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घट रही है भारत में कृषि क्षेत्र की बारिश पर निर्भरता, नए ट्रेंड दे रहे कुछ अलग संकेत

साल 2012-12 और 2022-23 के बीच बारिश और अनाज उत्पादन के आंकड़ों के अध्ययन से पता चलता है कि बारिश और उत्पादन में संबंध घटा है।

Last Updated- February 24, 2025 | 6:55 AM IST
Agriculture

क्या भारत के खाद्यान्न उत्पादन की बारिश पर निर्भरता कम हो रही है? आम धारणा यह है कि बारिश कम होने पर अनाज के उत्पादन पर विपरीत असर पड़ता है। लेकिन हाल का एक अध्ययन कुछ अलग संकेत दे रहा है। साल 2012-12 और 2022-23 के बीच बारिश और अनाज उत्पादन के आंकड़ों के अध्ययन से पता चलता है कि बारिश और उत्पादन में संबंध घटा है। इसकी तुलना में अनाज की कीमत, बिजली, उर्वरक की उपलब्धता और सिंचाई की सुविधा का उत्पादन से ज्यादा संबंध है। भंडारण की क्षमता और खाद्यान्न उत्पादन में कमजोर सहसंबंध नजर आता है।

उद्योग संगठन पीएचडीसीसीआई की शोध शाखा के विश्लेषण से पता चलता है कि भारत के खाद्यान्न उत्पादन में वृद्धि पर खाद्यान्न की कीमत, बिजली की खपत, गोदाम की क्षमता, सकल सिंचित क्षेत्र में वृद्धि का असर बढ़ रहा है और बारिश का असर कम हो रहा है।

यह विश्लेषण ‘इंडियाज एग्रीकल्चरल ट्रांसफॉर्मेशनः फ्रॉम फूड स्केर्सिटी टु सरप्लस’ नाम से जारी रिपोर्ट में किया गया है। इसमें कहा गया है, ‘पिछले कुछ वर्षों से बारिश का अनाज उत्पादन पर सांख्यिकीय रूप से कोई बड़ा असर देखने को नहीं मिल रहा, जबकि परंपरागत विचार यह है कि भारत में कृषि की मॉनसून पर व्यापक निर्भरता होती है।’

विश्लेषण से पता चलता है कि डब्ल्यूपीआई में शामिल खाद्य वस्तुओं (उत्पादन पर कीमत के असर का विश्लेषण करने के लिए), बिजली की खपत, गोदाम की क्षमता, सकल सिंचित क्षेत्र का खाद्यान्न उत्पादन पर10 फीसदी का उल्लेखनीय सह-संबंध है।

लेखकों के मुताबिक सालाना बारिश (इसमें मॉनसूनी बारिश शामिल है) के आंकड़े जनवरी से दिसंबर की अवधि के हैं, जबकि खाद्यान्न उत्पादन, बिजली की खपत, खाद्य वस्तुओं की थोक महंगाई आदि की गणना वित्त वर्ष के आधार पर की गई है।

अध्ययन में कहा गया है कि कृषि क्षेत्र की आज की चुनौतियों से निपटने के लिए वैज्ञानिक खेती को बढ़ावा देने सहित नीतिगत कदमों, निजी क्षेत्र की अधिक संलग्नता और उदार बाजार जरूरी है।

इसमें यह भी अनुमान लगाया गया है कि प्रसंस्कृत उत्पादों की मांग को देखते हुए भारत के खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र का बाजार साल 2030 तक दोगुने से ज्यादा बढ़कर 700 अरब डॉलर तक पहुंचने की संभावना है, जो 2023 में 307 अरब डॉलर का था। वर्ष2035 तक इस सेक्टर का आकार बढ़कर 1,100 अरब डॉलर, 2040 तक 1,500 अरब डॉलर, 2045 तक 1,900 अरब डॉलर और 2047 तक 2,150 अरब डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है।

एक बयान में पीएचडीसीसीआई ने कहा कि भारत का कृषि एवं संबंधित क्षेत्र बहुत मजबूती से बढ़ रहा है। वर्ष2013-14 से 2023-24 के बीच इस क्षेत्र की सालाना वृद्धि दर 3.9 प्रतिशत बरकरार रही है, जिससे राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में कृषि क्षेत्र की बढ़ती भूमिका का पता चलता है।

First Published - February 24, 2025 | 6:55 AM IST

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