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जिंसों की कीमतों पर मंदी का साया

Last Updated- December 08, 2022 | 12:05 AM IST

पिछले दो दिनों में कमोडिटी की कीमतों में हुई सुधार का असर वैश्विक मंदी को कम करने पर काफी कम हुआ है।


पिछले तीन महीनों में कमोडिटी की कीमतों में काफी गिरावट आई है। ऐसा लगता है कि परिस्थितियों में जल्दी सुधार नहीं आने वाली है।पिछले साल और इस साल की बड़ी अवधि में महंगाई में प्रमुख हिस्सेदारी रखने वाले कच्चे तेल की कीमतों में भारी गिरावट आई है।

जुलाई के दूसरे सप्ताह में इसकी कीमतें जहां 143 डॉलर प्रति बैरल थीं वहीं अब इसकी कीमत घट कर 78 डॉलर प्रति बैरल हो गई है।हाल में आई गिरावट का सबसे अधिक असर रबर पर देखा गया है, इसकी कीमतों में सबसे अधिक गिरावट आई है।

प्राकृतिक रबर, (आरएसएस-4 ग्रेड) जिसका इस्तेमाल ऑटोमोबाइल टायर के उत्पादन में किया जाता है, की कीमतों में कच्चा तेल के स्स्ते होने की वजह से सबसे अधिक कमी आई है क्योंकि  इससे सिंथेटिक रबर की कीमतें भी कम होंगी। कुल मिला कर रॉयटर्स के 19 जिंसों वाले सीआरबी सूचकांक में पिछले तीन महीने के दौरान 34.89 प्रतिशत की गिरावट आई है जबकि साल 2008 की दूसरी तिमाही में इसमें 19.6 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई थी।

रेलिगेयर के प्रमुख (कमोडिटी) जयंत मांगलिक ने कहा, ‘हाल के यादगार दिनों में आई यह सबसे बड़ी गिरावट है। महत्वपूर्ण बात यह है कि गिरावट के बावजूद कारोबारी मात्रा पर प्रभावित नहीं हुई।’ पिछले तीन महीनों में सभी धातुओं की कीमतों में 20 से 40 प्रतिशत की गिरावट आई है- कुछ धातुओं की कीमतें तो 30 महीने के न्यूनतम स्तर पर पहुंच गईं।

लंदन मेटल एक्सचेंज पर, एल्युमिनियम की कीमतें 32 प्रतिशत, टिन 39 प्रतिशत, निकल 40 प्रतिशत, सीसी 22 प्रतिशत, जस्ता 27 प्रतिशत और तांबा की कीमतें 40 प्रतिशत कम चल रही थीं। अहमदाबाद स्थित जोखिम संबंधि परामर्श उपलब्ध कराने वाली कंपनी पैराडिग्म कमोडिटीज के निदेशक बिरेन वकील ने कहा, ‘धातुओं की कीमतों का कारोबार उनके उत्पादन लागत के 15 से 25 प्रतिशत कम कीमतों पर किया जा रहा है।’

इसकी प्रतिक्रिया ऑस्ट्रेलिया में भी देखी जा रही है जहां पिछले कुछ महीनों में मध्यम दर्जे की 10 और कई छोटी-छोटी कंपनियां और खनन कंपनियों ने या तो उत्पादन में कटौती करने पर विचार कर रहे हैं या फिर उत्पादन बंद करने पर विचार कर रहे हैं।और जगहों पर सरकारों ने अपनी प्रतिक्रियाएं देना शुरू कर दी हैं। पाम तेल की कीमतों में आ रही गिरावट को रोकने के लिए विश्व के दो सबसे बड़े उत्पादकों इंडोनेशिया और मलयेशिया ने निर्यात पर प्रोत्साहन देने की घोषणा की है।

इंडोनेशिया निर्यात अधिशुल्कों में कटौती कर निर्यात को प्रोत्साहित करने पर विचार कर रही है और मलयेशिया अप्रसंस्कृत पाम तेल की मात्रा की सीमाएं बढ़ा रहा है जिसका निर्यात बोलियों के आधार पर किया जा सकता है ताकि बढ़ते पाम तेल के भंडार में कमी आए और कीमतों में बढ़ोतरी हो। भारत में समान अवधि में इन जिंसों की कीमतों में आई गिरावट से कोई राहत नहीं मिली है क्योंकि डॉलर के मुकाबले रुपये के कमजोर पड़ने से निर्यात की लागत बढ़ गई है।

First Published - October 16, 2008 | 12:01 AM IST

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