खाद उत्पादकों को सल्फ्यूरिक और फॉस्फोरिक अम्ल पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध कराने के लिए सरकार इनके निर्यात पर प्रतिबंध लगाने की संभावनाओं पर विचार कर रही है।
इन दो कच्चे मालों की भारी किल्लत और बहुत अधिक कीमत से जूझ रहे खाद निर्माताओं ने पहले ही इनके निर्यात पर प्रतिबंध लगाने का सुझाव दिया था। सल्फ्यूरिक अम्ल सिंगल सुपर फॉस्फेट खाद का प्रमुख कच्चा माल है जबकि फॉस्फोरिक अम्ल का प्रयोग डाइ-अमोनियम फॉस्फेट बनाने में किया जाता है।
सल्फ्यूरिक और फॉस्फोरिक अम्ल के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने के लिए खाद मंत्रालय ने आर्थिक मामलों की कैबिनेट कमेटी (सीसीईए) के लिए एक नोट तैयार कर लिया है। एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने बताया, ‘हम यह नहीं चाहते कि सल्फ्यूरिक और फॉस्फोरिक अम्ल के निर्माता घरेलू खाद उद्योग को अपने उत्पाद कम कीमत पर बेचें। वे अंतरराष्ट्रीय मूल्यों के हिसाब से कीमत प्राप्त करने के हकदार हैं।’
हालांकि , उन्होंने कहा कि भारत गंधक, सल्फ्यूरिक अम्ल और फॉस्फोरिक अम्ल का आयातक है, इसे इन जिंसों का निर्यात नहीं करना चाहिए। निर्यात पर प्रतिबंध लगाए जाने से अंतरराष्ट्रीय मूल्यों में भी कमी आएगी। उल्लेखनीय है कि भारत के आयात की बढ़ती मांगों से अंतरराष्ट्रीय बाजार में इनकी कीमतें बढ़ रही हैं। वर्तमान में, सल्फ्यूरिक अम्ल का 13,000 रुपये प्रति टन और फॉस्फोरिक अम्ल का 90,000 रुपये प्रति टन सेअधिक के मूल्यों पर आयात किया जा रहा है।
अधिकारी ने कहा कि निर्यात पर प्रतिबंध लगने से सल्फ्यूरिक अम्ल और फॉस्फोरिक अम्ल के निर्माताओं को अपना खाद संयंत्र लगाने की प्रेरणा मिल सकती है। सरकार की वर्तमान नीतियों के अनुसार इन दोनों जिसों के आयात और निर्यात पर शुल्क नहीं लगाया जाता है। नामीबिया, ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, चिली, इजिप्ट और मलयेशिया सलफ्यूरिक अम्ल के लिए भारत के प्रमुख निर्यात बाजार हैं।
फॉस्फोरिक अम्ल का 98 प्रतिशत बांग्लादेश को भेजा जाता है। 2007-08 के अप्रैल-दिसंबर के दौरान 2.95 लाख टन सल्फ्यूरिक अम्ल का निर्यात किया गया। वित्त वर्ष 2006-07 की पूरी अवधि में 37,043 टन का निर्यात किया गया था। इसी प्रकार 07-08 के अप्रैल से दिसंबर के दौरान 30,430 टन फॉस्फोरिक अम्ल का निर्यात किया गया।