कारोबारियों के मुताबिक देश में प्रति व्यक्ति खपत बढ़ने व अंतरराष्ट्रीय बाजार में चावल की कीमत तेज होने के कारण घरेलू बाजार में चावल की कीमतों में तीन सालों के दौरान लगभग दोगुने का इजाफा हो गया है।
हालांकि उनका यह भी कहना है कि बीते तीन सालों के दौरान चावल पैदावार की लागत में भी दोगुने से अधिक की बढ़ोतरी हो गयी है। आंकड़ों के मुताबिक चावल का उत्पादन देश में लगातार बढ़ रहा है।
ग्रेन मर्चेंट एसोसिएशन के मुताबिक वर्ष 2006 अप्रैल महीने में चावल परिमल की कीमत मंडी में 720-850 रुपये प्रति क्विंटल थी। 2007 अप्रैल में यह कीमत बढ़कर 900-1000 रुपये प्रति क्विंटल हो गयी तो वर्ष 2008 के अप्रैल महीने के पहले सप्ताह में इसी चावल की कीमत 1300-1350 रुपये के स्तर पर पहुंच गयी। फिलहाल तो इसकी कीमत 1500 रुपये प्रति क्विंटल से भी अधिक बतायी जा रही है।
कारोबारी कहते हैं ऐसा भी नहीं है कि देश में चावल के उत्पादन में कोई कमी हो रही है। गत वर्ष चावल का उत्पादन लगभग 95 मिलियन टन हुआ है तो उससे पहले चावल का उत्पादन लगभग 91 मिलियन टन हुआ था। वर्ष 2006 में यह उत्पादन लगभग 91 मिलियन टन था। आंकड़ों पर गौर करें तो चावल उत्पादन के लिहाज से भारत का विश्व में दूसरा स्थान है।
वर्ष 2006 में विश्व के कुल उत्पादन में भारत की हिस्सेदारी 23.54 फीसदी थी तो 2005 में विश्व स्तर पर चावल के कुल उत्पादन में भारत की हिस्सेदारी 21.67 फीसदी थी तो 2004 में भी लगभग इतनी ही हिस्सेदारी थी। वर्ष 2004 व वर्ष 2003 में तो भारत का चावल उत्पादन चीन से भी अधिक था। वर्ष 2003 में विश्व के कुल चावल उत्पादन में चीन की हिस्सेदारी जहां मात्र 12.78 फीसदी थी वही भारत की हिस्सेदारी 31.18 फीसदी थी।
कृषि व प्रसंस्कृत खाद्य उत्पादन निर्यात विकास प्राधिकरण के आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2005-06 के दौरान 1166563.59 मिट्रिक टन गैर बासमती चावल का निर्यात किया गया। वर्ष 2004-05 के दौरान गैर बासमती चावल का निर्यात 11,602989.16 मिट्रिक टन रहा। थोक कारोबारियों का कहना है कि तब निर्यात भी ज्यादा हो रहे थे उत्पादन भी इस साल के मुकाबले कम था तो फिर चावल की कीमतों में इतनी बढ़ोतरी कैसे हो गयी।
ग्रेन मर्चेंट एसोसिएशन के प्रधान ओम प्रकाश जैन कहते हैं, सारा खेल जनसंख्या का है। देश की आबादी जिस रफ्तार से बढ़ रही है उस रफ्तार से चावल का उत्पादन नहीं बढ़ रहा है। हालांकि सरकारी सूत्रों के मुताबिक देश की जनसंख्या 2 फीसदी की दर से बढ़ रही है वही दसवीं पंचवर्षीय योजना के दौरान खाद्यान की उत्पादन दर 2.6 रही है।
जैन कहते हैं कि चावल व गेहूं की बुआई भी अब कम होने लगी है। इस साल रबी का बुआई पिछले साल के मुकाबले 4 फीसदी कम जमीन पर की गयी। सरसों की बुआई तो 11 पिछले साल के मुकाबले 11 फीसदी कम जमीन पर हुई। कारोबारियों का कहना है कि प्रति व्यक्ति खपत बढ़ गयी है। मांग के हिसाब से आपूर्ति नहीं है। लिहाजा कीमत में बढ़ोतरी हो रही है। लेकिन सरकार इन बातों को जानते हुए भी व्यापारी को परेशान कर रही है।