पंजाब और हरियाणा में रियल एस्टेट की बढ़ती कीमतों ने बासमती चावल के उत्पादन पर काफी बुरा असर डाला है।
इन राज्यों का हाल यह है कि पिछले कुछ समय में यहां जमीन की कीमत में कई गुणा बढाेतरी हुई है, जिसके चलते यहां के किसान अपने खेतों में बासमती उगाने की बजाए इसे प्रॉपर्टी डीलर के हाथों बेच रहे हैं। दुनिया के एक शीर्ष बासमती चावल निर्यातक लंदन की टिल्डा राइसलैंड ने एक रपट में यह जानकारी दी है।
इस फर्म के अनुसार, जो किसान अपनी जमीन नहीं बेच रहे हैं उसकी वजह उनकी बढ़ी अपेक्षाएं हैं। वे चाहते हैं कि उन्हें मौजूदा मिल रही कीमत से अधिक कीमत मिले। टिल्डा राइसलैंड ने अपनी इस रपट में बताया है कि पिछले साल भर के दौरान बासमती चावल की थोक कीमत में लगभग 100 फीसदी की वृद्धि हुई है।
इसका कारण बासमती की बढ़ती मांग और घटता उत्पादन है। इस फर्म के अनुसार, इस वजह से यूरोपीय संघ को डिलीवर होने वाले पुरानी बासमती चावल की कीमत पिछले साल भर में दोगुनी हो गई है। टिल्डा के अनुसार इस साल बासमती की कीमत में गिरावट आने के आसार हैं। इसे उम्मीद है कि साल 2030 तक बासमती की मांग में 50 फीसदी की तेजी आएगी।
उसने अपनी रपट में बताया है कि चूंकि दुनिया की कुल 6.6 अरब आबादी में से आधी चावल पर निर्भर करती है लिहाजा अगले दो दशकों में इसकी मांग 50 फीसदी से बढ़ जाएगी। इस साल बासमती चावल की मांग 42.4 करोड़ टन से अधिक नहीं होने का दावा करते हुए इस फर्म ने कहा कि फिलहाल चावल का भंडार पिछले 30 सालों के न्यूनतम स्तर पर मौजूद है।
बासमती का उत्पादन चावल की दूसरी किस्मों से कम होने की बात करते हुए इसका कहना है कि बासमती की बेहतर किस्मों का विकास किया जा रहा है, पर इसमें अभी समय लगेगा। लंबे पौधे की वजह से इसे पहुंचने वाले नुकसान की बात करते हुए रपट में कहा गया है कि इस वजह से इसके किसान दूसरी किस्मों की ओर मुड़ रहे हैं।