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तांबा हुआ 8.5 फीसदी महंगा

Last Updated- December 05, 2022 | 5:31 PM IST

बढ़ती लागत व उछाल लेती मांग को देखते हुए हिन्दुस्तान कॉपर लिमिटेड ने अपने आधार बिक्री मूल्य में 8.5 फीसदी की बढ़ोतरी का ऐलान किया है।


यह बढ़ोतरी भारतीय सार्वजनिक क्षेत्र की इस कंपनी के सभी उत्पादों के लिए है जो एक अप्रैल से लागू माना जाएगा। कैथोड की कीमत बदलाव के बाद बढ़कर 354,100 रुपये प्रतिटन से 355,500 रुपये प्रतिटन हो गई। उसी तरीके से  8 एमएम स्टैंडर्ड की सीसी रॉड की कीमत में भी बढ़ोतरी दर्ज की गई। इसकी कीमत 358,200 रुपये प्रतिटन के स्तर पर चली गई।


8 एमएम के गैर स्टैंडर्ड सीसी रॉड की कीमत 357,800  रुपये प्रतिटन हो गई। जबिक 11-16 एमएम के बीच की सीसी  रॉड की बिक्री 8.47 फीसदी की बढ़ोतरी के साथ 359,809 रुपये प्रतिटन पर की जा रही थी। 


कंपनी ने मार्च महीने के लिए भी तांबे के उत्पादों की कीमतों में 8.5 फीसदी की बढ़ोतरी का फैसला किया है। क्योंकि कैथोड फुल की कीमत अब 372,712 रुपये प्रतिटन के स्तर पर स्थिर हो गई है तो कट की कीमत 374,212  रुपये प्रतिटन के स्तर पर। वही स्टैंडर्ड 8 एमएम सीसी रॉड की कीमत 377,013 रुपये प्रतिटन तो गैर स्टैंडर्ड की कीमत 376,613 रुपये प्रतिटन तय की गई है।


11-16 एमएम की कीमत अब 378,734 रुपये प्रतिटन पर स्थिर बताई जा रही है। आश्चर्य की बात है कि मूल्यों में आए इस बदलाव का एलएमई के जारी रुख पर कोई असर नहीं पड़ा है। तांबे की कीमत विश्व के धातु बाजार में पिछले एक महीने से स्थिर है।


इस लाल धातु की कीमत मार्च में फिसलकर 8565 डॉलर प्रतिटन के स्तर पर आ गई थी जो मार्च के अंत में 8520 डॉलर प्रतिटन की तरफ जाती दिखी। आम तौर पर देखा जाता है कि घरेलू तांबा उत्पादन के बड़े खिलाड़ी हिंडाल्को इंडस्ट्रीज, स्टरलाइट इंडस्ट्रीज व हिन्दुस्तान कॉपर जैसी कंपनियों द्वारा मूल्यों में बदलाव से ही एलएमई के मूल्य पर फर्क पड़ता था।


एक कंपनी के अधिकारी ने बताया कि कंपनियां अस्थायी मूल्य को तय करने के लिए  गत महीने के दौरान एलएमई पर तांबे के औसत मूल्य, डॉलर के मुकाबले रुपये के उतार-चढ़ाव व कई प्रकार के करों को आधार बनाती हैं। इससे भाव में विश्व बाजार में बढ़ती कीमत से एकदम से तेजी नहीं आती है।


विश्व में फिलहाल हर जगह कच्चे धातु की कमी देखी जा रही है। इसलिए धातु गलाने व उसे रिफाइन करने के काम की कीमत में भी 1.4 फीसदी  प्रति पाउंड की गिरावट देखी गई। और यह 140 डॉलर प्रतिटन के स्तर पर आ गई है। धातु गलाने व उसे रिफाइन करने की दरों में आई गिरावट से बहुत सारी इस प्रकार की कंपनियां इन दिनों पसोपेश की स्थिति में है। इस कारण तांबे को गलाने का काम इन दिनों नगण्य हो गया है।


धातु गलाने व उसे रिफाइनंड करने की कीमत में बढ़ोतरी को लेकर खान मालिकों व धातु गलाने वालों के बीच सौदेबाजी भी चल रही है लेकिन इसमें कोई बहुत बड़ी बढ़ोतरी होती नजर नहीं आ रही है। क्योंकि बाजार में कच्चे तांबे की कमी चल रही है। इस कारण से धातु गलाने के काम करने वालों के उत्पादन में 25-30 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। और भारत इस मामले में कोई अपवाद नहीं है।


इस उद्योग से जुड़े सूत्रों के मुताबिक भारत में इस प्रकार के काम करने वालों के उत्पादन में 10-15 फीसदी की कमी आई है। यहां पहले से ही उनकी उत्पादन क्षमता 55-60 फीसदी हो चुकी है।सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि तांबे टुकड़े की आपूर्ति भी इन दिनों अपने न्यूनतम स्तर पर है।


हालांकि माना जा रहा हैकि तांबे की मांग में कम से कम 5-6 फीसदी की बढ़ोतरी होगी। क्योंकि इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं की मांग में बढ़ोतरी की संभावना व्यक्त की जा  रही है। और इन वस्तुओं में तांबे का इस्तेमाल होता है। निर्माण के क्षेत्र में आई तेजी के कारण उम्मीद की जा रही है कि भारत में भी तांबे की मांग में जबरदस्त तेजी आएगी। भारत में कुल 6.5 लाख टन तांबे की खपत है तो यहां 10 लाख टन तांबे का उत्पादन होता है।

First Published - April 2, 2008 | 12:39 AM IST

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