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2022 : ग्रामीण भारत की कमाई पर उच्च दामों का प्रतिकूल असर

भारत पर युद्ध, मौसम और जरूरत से अधिक तरलता का असर पूरे साल रहा लेकिन साल के अंत में कुछ सुधार दिखा

Last Updated- December 30, 2022 | 11:25 PM IST
Rural area

साल 2022 लगभग सभी कृषि जिंसों के दामों में तेज उछाल के लिए यादगार रहेगा। इसका कारण रूस-यूक्रेन युद्ध, असामान्य मौसम और कोविड के दौरान बाजार में अतिरिक्त नकदी का डाला जाना है। इससे सटोरियों की गतिविधियां भी बढ़ीं। इस साल तकरीबन सभी कृषि उत्पादों के दाम जैसे खाद्य तेल, अनाज, कपास, दूध, अंडे, चारे के दाम बढ़ गए। इसके अलावा खेती में इस्तेमाल होने वाले सामान जैसे खाद के दाम भी तेजी से बढ़े थे।

दाम बढ़ने का मतलब यह भी है कि खेत में कटाई शुरू होते ही उसे दाम मिलना शुरू हो जाए। हालांकि शहरी आबादी की तरह ही ग्रामीण आबादी की कमाई पर भी मुद्रास्फीति का प्रतिकूल असर पड़ा। हालांकि कई उत्पादों की उच्च मुद्रास्फीति में कई बार कमी आई। लेकिन यह बीते साल की तुलना में अधिक रही। कोटक इंस्टीट्यूशनल सिक्योरिटीज के हालिया विश्लेषण के मुताबिक सितंबर, 2022 तक वास्तविक ग्रामीण वेतन वृद्धि में नियमित 10वें महीने तक नकारात्मक वृद्धि हुई। रिपोर्ट के अनुसार मुद्रास्फीति बढ़ने के कारण प्रमुख तौर पर यह संकुचन हुआ। ग्रामीण अर्थव्यवस्था सुस्त होने के कारण श्रम की मांग सुस्त रही। इससे मजदूरी की सीमा भी तय हो गई।

सरकारी आंकड़ों के अनुसार महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के तहत कार्य की मांग नवंबर, 2022 में चार माह के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई जबकि आवंटित बजट का पूरा इस्तेमाल हो चुका था। आंकड़ों के अनुसार अगस्त के बाद नवंबर, 2022 में मनरेगा में काम के लिए अधिक लोगों ने आवेदन किया। नवंबर, 2022 में करीब 2.25 करोड़ लोगों ने मनरेगा में काम के लिए आवेदन किया था।

ग्रामीण विकास मंत्रालय के अनुसार जुलाई में 2.52 करोड़ लोगों ने आवेदन किया था और अगस्त में 1.91 करोड़ लोगों ने आवेदन किया था। हालांकि उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) द्वारा मापी गई ग्रामीण क्षेत्रों में मुद्रास्फीति जनवरी, 2022 से निरंतर 6 फीसदी से अधिक रही। उच्च मुद्रास्फीति का प्रमुख कारण अनाज के दाम बढ़ना रहा। हालांकि खाद्य उत्पाद जैसे खाद्य तेल, दूध, मांस और वसा के साथ-साथ गैर खाद्य वस्तुएं जैसे ईंधन ने भी योगदान दिया। सीपीआई मुद्रास्फीति (ग्रामीण और शहरी संयुक्त) सितंबर में पांच माह के उच्चतम स्तर 7.4 फीसदी पर पहुंच गई थी।

इसका प्रमुख कारण खाद्य वस्तुओं के दामों में इजाफा होना था। इसके बाद यह नवंबर में गिरकर 5.88 फीसदी पर आई। नवंबर में ग्रामीण मुद्रास्फीति 6.09 फीसदी पर और शहरी मुद्रास्फीति 5.68 फीसदी के स्तर पर थी। पूरे साल शहरों से अधिक ग्रामीण क्षेत्रों में मुद्रास्फीति रहने का रुझान रहा था। इसका अर्थ यह हुआ है कि उच्च दामों का असर शहरी लोगों की अपेक्षा ग्रामीण लोगों पर अधिक पड़ा।

जीएम और अन्य

खेती में अन्य विकास के साथ सबसे प्रमुख जीएम सरसों को स्वीकृति मिलना था। जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (जीईएसी) ने जीएम सरसों को स्वीकृति दी थी। साल 2002 में बीटी कॉटन को स्वीकृति दिए जाने के बाद कुछ भारतीय फसलों को स्वीकृति दी गई। जीएम सरसों की स्वीकृति और संबंधित दिशानिर्देश जारी किए जाने का अर्थ यह हुआ कि भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईसीएआर) के सिस्टम में जीएम सरसों पर आधिकारिक रूप से और अध्ययन नहीं किया जा सकता।

उत्पादन के मामले में गेहूं और चावल दोनों प्राथमिक अनाजों का उत्पादन 2022 में बीते साल की तुलना में गिर गया। यह जानकारी सरकारी अनुमानों में भी दी गई थी। उत्पादन में गिरावट के सरकारी अनुमानों और निजी कारोबारियों की गणना में अंतर है। ऐसा बीते समय में कभी-कभार ही हुआ है। बहरहाल 2022 के रबी के मौसम में गेहूं का उत्पादन गिर गया। इसका कारण यह था कि गेहूं की कटाई के मौसम से ठीक पहले गर्मी बढ़ गई थी। इसके बाद आए खरीफ के मौसम में चावल का उत्पादन गिर गया। चावल उत्पादन गिरने का प्रमुख कारण अकाल और चावल उत्पादक प्रमुख राज्यों बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश में
छिट-पुट बारिश होना था।

सरकारी अनुमानों के अनुसार 2022 के रबी मौसम में गेहूं का उत्पादन जून के अंत में 10.641 करोड़ टन हो गया था। यह आधिकारिक जानकारी तीसरे अग्रिम अनुमान के अनुसार थी। बीते साल की तुलना में इस साल गेहूं का उत्पादन 38 लाख टन कम हुआ था। पहले अनुमान में 11.132 करोड़ टन उत्पादन का अनुमान लगाया गया था और इसमें 4.39 फीसदी की गिरावट आई।

गेहूं की फसल पकने के दौरान तापमान बढ़ने से प्रतिकूल असर पड़ा। हालांकि निजी कारोबारियों के अनुसार उत्पादन कहीं ज्यादा गिरकर 9.8 से 10 करोड़ टन के इर्द गिर्द आ गया था। सरकारी दाम से अधिक खुले बाजार में गेहूं का दाम रहा। इसलिए किसानों ने सरकार की जगह निजी कारोबारियों को गेहूं की बिक्री की।
इससे सरकार अपने गेहूं के भंडार को पर्याप्त रूप से नहीं भर पाई। वित्तीय वर्ष 23 में सरकार की गेहूं खरीद में बीते साल की इस अवधि की तुलना में 59 फीसदी गिरावट आई और इसमें 1.87 करोड़ टन की कमी आई। हालांकि इस दौरान गेहूं के उत्पादन में भी कमी आई।

उत्तर भारत के खुले बाजार में गेहूं का भाव करीब 3,000 रुपये प्रति क्विंटल है। साल 2022-23 के लिए सरकार ने गेहूं का पुनर्निर्धारित न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 2,125 रुपये तय किया है। लेकिन बाजार भाव सरकार के इस दाम से अधिक है। हालांकि इस दौरान गेहूं के न्यूनतम समर्थन मूल्य में गिरावट आई। ऐसा उत्तर भारत में कभी-कभार ही होता है। इसी तरह चावल का उत्पादन खराब मौसम और पूर्वी भारत में पड़े अकाल के कारण गिर गया। हालांकि मुद्रास्फीति कम होनी शुरू हो गई है और सभी क्षेत्रों में मांग जोर पकड़ने लगी है। लिहाजा ग्रामीण क्षेत्र में सुधार के संकेत दिखने लगे हैं।

हैदराबाद स्थित आईसीएफएआई बिज़नेस स्कूल के नामचीन प्रोफेसर एस. महेंद्र देव ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि अच्छी खबर यह है कि वैश्विक स्तर पर रसायन और ईंधन के मूल्यों में गिरावट आने के कारण आने वाले सालों में खाद्य मुद्रास्फीति में गिरावट आ सकती है। उन्होंने कहा कि बाजार से तरलता को कम किया गया है। इससे दामों में और गिरावट आएगी। इसका प्रभाव देखना अभी बाकी है।

उन्होंने कहा कि दक्षिण पश्चिम पश्चिम मानसून ग्रामीण भारत की दशा व दिशा निर्धारित करेगा। हालांकि कृषि क्षेत्र के लिए वित्तवर्ष-23 में वृद्धि करीब 4 फीसदी रहेगी। देव ने कहा कि ग्रामीण क्षेत्र में एफएमसीजी और टिकाऊ उपभोक्ता सामान की मांग बढ़ी है और यह संभवत अगले साल भी जारी रहेगी। देव ने कहा कि यदि वैश्विक आर्थिक मंदी की शुरुआत होती है तो कृषि निर्यात पर प्रभाव पड़ सकता है।

First Published - December 30, 2022 | 9:37 PM IST

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