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कोरोना के कांटे से उधडऩे लगा आगरा का जूता

Last Updated- December 15, 2022 | 4:25 AM IST

आगरा का नाम दुनिया भर में ताजमहल के लिए तो मशहूर है ही, यहां का जूता कारोबार भी खासा मशहूर है। साथ ही साथ यहां चमड़े का दूसरा सामान भी बनता है। मगर जूता नगरी कहलाने वाले आगरा को कोरोना का ऐसा कांटा लगा कि यहां की मंडियां वीरान हो गईं। मंडियां नहीं सज रहीं तो कारीगर जूते किसके लिए बनाएं? इसलिए जूते गांठने वाले कारीगरों की बस्ती में भी सन्नाटा छाया है।
करीब ढाई महीने चला लॉकडाउन कब का खत्म हो गया मगर आगरा की जूता मंडियां अब तक गुलजार नहीं हुईं। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि प्रदेश में आगरा कोरोनावायरस से सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है और आधे से ज्यादा शहर हॉटस्पॉट रह चुका है। इसकी सबसे बड़ी कीमत जूता कारीगरों को ही चुकानी पड़ रही है। शहर में जूते बनाने वाले तीन लाख से ज्यादा कारीगर हैं और यहां कई पुराने इलाकों में सालों से जूते बनाने वाली इकाइयां चल रही हैं। मगर मार्च के बाद से ही उनके पास नहीं के बराबर काम है। जूते और लेदर एक्सेसरीज की बड़ी तथा नामी-गिरामी कंपनियों के लिए काम करने वाले करीगर घरों पर खाली ही बैठे हैं। घर पर बैठे वे जूते भी नहीं बना सकते क्योंकि जूते बनाकर खुद ही मंडी में बेचने वाले भी हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं। न मंडियां सज रही हैं और न ही कोई माल मांग रहा है। शहर की मशहूर हींग मंडी हो या बिजलीघर की मंडी, सब जगह खामोशी पसरी है।
जूता कारोबारी बताते हैं कि पिछले तीन महीनों से आगरा में न तो सैलानी आ रहे हैं और न ही खरीदार। लिहाजा जूतों की बिक्री बहुत मामूली है। महीनों बाद खुली बिजलीघर मंडी में रोजाना जूते लेकर पहुंच रहे दस्तकारों के लिए आने-जाने का खर्च निकालना भी मुश्किल हो गया है। आगरा के कारोबारी प्रमोद गौतम बताते हैं कि कोरोना के बाद बाजार भी नियमित रूप से नहीं खुल रहा है। जब खुलता है तब भी ग्राहक नहीं आते। पहले बाहर के शहरों से भी रोजाना हजारों की तादाद में लोग जूते खरीदने आ जाते थे। इनमें जूता व्यवसायी भी होते थे। मगर अब तो एकदम अकाल है।
धंधा नहीं होने की कई वजहें हैं। पहली वजह तो वायरस ही है। संक्रमण के डर से अधिकतर लोग भीड़भाड़ और बाजार से किनारा कर रहे हैं, इसलिए माल कहां से बिके। अभी तक ट्रेनों और हवाई उड़ानों का मामला भी ठीक नहीं हुआ है, जिस कारण कोई बाहरी आदमी आगरा में आ ही नहीं पा रहा है। जब कारोबारी आएंगे ही नहीं तो यहां से माल बिकेगा कैसे? एक बड़ी वजह स्कूल-कॉलेजों और दफ्तरों का बंद रहना भी है।
कारोबारी कहते हैं कि स्कूल खुलने की वजह से अप्रैल से लेकर जुलाई तक जूतों की अच्छी बिक्री होती थी मगर इस बार स्कूल खुले नहीं तो जूते बिके नहीं। दफ्तर और बाजार भी मोटे तौर पर बंद रहने की वजह से जूतों की रीप्लेसमेंट बिक्री भी नहीं हो रही।
जूता कारोबारी विजय चतुर्वेदी ने बताया कि हींग मंडी में 23 छोटे-बड़े बाजार हैं, जहां देश भर से थोक व्यापारी आते थे। मगर आवाजाही कम होने से यहां कारोबार ठप हो गया है। चतुर्वेदी ने बताया कि केवल आगरा से ही हर साल 800-900 करोड़ रुपये के जूते और चमड़े का सामान बिक जाता था। मगर इस साल मार्च से ही धंधा ठप पड़ा है, इसलिए एक तिहाई कारोबार हो जाए तो भी बहुत बड़ी बात होगी। कारोबारियों को अब जुलाई-अगस्त के बाद स्कूल-कॉलेज खुलने या ज्यादा ढील मिलने की उम्मीद है। अगर ऐसा हो गया तो उनका कारोबार कुछ हद तक पटरी पर आ सकता है।
जूता बनाने वाले दस्तकार भी यही उम्मीद लगाए बैठे हैं। गौतम ने कहा कि आगरा में जूतों की सबसे बड़ी मंडी बिजलीघर ही हजारों परिवारों का पेट पालती थी। कारीगर इसी मंडी से कच्चा माल लेते थे और जूते तैयार कर अच्छी खासी तादादमें यहीं बेच भी दिया करते थे। मगर अभी उस मंडी में बाजार ठंडा है, इसलिए कारीगर भी बेजार हैं।
कारीगरों की हालत वाकई बहुत खराब है। कारोबारी बताते हैं कि लॉकडाउन होने पर सरकार की ओर से कारीगरों के परिवारों को राशन मिल रहा था और तैयार खाने से भी उनकी मदद हो रही थी। मगर लॉकडाउन खत्म होने पर वह सिलसिला थम गया। अब सरकार से मदद मिल नहीं रही और बिक्री हो नहीं रही, इसलिए उनके खाने के लाले पड़ गए हैं।
सबसे ज्यादा परेशानी दिहाड़ी पर काम करने वाले जूता कारीगरों को हो रही है। लॉकडाउन के बाद उनके पास कोई काम ही नहीं है। हालांकि जर्मनी की एक प्रमुख जूता कंपनी आगरा में इकाई लगाने को तैयार हो गई है मगर दिहाड़ी कारीगरों को उससे भी कुछ हासिल होता नहीं दिखता।

First Published - July 23, 2020 | 11:18 PM IST

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