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एल्यूमिनियम की मांग जीडीपी से भी तेज

Last Updated- December 05, 2022 | 4:40 PM IST


भारतीय एल्यूमिनियम की मांग जीडीपी की बढ़ोतरी दर से भी तेजी से बढ़ रही है। यह चीन के लिए भी काफी अच्छा है क्योंकि वहां एल्यूमिनियम की सालाना मांग 15 फीसदी से ज्यादा की रफ्तार से बढ़ रही है। यह पड़ोसी इस साल अपने एल्यूमिनियम उत्पादन को 15 मिलियन टन तक पहुंचाने का इरादा रखता है जबकि पिछले साल यह 12.6 मिलियन टन के स्तर पर था।


 


और तो और इस उत्पादन का ज्यादातर हिस्सा घरेलू बाजार में खपत होगा। चीन में 2001 के बाद नॉन फेरस मेटल की कपैसिटी में जिस हिसाब से 2001 के बाद बढ़ोतरी हो रही है, यह दुनिया ने कभी नहीं देखा था। स्टील के माफिक भारत में एल्यूमिनियम का उत्पादन 1.25 मिलियन टन का होता है जो चीन के कुल उत्पादन का एक चौथाई से भी कम है। ये हालत तो तब है जब भारत में 2.7 अरब टन का बॉक्साइट भंडार है और इसकी क्वॉलिटी उम्दा है।


 


बॉक्साइट भंडार के मामले में भारत दुनिया का पांचवां बड़ा देश है। ये खनिज संसाधन मुख्यत: उड़ीसा और आंध्र प्रदेश में हैं और मेटल के तीन मुख्य उत्पादक नैशनल एल्यूमिनियम कंपनी, हिंडाल्को और वेदांता अपनी कपैसिटी बढ़ाने की जुगत में हैं। बेदांता अपनी एल्यूमिनियम कैपिसटी 2.25 मिलियन टन करने के मूड में है। हिंडाल्को के मैनेजिंग डायरेक्टर डी. भट्टाचार्य ने बताया कि 2012 तक कंपनी एल्यूमिनियम कपैसिटी 1.5 मिलियन टन तक बढाने का इरादा रखती है और इसके लिए 26 हजार करोड़ रुपये निवेश किए जाएंगे।


 


इस बीच, सरकारी कंपनी नाल्को 5 लाख टन की कपैसिटी वाला स्मेल्टर इंडोनेशिया में लगाएगी। कंपनी 2009 तक 5 हजार करोड़ रुपये के निवेश से देश में अपनी एल्यूमिनियम कपैसिटी 4.6 लाख टन करने जा रही है। गंधामर्दन पहाड़ी पर बॉक्साइट खनन का लीज मिलने के बाद कंपनी उड़ीसा में एल्यूमिनियम स्मेल्टिंग कॉम्पलेक्स बनाएगी। पर सवाल उठता है कि प्रस्तावित कपैसिटी कब मूर्त रूप में सामने आएगी। यह सब कुछ स्थानीय लोगों पर निर्भर करेगा, जहां खनन के लिए लीज ली जाएगी क्योंकि विस्थापन केलिए पर्याप्त इंतजाम किए बिना शायद ये मुमकिन न हो सके।


 


एल्यूमिनियम की मांग के मामले में हमारा ग्रोथ रेट चीन के बाद है, लेकिन इसके बावजूद हम अपने अतिरिक्त मेटल को अपनी शुरुआती अवस्था में ही निर्यात कर देते हैं। इस साल नाल्को का 1.10 लाख टन का निर्यात प्राइमरी यानी शुरुआती अवस्था वाले मेटल का ही है। कंपनी जो नई कपैसिटी लगाने जा रही है, उसका सरप्लस भी निर्यात के ही हिस्से जाएगा। हालांकि निर्यात कोई समस्या नहीं है क्योंकि बॉक्साइड के अच्छे खासे भंडार और एनर्जी मसलन कोयले की बहुतायत के चलते हम एल्यूमिनियम के लो कॉस्ट उत्पादक हैं।


 


वैसे हमें चीन से कुछ सीखना चाहिए जिसने अपने मेटल निर्यात यानी एल्यूमिनियम निर्यात को हतोत्साहित करने के लिए टैरिफ रेट को 5 की बजाय 15 फीसदी कर दिया है। लेकिन रोल्ड प्रोडक्ट पर कुछ नहीं देना पड़ता।


 


नाल्को के चेयरमैन सी. आर. प्रधान कहते हैं भारत में एल्यूमिनियम की मांग में 18 फीसदी की बढ़ोतही होगी, ऐसे में हमें पर्याप्त रोलिंग कपैसिटी बनानी होगी। साथ ही, एल्यूमिनियम बनाने वालों को रोल्ड प्रोडक्ट का इस्तेमाल ऑटोमोबाइल, कंस्ट्रक्शन और पैकेजिंग सेक्टर में बढाने के लिए मिलकर काम करना होगा।

First Published - March 18, 2008 | 1:38 AM IST

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