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कतरन में छिपा चीनी पाठ

Last Updated- December 07, 2022 | 12:41 AM IST

रिसाइक्लिंग की प्रक्रिया पैसा कमाने का एक असरदार तरीका है। इसके जरिए धातुओं के कचरों से धातु प्राप्त करना खनिजों से धातु पाने की तुलना में कम खर्चीला और कम मेहनत वाली प्रक्रिया होती है।


फिलहाल, लौह और अलौह दोनों ही प्रकार की धातुओं की कीमतें ऐतिहासिक ऊंचाई को छू रही हैं। अभी इस्पाती स्क्रैप भी 600 डॉलर प्रति टन के भाव को छू रहा है। सभी अलौह धातुओं में तांबे की रिसाइक्लिंग सबसे अच्छे से होती है।

पर्यावरणवादी भी धातुओं की रिसाइक्लिंग का समर्थन करते हैं। इसकी प्रमुख वजह यही है कि इस प्रक्रिया से धातु प्राप्त करने में खनिजों से धातु निकालने की तुलना में 75 फीसदी कम ईंधन की जरूरत होती है। इस्पात और क्षार धातुओं का दुनिया में सबसे बडा उत्पादक और उपभोक्ता चीन और धातु के मामले में तेजी से उभरने वाला भारत इन दोनों ही देशों में धातु उद्योगों को ऊर्जा की पूर्ति मुख्यत: कोयले से तैयार बिजली से ही होती है।

जबकि कोयले से चलने वाले बिजली घर खतरनाक अम्ल वर्षा के कारक बन रहे हैं। आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी) की एक रिपोर्ट में भी कहा गया है कि वायु प्रदूषण के चलते श्रमिकों का स्वास्थ्य प्रभावित होता है जिससे किसी देश के कुल उत्पादन पर असर पड़ सकता है।

दुनिया जानती है कि चीन हवा में बड़े पैमाने पर हानिकारक और विषैले पदार्थों को छोड़ रहा है। इस साल चीन 53 करोड़ टन से अधिक इस्पात का उत्पादन कर रहा है। इसके अलावे उसने एल्युमिनियम की खपत को 10 लाख टन प्रति वर्ष तक बढ़ाने का लक्ष्य रखा है।

प्रदूषण को लेकर हो रहे चौतरफा आलोचनाओं के जवाब में चीन ने कहा है कि वह प्रदूषण फैलाने वाली 10 करोड़ टन क्षमता की इस्पात इकाइयों को धीर-धीरे बंद करेगी। जबकि पर्यावरण विरोधी साबित हो रहे एल्युमिनियम और तांबे की भट्ठियों और 50 हजार मेगावाट क्षमता के बिजली संयंत्रों पर भी ताले जड़े जाएंगे। लेकिन भ्रष्ट अफसरों की मिलीभगत से चीन में अभी भी कई प्रदूषण फैलाने वाली इकाइयां काम कर रही हैं।

चीन ने स्क्रैप जमा करने के लिए एक साइटिंफिक रिकवरी सिस्टम की शुरुआत की है। इसके तहत स्क्रैप को जमा करने के बाद इसे क्षेत्रीय वितरण केंद्रों या सीधे सेकेंडरी मेटल प्रोसेसर को भेज दिया जाता है। पर अफसोस की बात है कि भारत में चीन के मुकाबले धातु उत्पादन की समृद्ध परंपरा होने के बावजूद हम अब तक ऐसा स्क्रैप एकत्र करने का व्यवस्थित नेटवर्क नहीं बना पाये हैं।

भारत के  स्क्रैप डीलरों की इस राय में वाकई दम है कि देश में चीन की तरह ही बड़े रिसाइक्लेबल रिसोर्स प्रोसेसिंग पार्क होने चाहिए। भारत स्क्रैप निपटान के मामले में चीन से भी अच्छा कर सकता है यदि वह इस दिशा में चीन द्वारा उठाए जा रहे कदमों पर गौर करे।

First Published - May 20, 2008 | 1:37 AM IST

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