वैज्ञानिकों को क्षेत्रव्यापी प्रसार को समझने और आंकड़ों की सटीकता का आकलन करने और संक्रमण से होने वाली मृत्यु दर का अनुमान लगाने के लिए सीरोलॉजिकल डेटा तक पूरी पहुंच होनी चाहिए थी।’ आईसीएमआर को अभी अपने दूसरे सीरोलॉजिकल सर्वे के निष्कर्षों को जारी करना है जिसके तहत ज्यादा संक्रमण वाले जिलों के रोकथाम क्षेत्रों (कंटेनमेंट जोन) में महामारी के प्रसार का अध्ययन किया गया था। पहले सीरोलॉजिकल सर्वे से पता चला कि जिन लोगों की जांच की गई थी उनमें से 0.73 फीसदी में संक्रमण था। इस आंकड़े को पेश करने के तरीके को लेकर वैज्ञानिक भी आलोचना कर रहे हैं। एक वरिष्ठ विषाणु विज्ञानी ने कहा, ‘कोई वैज्ञानिक आंकड़ों का औसत ही बताता है। आप सबसे पहले किसी दायरे के बारे में बताते हैं और उसके बाद आप औसत बता सकते हैं।’ डेटा से एक और महत्त्वपूर्ण जानकारी गायब है जैसे कि कोविड-19 की संक्रामकता या इस वायरस की प्रभावी प्रजनन संख्या से जुड़े आंकड़े। जिन मरीजों की पहले से ही पहचान की जा चुकी है उनके बारे में यह जानकारी नहीं है कि उन्हें संक्रमण स्थानीय स्तर पर हुआ या कहीं बाहरी स्तर पर संक्रमण हुआ। तिरुवनंतपुरम के श्री चित्रा तिरुनल इंस्टीट्यूट फॉर मेडिकल साइंसेज ऐंंड टेक्नोलॉजी के प्रोफेसर रखाल गायतोंडे ने कहा, ‘हम नहीं जानते कि वे कब किसी संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आए और किस तरह संक्रमित हो गए। ये अहम डेटा है क्योंकि इससे हमें जानकारी मिलती है कि हमारा क्वारंटीन या संक्रमितों के संपर्क का पता लगाने के नियम क्या होने चाहिए।’ केंद्र ने उन संपर्कों के बारे में कोई डेटा साझा नहीं किया है जिनका पता लगाया गया था और उनमें से कितने की जांच पॉजिटिव रही थी। गायतोंडे ने कहा, ‘जब तक सभी (राज्य) सरकारें इन आंकड़े को साझा नहीं करतीं तब तक हमें महामारी के प्रसार की गतिशीलता का कोई अंदाजा नहीं होगा।’
डेटा महत्त्वपूर्ण क्यों है?
विशेषज्ञों का मानना है कि जो देश व्यापक डेटा मुहैया कराते हैं वे अपनी स्वास्थ्य प्रणाली की जरूरतों को समझते हुए बेहतर कदम उठा सकते हैं और जांच बढ़ाने के साथ ही छोटी और लंबी अवधि के लिए भविष्यवाणी कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, एसएआरआई (सांस से जुड़ा गंभीर संक्रमण) और आईएलआई (इन्फ्लूएंजा की तरह की बीमारी) से जुड़े आंकड़े और इन के कारण होने वाली मौतों की पहले और अब की कुल संख्या की गणना करने से सामान्य मौसम से परे अतिरिक्त मौतों या बीमारियों की मात्रा निर्धारित की जा सकती है। विषाणु विज्ञानी जैकब जॉन ने कहा, ‘हम अपना बुनियादी काम नहीं कर रहे हैं। फिलहाल हमारा एकमात्र लक्ष्य यह है कि घर में आग लगी है और हम आग बुझाएं।’ देश में कोविड के लिए जॉन की भविष्यवाणियां मौतों की संख्या पर आधारित है। उन्होंने कहा, ‘कुल मौतें ही एकमात्र विश्वसनीय संख्या है क्योंकि आप इस बात को लेकर विवाद नहीं कर सकते हैं कि इन लोगों की मौत कोविड से हुई है।’ हालांकि कोविड से जुड़ी कई मौत दर्ज नहीं हो रही है या उसके लिए सांस या आईएलआई संबंधी बीमारियों को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है।
भारत में 2.8 फीसदी मृत्यु दर है जिसकी गणना कुल मामलों के प्रतिशत के रूप में की जाती है लेकिन इससे भी सही तस्वीर भी नहीं मिलती है। मिशिगन विश्वविद्यालय के महामारी विज्ञान की प्रोफेसर भ्रमर मुखर्जी ने कहा कि उम्र वर्ग और ठीक होने वाले मामले के आधार पर मृत्यु दर तय होनी चाहिए। उनका कहना है, ‘मौत और बीमारी से ठीक हुए लोगों का पैमाना ही ठीक होगा बजाय इसके कि कुल मामलों को ध्यान में रखा जाए।’ इस आकलन से तो देश में मृत्यु दर लगभग 4.5 प्रतिशत हो जाएगी। महामारी विज्ञानियों ने चेतावनी दी है कि जब तक बेहतर आंकड़े नहीं सामने आएंगे  तब तक यह समझने का कोई तरीका नहीं होगा कि भारतीय आबादी पर कोविड-19 का प्रभाव कैसे अलग हो सकता है।
अब तक सरकार का पूरा ध्यान मामले के दोगुने होने में लगने वाले समय, ठीक हुए या अस्पताल से छुट्टी पाने वाले मरीजों की संख्या और अन्य देशों के मुकाबले कम मृत्यु दर पर रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह अस्पताल की क्षमता बढ़ाने और जरूरत के मुताबिक योजना बनाने के लिहाज से उपयोगी नहीं है। मुखर्जी ने कहा, ‘आपको किसी क्षेत्र के लिए एक दिन या हफ्तों में सक्रिय पुष्ट मामलों की अनुमानित संख्या का अंदाजा लगाने की जरूरत है ताकि आप उम्मीद कर सकें कि उनमें से एक हिस्से को अस्पताल और आईसीयू में जाना पड़ सकता है और उन्हें वेंटिलेटर की जरूरत होगी।’
विशेषज्ञों का कहना है कि आंकड़ों में अंतर क्षमता की कमी के साथ-साथ सरकारों की ओर से पारदर्शिता में कमी से पैदा होता है। गायतोंडे का कहना है, ‘नीति निर्माता इन आंकड़ों को अपने प्रदर्शन के एक आकलन के रूप में देख रहे हैं। यह अनुत्पादक है।’
राज्यों के बीच प्रतिस्पर्धा भी ठीक नहीं है। राज्यवार आधार पर भी संसाधनों और सुविधाओं में अंतर की वजह से संक्रमितों के आंकड़े की सूचना देने के तरीके में भी अंतर दिखने लगता है। डेटा की जानकारी भी इत बात पर निर्भर करती हैं कि विभिन्न राज्यों की निजी सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षमता कैसी है।
विशेषज्ञों का मानना है कि महामारी से जुड़ी अनिश्चितताओं को कम करने का एकमात्र तरीका यही है कि हम अपने अनुभवों से जुड़े आंकड़े और दूसरे देशों के डेटा का इस्तेमाल करें।

जांच की संख्या 1 करोड़ पार
भारत में सोमवार तक कोविड-19 संक्रमण की पुष्टि के लिए एक करोड़ से अधिक नमूनों की जांच हो चुकी है। आईसीएमआर के एक अधिकारी ने यह जानकारी दी। आईसीएमआर के वैज्ञानिक और मीडिया समन्वयक डॉ लोकेश शर्मा ने कहा, ‘छह जुलाई सुबह 11 बजे तक कुल 1,00,04,101 लोगों की जांच की गई है, जिनमें से 1,80,596 लोगों की जांच पांच जुलाई को की गई।’ शर्मा ने कहा कि देश में कोरोनावायरस के नमूनों की जांच के लिए अब कुल 1,105 प्रयोगशालाएं हैं, जिनमें 788 सार्वजनिक क्षेत्र में जबकि 317 निजी क्षेत्र में हैं। एक जुलाई तक देश भर में कुल 90 लाख जांचें हो चुकी थीं। शर्मा ने कहा, ’25 मई तक जांच क्षमता तकरीबन 1.5 लाख प्रतिदिन थी जिसे बढ़ाकर अब तीन लाख प्रतिदिन कर दिया गया है।’

मामले सात लाख के निकट
देश में एक दिन में कोविड-19 के 24,248 मामले सामने आए जिसके बाद सोमवार को भारत में कोरोनावायरस के संक्रमण के कुल मामलों की संख्या सात लाख के निकट पहुंच गई। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने यह जानकारी दी। मंत्रालय के अनुसार कोविड-19 से 425 और लोगों की मौत होने के बाद इस महामारी से मरने वालों की संख्या 19,693 हो गई है। देश में लगातार चौथे दिन कोरोनावायरस के संक्रमण के 20 हजार से अधिक मामले सामने आए हैं। भारत रविवार को रूस को पीछे छोड़ते हुए कोविड-19 से सर्वाधिक प्रभावित होने वाला तीसरा देश बन गया। संक्रमण के कुल मामलों में अब केवल अमेरिका और ब्राजील ही भारत से आगे हैं।  अब तक देश में कोविड-19 के 4,24,432 मरीज उपचार के बाद ठीक हो चुके हैं। भाषा

15 अगस्त तक टीका संभव नहीं
बेंगलूरु में वैज्ञानिकों की संस्था इंडियन एकेडमी ऑफ साइंसेज (आईएससी) ने कहा है कि आईसीएमआर ने वैक्सीन 15 अगस्त तक लाने का जो लक्ष्य रखा है वह ‘अव्यावहारिक’ और ‘हकीकत से परे’ है। आईएएससी ने कहा कि वैक्सीन की तत्काल जरूरत है लेकिन मनुष्यों पर इस्तेमाल किए जाने वाली वैक्सीन को तैयार करने के लिए वैज्ञानिक तरीके से क्लीनिकल ट्रायल करने की जरूरत होती है। प्रशासनिक मंजूरियों पर काम किया जा सकता है लेकिन वैज्ञानिक प्रक्रियाओं में एक वक्त लगता है जिसे वैज्ञानिक मानकों से समझौता किए बिना जल्दी से निपटाया नहीं जा सकता है।    

महाराष्ट्र में बुधवार से खुलेंगे होटल-रेस्तरां
महाराष्ट्र सरकार ने संक्रमण क्षेत्र से बाहर के होटलों को 8 जुलाई से 33 फीसदी क्षमता के साथ काम करने की अनुमति दी। मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और होटल कारोबारियों के बीच रविवार को बैठक हुई थी जिसमें उद्धव ने कहा था कि राज्य में होटल एवं रेस्तरां फिर से खोले जाने के बारे में निर्णय मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) को अंतिम रूप दिये जाने के बाद लिया जाएगा। राज्य में 150 लाख होटल और 65,000 रेस्टोरेंट हैं। बीएस

First Published - July 6, 2020 | 11:03 PM IST

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