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महाराष्ट्र बनाम बिहार की लड़ाई में अब केले भी जुटे

Last Updated- December 07, 2022 | 12:03 PM IST

एक तरफ तो राज ठाकरे और लालू प्रसाद राजनीति के अखाड़े में दो-दो हाथ करने में जुटे हैं वहीं दूसरी तरफ कारोबार में भी कुछ ऐसा ही नजारा है।


मगर यहां राज और लालू की जगह आमने सामने हैं-भुसावल और बिहार के केले। फिलहाल, महाराष्ट्र के केलों ने बिहार के सामने ऐसी चुनौती पेश की है, जिसमें बिहार के किसान पस्त नजर आ रहे हैं।

बिहार के भागलपुर, कटिहार, हाजीपुर, पश्चिमी चंपारण और पूर्णिया जैसे कई जिले केले की खेती के लिए भले ही पूरे देश में जाने जाते हों पर राज्य से बाहर की मंडियों में ढूंढने पर भी बिहार का केला मुश्किल से ही मिलता है। मंडियों में तो भुसावल केले का ही बोलबाला दिखता है। दिल्ली स्थित एशिया की सबसे बड़ी फल और सब्जी मंडी आजादपुर में तो महाराष्ट्र के केले ही छाए रहते हैं। भुसावल (महाराष्ट्र) के केले के रूप में जाने जाने वाले ये केले महाराष्ट्र के जलगांव, परभनी, सावदा, निभोदा, राबेर और कसगांव से आते हैं।

हाल यह है कि इन इलाकों से पूरी की पूरी मालगाड़ी ही केले से लदकर मंडी में उतरती है। मंडी में बिहार के केले का हाल जानने की कोशिश की तो जवाब मिला कि बिहार के केले गुणवत्ता के मामले में भुसावल केले के सामने बाजार में टिक ही नहीं पाते। इसलिए ये यहां नहीं दिखते। कमीशन एजेंट निर्मल ने बताया कि बिहार के केले छोटे तो होते ही हैं, वे जल्दी सड़ भी जाते हैं। यही नहीं, ये ज्यादा साफ भी नहीं होते क्योंकि केले पर कीड़े रेंगने के निशान होना सामान्य सी चीज है। आढ़ती रमाशंकर ने कहा कि पकाते-पकाते बिहार के केलों के डंठल सड़ने लगते हैं। ऐसे में बिहार का केला कोई क्यों लेगा!

दूसरी ओर, कठिला (भागलपुर) के केला उत्पादक राकेश सिंह मानते हैं कि राज्य में उपजने वाले केले पारंपरिक हैं। ऐसे में उनके केले महाराष्ट्र के केलों के सामने नहीं टिक पाते। हालांकि उन्होने दावा किया कि बिहार के केले स्वाद में भुसावल के केलों से काफी बेहतर होते हैं। बिजनेस स्टैंडर्ड से हुई बातचीत में बिहार राज्य बागवानी निगम के मिशन निदेशक एस. के. जयपुरिया ने भी माना कि उनके राज्य के केले गुणवत्ता के मामले में कमतर हैं।

जयपुरिया ने बताया कि बिहार सरकार केले की पारंपरिक पौधों की बजाय टिश्यू कल्चर को बढ़ावा दे रही है। पिछले साल इस किस्म के 2 लाख पौधों को राज्य के भागलपुर, वैशाली (हाजीपुर), पश्चिमी चंपारण (बेतिया), कटिहार और पूर्णिया जिले समेत पूरे राज्य में बांटा गया। उनके मुताबिक, सरकार की कोशिश है कि साल भर में पूरे राज्य में 20 फीसदी टिश्यू कल्चर वाले केले की खेती होने लगे। इसके लिए सरकार राष्ट्रीय बागवानी मिशन और इसी तर्ज पर चलाए गए मुख्यमंत्री बागवानी मिशन के तहत केले लगाने के लिए किसानों को सब्सिडी दे रही है। सरकार ने टिश्यू कल्चर लैब स्थापित करने को भी अपनी मंजूरी दी है।

बाहर की मंडियों में माल न भेजने के सवाल पर राकेश ने बताया कि बिहार में अन्य राज्यों की तरह सालों केले की खेती नहीं होती। सामान्यत: अगस्त से अक्टूबर के बीच ही केले तैयार होते हैं पर इस दौरान राज्य की सड़कें बाढ़ से बुरी तरह प्रभावित रहती है। ऐसे में किसान अपनी निजी कोशिशों से केले को मुश्किल से बनारस और लखनऊ की मंडियों तक पहुंचा पाते हैं। दिल्ली की मंडियों तक पहुंचना तो यहां के उत्पादकों के लिए सपना सरीखा होता है। एक अन्य किसान पप्पू की शिकायत है कि रेल मंत्री बिहार के होने के बावजूद महाराष्ट्र की तरह बिहार से केले या किसी अन्य कृषि उत्पादों के लिए कोई स्पेशल ट्रेन नहीं आती।

हालांकि रेल मंत्रालय के एक अधिकारी ने इस आरोप का खंडन किया। उन्होंने कहा कि ट्रेन तक तो ढुलाई लायक पर्याप्त माल नहीं आ पाता, ऐसे में स्पेशल ट्रेन कैसे संभव है! उन्होंने बताया कि रेल मंत्रालय पहले फलों और सब्जियों की ढुलाई के लिए स्पेशल ट्रेन चला चुकी है, लेकिन माल के अभाव में इसे बंद करना पड़ा। जयपुरिया ने भी कहा कि रेल मंत्रालय से उन्हें पूरा सहयोग मिल रहा है। समस्या यह है कि हमारे राज्य में महाराष्ट्र की तरह किसानों का मजबूत और सक्षम संगठन नहीं है। इन्होंने दावा किया कि नाबार्ड के सहयोग से बिहार सरकार केला उत्पादक समूहों को संगठित करने के प्रयास कर रही है।   

First Published - July 19, 2008 | 12:24 AM IST

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