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‘दूध’ की जली कपड़ा कंपनियां, फूंक-फूंक कर पी रही ‘छांछ’

Last Updated- December 07, 2022 | 4:06 PM IST

पिछले सीजन में कपास के मूल्य में हुई जबरदस्त तेजी को देखते हुए इस बार घरेलू कपड़ा कंपनियां कोई खतरा नहीं लेना चाहतीं।


इसलिए कंपनियां मुख्य सीजन (अक्टूबर से दिसंबर) में ही कपास की जमकर खरीदारी करने में जुटी हैं। इनका कहना है कि बाद में बढ़ी कीमतों पर खरीदारी करने से बचने के लिए मुख्य सीजन में ही कपास की जमकर खरीदारी करने की योजना है।

उल्लेखनीय है कि पिछले साल  की तुलना में इस साल कपास की कीमतों में 40 फीसदी की वृद्धि हो चुकी है। कपास सलाहकार बोर्ड (सीएबी) ने अनुमान जताया था कि 2007-08 सीजन में भारत से अधिकतम 85 लाख बेल्स (1 बेल्स = 170 किलोग्राम) का निर्यात किया जा सकता है।

हालांकि इसका निर्यात इस दौरान 1 करोड़ बेल्स को भी पार कर गया। इसका असर घरेलू बाजार पर दिखा कि कपास की कीमतें ऐतिहासिक ऊंचाई पर पहुंच गई। उदाहरण के लिए, भारतीय कपास निगम के मुताबिक अक्टूबर 2007 की शुरुआत में शंकर-6 किस्म के कपास का मूल्य 19,300 रुपये प्रति कैंडी (1 कैंडी = 356 किलोग्राम) था। पर जुलाई 2008 तक इसमें 46.64 फीसदी का उछाल आ गया और यह 28,300 रुपये प्रति कैंडी तक पहुंच गया।

आलोक  इंडस्ट्रीज के मुख्य वित्तीय अधिकारी सुनील खंडेलवाल ने बताया कि कपास की कीमतें अभी कम हैं। ऐसे में इसकी खरीदारी का अभी से बेहतर समय कभी नहीं हो सकता। पिछला अनुभव बताता है कि अपनी जरूरतों के लिए कपास की खरीदारी का सबसे बढ़िया समय अक्टूबर से दिसंबर के बीच है। सेंचुरी टेक्सटाइल्स एंड इंडस्ट्रीज के अध्यक्ष आर. के. डालमिया ने बताया कि देश के केंद्रीय इलाके में अभी हुई बारिश कपास का उत्पादन बढ़ाने में काफी मददगार साबित होगा।

उन्होंने बताया कि इसके बावजूद बढ़ते निर्यात की वजह से घरेलू कपड़ा उद्योग के लिए समझदारी की बात यही होगी कि मुख्य सीजन में ही इसकी खरीदारी कर ली जाए। वरना पिछले साल वाली कहानी ही दोहरायी जाएगी। कपास सलाहकार बोर्ड के अनुसार, 2007-08 में देश की घरेलू मिलों द्वारा पिछले साल की तुलना में 5 फीसदी ज्यादा यानी 2.26 करोड़ बेल्स कपास की खपत होने की उम्मीद है। गौरतलब है कि पिछले साल कपास की खपत 2.16 करोड़ बेल्स रही थी।

First Published - August 11, 2008 | 2:10 AM IST

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