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सात फीसदी से अधिक वृद्धि का लक्ष्य

भारत का निर्यात वैश्विक निर्यात से अधिक तेजी से बढ़ा है। जहां 1990 में वैश्विक निर्यात में भारत की हिस्सेदारी 0.5 थी वह 2022 में 2.5 फीसदी हो गया।

Last Updated- December 07, 2023 | 10:46 PM IST
India GDP growth rate

भारत अभी भी दुनिया का सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था वाला देश नहीं है लेकिन अगर उद्यमियों की कारोबारी भावना जोर पकड़ती है तो हम उस स्थिति में पहुंच सकते हैं। बता रहे हैं अजय छिब्बर

भारत की सकल घरेलू उत्पाद (GDP) वृद्धि के बारे में अनुमान है कि वित्त वर्ष 2023-24 में यह करीब 6.5 फीसदी रहेगी। उसने 2022 में सात फीसदी वृद्धि दर्ज की थी। वैश्विक स्तर पर प्रतिकूल हालात को देखते हुए इस प्रदर्शन को सराहनीय कहा जाएगा। वर्ष 2021 में अर्थव्यवस्था में तेजी से बेहतरी आई थी और 2020 में 5.8 फीसदी की ऋणात्मक वृद्धि के बाद इसने 9.1 फीसदी की जबरदस्त वृद्धि हासिल की।

मध्यम अवधि में हमें क्या वृद्धि दर हासिल होगी? अगर भारत का जीडीपी टिकाऊ ढंग से 6.5 फीसदी की दर से बढ़ता रहा तो हम जल्दी ही तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएंगे।

बहरहाल यह बात ध्यान देने वाली है कि प्रति व्यक्ति आधार पर हमारा देश 2030 तक निम्न मध्य आय वाला देश बना रहेगा। आधिकारिक आंकड़े दिखाते हैं कि भारत का जीडीपी 2001 से 2010 के बीच 6.8 फीसदी की दर से बढ़ा और 2011 से 2019 तक इसकी वृद्धि दर 6.4 फीसदी रही। इन दोनों अवधियों में ऐसे मौके भी आए जब जीडीपी की वृद्धि दर 8 फीसदी से अधिक हुई लेकिन ऐसा लगातार नहीं हुआ।

भारत की अर्थव्यवस्था का विकास चीन और वियतनाम की तुलना में धीमी गति से हुआ है लेकिन हमारा प्रदर्शन इंडोनेशिया से तेज रहा है जो एशिया की एक अन्य बड़ी अर्थव्यवस्था है। अगर हम धीमी जनसंख्या वृद्धि के कारण प्रति व्यक्ति जीडीपी दरों को देखें तो यह रैंकिंग अधिक स्पष्ट होती है।

भारत बहुत धीमी गति से नहीं बढ़ रहा है लेकिन कुछ लोगों के दावे के मुताबिक वह दुनिया की सबसे तेज बढ़ती अर्थव्यवस्था भी नहीं है। क्या भारत 7-8 फीसदी से अधिक की दर से वृद्धि हासिल करके 2030 तक मध्य आय वाले देश का दर्जा हासिल कर सकता है ताकि 2047 तक विकसित अर्थव्यवस्था बनने की राह आसान हो सके और हम सही मायनों में दुनिया की सबसे तेज विकसित होती अर्थव्यवस्था बन सकें?

कुछ टीकाकारों की यह दलील गलत है कि चीन के उलट भारत की वृद्धि खपत पर आधारित है। अगर खपत एक-दो साल तक वृद्धि को गति प्रदान भी करे तो भी निरंतर वृद्धि के लिए निर्यात और निवेश की आवश्यकता है जिससे रोजगार उत्पन्न हों और खपत बढ़े। वर्ष 2002 से 2008 के बीच भारत की निजी कारोबारी खपत बढ़ी लेकिन उसके बाद इसमें तेजी से गिरावट आई और यह जीडीपी के 10 फीसदी तक गिर गई।

वैश्विक वित्तीय संकट से निपटने के लिए दिए गए प्रोत्साहन ने घरेलू निवेश में भी इजाफा किया लेकिन उसके बाद से यह जीडीपी के 11-12 फीसदी के स्तर पर स्थिर है। हाल के वर्षों में राजकोषीय बाधाओं तथा महामारी से उपजी बाधाओं के कारण सरकार का पूंजीगत व्यय काफी अधिक रहा है ताकि निवेश जुटाया जा सके। बहरहाल कुल सार्वजनिक निवेश में फिर भी गिरावट आई क्योंकि सरकारी कंपनियों का निवेश कम हुआ।

एक नजरिया यह भी है कि भारत को छह फीसदी की वृद्धि दर से संतुष्ट रहना चाहिए। ऐसा मानने वालों के मुताबिक भारत चीन नहीं है और वैश्विक हालात जो सन 1980 से 2010 के बीच चीन की तेजी के वर्षों में उसके अनुकूल थे तथा जिनकी बदौलत वह तीन दशक तक सालाना 10 फीसदी की वृद्धि हासिल कर सका वे हालात अब काफी चुनौतीपूर्ण हैं। वैश्विक व्यापार में धीमापन आया है तथा भूराजनीतिक तनाव बढ़ा है।

चीन 2011 से 2019 के बीच भी भारत तथा अन्य एशियाई देशों की तुलना में तेज वृद्धि हासिल करने में कामयाब रहा। परंतु यह वृद्धि अस्थायी ऋण आधारित निवेश की वजह से हासिल हुई जो बीते दशक में औसतन जीडीपी के 44 फीसदी के बराबर रहा। इसका बड़ा हिस्सा परिसंपत्ति क्षेत्र में गया।

चीन का इंक्रीमेंटल कैपिटल आउटपुट रेशियो (आईसीओआर) जो यह आकलन करता है कि अतिरिक्त जीडीपी के उत्पादन के लिए कितनी पूंजी की आवश्यकता है वह गत दशक में 3.5 से दोगुना बढ़कर सात हो गया। इस बीच परिसंपत्ति क्षेत्र पर संकट मंडराने लगा।

कुछ विश्लेषकों का दावा है कि भारत का आईसीओआर गिरकर चार हो गया है और इसलिए अगर वर्तमान सकल निवेश दर जीडीपी के 30-32 फीसदी ही रहती है तो भारत की जीडीपी वृद्धि दर 7-7.5 फीसदी तक पहुंच जाएगी। अगर यह सच है तो यह स्वागतयोग्य है। अगर हकीकत के अधिक करीब होकर सोचें तो लंबी अवधि में भारत की आईसीओआर का आकलन 2011-2019 के बीच 4.9 के अपेक्षाकृत ऊंचे स्तर पर रहा।

वर्ष 2001 से 2010 के बीच 4.8, 1991 से 2000 के बीच 4.4 और 1981 से 1990 के बीच 4.8 रहा। यानी आज की 31 फीसदी की सकल निवेश दर के साथ छह फीसदी की टिकाऊ वृद्धि दर हासिल हो सकती है। अगर भारत सात फीसदी वृद्धि हासिल करना चाहता है तो निवेश को जीडीपी के 34-35 फीसदी तक ले जाना होगा। वहीं आठ फीसदी से अधिक वृद्धि के लिए इसे 39-40 फीसदी तक पहुंचाना होगा।

ऐसे में उच्च वृद्धि के लिए निजी कारोबारी निवेश बढ़ाना होगा लेकिन चीन के हाल के दिनों की तरह गैर टिकाऊ ढंग से नहीं। हमारा शोध बताता है कि कारोबारी निवेश बढ़ाने में क्षमता उपयोगिता दर, निजी क्षेत्र को ऋण और वास्तविक विनिमय दर की अहम भूमिका है। इनको देखते हुए हमें उम्मीद करनी चाहिए कि कारोबारी निवेश में सुधार होगा क्योंकि अधिकांश क्षेत्रों में क्षमता की उपयोगिता की दर सुधर रही है।

रिजर्व बैंक के ताजा सर्वे के मुताबिक वे एक दशक के ऊपरी स्तर पर है। रुपये में गिरावट के बाद वास्तविक विनिमय दर में कुछ हद तक कमी आई और बैंकिंग क्षेत्र में सफाई का अर्थ है कि वे अब कहीं अधिक बड़े कारोबारी निवेश को फंड कर सकता है। कारोबारी मुनाफा भी बढ़ा है, कॉर्पोरेट कर में कमी आई है और वे निवेश में इक्विटी वापस ला सकते हैं।

हमारा शोध यह भी दिखाता है कि आम निवेश में सरकार का पूंजीगत व्यय आ रहा है खासकर आवास क्षेत्र में। सरकार के पूंजीगत व्यय को ऊंचे स्तर पर रखने के प्रयास फलदायी हुए हैं। मिसाल के तौर पर आवासीय निवेश जो कम हुआ था वह बढ़ रहा है। मैं पहले भी कह चुका हूं कि भारत की वृद्धि में निर्यात की अहम भूमिका रही है।

भारत का निर्यात वैश्विक निर्यात से अधिक तेजी से बढ़ा है। जहां 1990 में वैश्विक निर्यात में भारत की हिस्सेदारी 0.5 थी वह 2022 में 2.5 फीसदी हो गया। अगर वैश्विक निर्यात घटकर सालाना 6-7 फीसदी हो जाता है तब भी भारत का वस्तु और सेवा निर्यात 12-13 फीसदी की सालाना वृद्धि हासिल करके 2030 तक दो लाख करोड़ डॉलर का आकार हासिल कर सकता है। यानी विश्व व्यापार में 4 फीसदी हिस्सेदारी। भारत को निर्यात पर ध्यान देने की आवश्यकता है, खासतौर पर तब जबकि इसका आधा हिस्सा सेवा क्षेत्र से आएगा जहां व्यापार तेजी से बढ़ रहा है।

अगर अहम सुधार जारी रहे तो भारत 2030 तक 7-8 फीसदी की वृद्धि दर बरकरार रख सकता है और अगर हमें निजी खपत में सुधार देखने को मिलता है जिसके बारे में उम्मीद है कि वह 2024 तक में हासिल होगी और बरकरार रहेगी। अगर कोई चौंकाने वाली भूराजनीतिक घटना नहीं होती है तो ऐसा हो सकता है।

(लेखक जॉर्ज वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी के इंस्टीट्यूट फॉर इंटरनैशनल इकनॉमिक पॉलिसी के प्रतिष्ठित विजिटिंग स्कॉलर हैं)

First Published - December 7, 2023 | 10:46 PM IST

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