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अंतरिम बजट: अर्थशास्त्रियों की जुदा है राय

Last Updated- December 10, 2022 | 1:15 AM IST

वित्तीय वर्ष 2009-10 के लिए लोक सभा में पेश किए गए अंतरिम बजट से उद्योग जगत ने काफी उम्मीदें लगाई थीं, लेकिन बजट के बाद उद्योग जगत की प्रतिक्रिया नकारात्मक ही रही है। बिजेनेस स्टैंडर्ड ने इस बजट पर विशेषज्ञों एवं अर्थशास्त्रियों की नब्ज टटोलने की कोशिश की:
वर्ष 2009-10 में ऋण वृद्धि 20-21 फीसदी होने की उम्मीद और गिल्ट प्राप्तियों में इजाफा होने के बावजूद बैंकों का मुनाफा प्रभावित होने की उम्मीद नहीं है। उन्होंने कहा कि हालांकि गिल्ट लाभ तेजी से बढ़ा है, लेकिन 2009-10 में सकल बाजार उधारी 3.617 ट्रीलियन रुपये की घोषणा के बाद 10 वर्षीय बेंचमार्क 2018 पेपर अंतत: लगभग 5.80 फीसदी पर स्थिर हो जाएगा।
टी एस रामास्वामी,
अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक, बैंक ऑफ इंडिया
‘अंतरिम बजट में कोई नई बात नहीं है। वित्तीय आंकड़े बाजार अपेक्षा के अनुरूप हैं। सरकार की उच्च बाजार उधारी नकदी पर दबाव डाल सकती है। बाजार स्थिरीकरण योजना के तहत लगभग 1 ट्रीलियन रुपये के बॉन्डों को खोला जा सकेगा।
केंद्रीय बैंक तरलता को आसान बनाए रखने के लिए बैंकों के नकद आरक्षी अनुपात (सीआरआर) या सांविधिक तरलता अनुपात (एसएलआर) में कटौती कर सकता है। 

लेकिन मैं इस वित्त वर्ष के अंत तक सीआरआर या एसएलआर में किसी तरह की कटौती की उम्मीद नहीं कर रहा हूं। आरबीआई 2009-10 (अप्रैल-मार्च) में बैंकों के सीआरआर या एसएलआर में कटौती कर सकता है।
मोजेज हार्डिंग,
अध्यक्ष और मुख्य कार्यकारी, इंडसइंड बैंक
कोटक महिन्द्रा बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री इंद्रनील पान ने वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी द्वारा 2009-10 के लिए लोक सभा में पेश किए गए अंतरिम बजट पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा, ‘निश्चित रूप से कर का मामला कमजोर हो रहा है। 

प्रति चक्रीय दबाव के साथ खर्च तेजी से बढ़ रहा है और इस चक्रीय मंदी की वजह से राजस्व पक्ष कमजोर हो रहा है। यह वित्तीय घाटा और उच्च बाजार उधारी को बढ़ाने के लिए प्रमुख रूप से जिम्मेदार है।’
इंद्रनील पान,
मुख्य अर्थशास्त्री, कोटक महिन्द्रा बैंक
‘हम 2.80-2.85 ट्रीलियन रुपये की शुद्ध बाजार उधारी और 3.40-3.80 ट्रीलियन रुपये की सकल बाजार उधारी देख रहे हैं। सकल बाजार उधारी अपेक्षाओं के लिहाज से काफी है। 

हालांकि बाजार 2.3-2.5 खरब रुपये की बाजार उधारी देख रहा था, इसलिए अप्रैल तक सरकारी बॉन्डों में कमजोरी आ सकती है। मुझे उम्मीद है कि आरबीआई इस सप्ताह रेपो और रिवर्स रेपो दरों में 0.5-0.5 फीसदी तक की कटौती करेगा।’
शैलेश झा,
वरिष्ठ अर्थशास्त्री, बार्कलेज कैपिटल
‘वित्त वर्ष 2010 में कृषि क्षेत्र के लिए ब्याज सहायता में विस्तार, अपेक्षा की तुलना में कर संग्रहण में ढिलाई, उच्च बाजार उधारी आदि वित्तीय अनुशासन के लिए एक बड़ा जोखिम है। 

मध्यावधि में यह सहायता वास्तविक क्षेत्र के लिए राहत के बजाय एक बोझ के तौर पर सामने आ सकती है। यह पूरी तरह से स्पष्ट नहीं है कि यह खर्च उत्पादक परिसंपत्तियों के सृजन में किस तरह से परिवर्तित किया जाएगा। इसलिए मध्यावधि में रियल सेक्टर को राहत के बजाय अधिक बोझ का सामना करना पड़ेगा।’
रूपा रेगे,
मुख्य अर्थशास्त्री, बैंक ऑफ बड़ौदा

‘बजट को लेकर अपेक्षा की गई थी, क्योंकि यह महज एक वोट-खींचू बजट है। हालांकि बाजार इस बजट को लेकर काफी उम्मीद लगाए हुए था, लेकिन इसमें ऐसा कुछ भी नहीं है।’
जयेश श्रॉफ,
इक्विटी प्रबंधक, एसबीआई म्युचुअल
‘यह अंतरिम बजट अपेक्षाओं की कसौटी पर खरा उतरने में विफल रहा है। कुछ विशेष उद्योगों को वित्तीय रियायतों के जरिये आर्थिक विकास के लिए राहत मुहैया कराने के अपेक्षित उपायों को लेकर इस बजट में कुछ नया नहीं है। 

वित्त मंत्री ने प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कर ढांचे को पूर्व की तरह बरकरार रखा है। इसके अलावा 2008-09 के लिए 6 फीसदी का राजकोषीय घाटा अनुमान भी अपेक्षाओं की तुलना में काफी अधिक है और वित्तीय स्थिति पर दबाव बढ़ने के संकेत भी दिख रहे हैं।’
गौरव दुआ,
शोध प्रमुख, शेयर खान

First Published - February 16, 2009 | 10:16 PM IST

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