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रबर कानून में संशोधन का नहीं होगा असर

Last Updated- December 10, 2022 | 12:10 AM IST

केंद्रीय कैबिनेट द्वारा रबर एक्ट 1947 में किए गए संशोधन से रबर के उत्पादन के मामले में कोई प्रभाव नहीं पड़ने वाला है।
रबर बोर्ड के चेयरमैन साजन पीटर ने कहा कि यह संशोधन लंबे समय से लंबित था, क्योंकि 1947 के कानून में रबर के उत्पादन के क्षेत्रफल को सीमित किया गया था।
उन्होंने बिजनेस स्टैंडर्ड से बातचीत में कहा कि इससे पहले निर्धारित किया गया क्षेत्रफल बहुत बड़ा था, जिसे मानक सीमा में लाया गया है। संशोधन का यही उद्देश्य है और इसका कोई गंभीर असर रबर की खेती पर नहीं पड़ेगा।
देश भर में 10 लाख से ज्यादा लोग रबर की खेती करते हैं, जिसमें 9 लाख लोगों के पास 0.5 एकड़ से 5 एकड़ के बीच जमीन है। इसलिए रबर उत्पादकों के उपर बहुत ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ने वाला है।
खासकर केरल के किसानों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा, जहां रबर की 92 प्रतिशत खेती होती है। रबर उत्पादन में लगे किसानों के पास औसत खेत 0.5 एकड़ ही आता है। केरल में जिन रबर उत्पादकों के पास 2 हेक्टेयर तक खेत है, उन्हें बोर्ड द्वारा दी जाने वाली तमाम सुविधाओं का लाभ मिलता है।
पूर्वोत्तर इलाकों में यह सीमा 5 हेक्टेयर की है। इसलिए वर्तमान रबर उत्पादकों को मिलने वाली छूट पर भी कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। रबर बोर्ड के अधिकारियों के मुताबिक केवल 250 बड़े उत्पादक और कंपनियां ऐसी हैं, जिके पास रबर की खेती के लिए 20 हेक्टेयर से ज्यादा जमीन है।
व्यापक स्तर पर खेती करने वालों के मामले में न्यूनतम मजदूरी का नियम लागू है। इसलिए इस बदलाव से मजदूरी के ढांचे पर प्रभाव पड़ सकता है। कोचीन रबर मर्चेंट एसोसिएशन के अध्यक्ष एन राधाकृष्णन के मुताबिक इस समय केरल में रबर उत्पादन में लगे मजदूरों को न्यूनतम निर्धारित मजदूरी से ज्यादा पैसे मिलते हैं। इसलिए इस संशोधन का कोई खास प्रभाव पड़ने की उम्मीद नहीं है। उम्मीद यह की जा रही है कि इस संशोधन के बाद और ज्यादा लोग कृषि आयकर के दायरे में आ जाएंगे।

First Published - February 6, 2009 | 1:15 PM IST

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