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कोकिंग कोल में 200 फीसदी उछाल!

Last Updated- December 10, 2022 | 5:31 PM IST

इस्पात उत्पादन के लिए इस्तेमाल होने वाले सबसे प्रमुख कच्चे माल कोकिंग कोल की कीमत में बेतहाशा बढ़ोतरी होने जा रही है।


बाजार के मुताबिक कोकिंग कोल की कीमत में 200 फीसदी की बढ़ोतरी होने वाली है। यानी कि कोकिंग कोल की बिक्री आने वाले समय में 8,000 -12,000 रुपये प्रतिटन कीमत पर होगी। फिलहाल इसके भाव प्रतिटन 4000 रुपये हैं।


गौरतलब है कि स्टील उत्पादन के लिए कच्चे माल के रूप में सबसे अधिक लागत कोकिंग कोल की होती है।इस्पात उद्योग के सूत्रों के मुताबिक उत्पादन के लिहाज से विश्व की चौथी सबसे बड़ी इस्पात कंपनी पॉस्को ने हाल ही में कोकिंग कोल की खरीदारी के लिए ऑस्ट्रेलिया के साथ समझौता किया है।


इस अनुबंध के मुताबिक पॉस्को को कोकिंग कोल लेने के लिए ऑस्ट्रेलिया को पहले के मुकाबले 205-210 फीसदी अधिक कीमत अदा करनी पड़ेगी। ऑस्ट्रेलिया के खान मालिकों के साथ किया गया इस प्रकार का नया अनुबंध एक अप्रैल से लागू हो गया। गौरतलब है कि भारतीय इस्पात उत्पादकों को ऑस्ट्रेलिया की खानों से कोकिंग कोल की आपूर्ति की जाती है।


अनुबंध के मुताबिक तय कीमत के लागू होने के साथ ही कोकिंग कोल के भाव 12,000 रुपये प्रतिटन हो जाएंगे। भारत में फिलहाल कोकिंग कोल का सुरक्षित भंडार 4.6 बिलियन टन है जबकि हर साल 75 लाख टन कोकिंग कोल का उत्पादन किया जा रहा है। भारत में कोकिंग कोल की अधिकतम मांग की पूर्ति आयात के जरिए की जाती है।


राष्ट्रीय इस्पात निगम के निदेशक सीजी पटेल कहते हैं, ‘कोकिंग कोल का सबसे ताजा मूल्य 94-98 डॉलर प्रतिटन है लेकिन इसकी कीमत में बढ़ोतरी से घरेलू उत्पादकों को कोकिंग कोल 8000 रुपये प्रतिटन के मूल्य पर उपलब्ध होगा।’ उन्होंने बताया कि अगर इस मूल्य में प्रतिटन 25-30 डॉलर मालभाड़े के रूप में जोड़ दिया जाए तो इसकी कीमत 9000 रुपये प्रतिटन के स्तर पर पहुंच जाती है।


उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय इस्पात निगम के अधीन कोई खान नहीं है और ऐसे में कोकिंग कोल के आयात के लिए पूर्ण रूप से ऑस्ट्रेलिया पर निर्भर रहना पड़ेगा।उद्योग सूत्रों का कहना है कि इस्पात उत्पादकों द्वारा उत्पादन की लागत में जो बढ़ोतरी की बात की जा रही है उसमें लौह अयस्क की कीमत शामिल नहीं है। सूत्रों का कहना है कि कोकिंग कोल की कीमतों में बढ़ोतरी के कारण लागत में जो बढ़ोतरी हुई है उसकी भरपाई उत्पादकों को उद्योग से नहीं हो पा रही है।


उत्पादन की कुल लागत में लौह अयस्क की हिस्सेदारी 35-40 फीसदी होती है जबकि कोकिंग कोल की हिस्सेदारी 50 फीसदी तक होती है। इस्पात उत्पादन करने वाले सार्वजनिक उपक्रमों में स्टील ऑथिरिटी ऑफ इंडिया (सेल) कोकिंग कोल की कुल जरूरत की 35 फीसदी तो लौह अयस्क की 100  फीसदी पूर्ति आंतरिक रूप से करता है।


जबकि आरआईएनएल की कोई अपनी खान नहीं है। निजी उत्पादकों के बीच टाटा स्टील के पास 20 फीसदी लौह अयस्क सुरक्षित है तो 15 फीसदी कोकिंग कोल।जेएसडब्ल्यू स्टील के पास 30 फीसदी लौह अयस्क सुरक्षित है तो कोकिंग कोल के मामले में उसके पास कोई सुरक्षित भंडार नहीं है। एस्सार के पास कच्चे माल के सुरक्षित भंडार के रूप में एकमात्र खान है लेकिन उस खान को अभी व्यावसायिक रूप से विकसित करने की जरूरत है।


इसके अलावा इस्पात इंडस्ट्री के पास भी कोई खान नहीं है। इसी प्रकार से इस्पात उत्पादन की लागत बढ़ती रही और उस मुकाबले में उत्पादकों को इस्पात की कीमत बढ़ाने की इजाजत नहीं दी गई तो निश्चित रूप से उन्हें अपने उत्पादन में कटौती करनी पड़ेगी।

First Published - April 9, 2008 | 12:39 AM IST

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