इस्पात उत्पादकों के साथ एक लंबी लड़ाई के बाद आखिरकार सरकार ने विभिन्न इस्पात उत्पादों के निर्यात पर 15 फीसदी का शुल्क लगा दिया।
गत सोमवार से ही इस बात की संभावना जतायी जा रही थी। सरकार ने यह फैसला स्टील उत्पादों की लगातार बढ़ती कीमतों के मद्देनजर किया है। सरकार इन दिनों बढ़ती मुद्रास्फीति से काफी चिंतित नजर आ रही है।
वित्त मंत्री पी.चिदंबरम ने संसद में वित्त विधेयक पर चर्चा के दौरान बताया कि फिनीश्ड स्टील उत्पादों पर 15 प्रतिशत निर्यात शुल्क तथा गैल्वेनाइज्ड शीट पर पांच प्रतिशत का शुल्क लगाया गया है।उन्होंने बताया कि सरकार के इस फैसले से मांग व आपूर्ति के बीच पैदा हुई खाई को कम किया जा सकेगा। जिससे इस्पात की कीमत काबू में रहेगी।
उन्होंने मूल इस्पात निर्माण के काम आने वाली कच्ची सामग्री मेटकोक, फेरो अयस्क तथा जस्ते आदि पर सीमा शुल्क को भी घटाकर शून्य करने की घोषणा की। इसी तरह, उन्होंने टीएमटी छड़ आदि निर्माण सामग्री पर काउंटरवेलिंग डयूटी को समाप्त कर दिया गया है। सरकार की इन कदमों पर हाल ही में अंतर मंत्रालीय स्तर पर भी विचार विमर्श हुआ था जिसमें इस्पात मंत्री राम विलास पासवान, वाणिज्य मंत्री कमलनाथ, खनिज मंत्री शीश राम ओला भी मौजूद थे।
वित्त मंत्री की इस घोषणा के बाद इस्पात की कीमतों को काबू में करने के लिए किए जाने वाले सरकारी उपाय के बारे में लग रही तमाम अटकलें अब समाप्त हो गयी हैं। गौरतलब है कि चालू मुद्रास्फीति में इस्पात का योगदान 21.3 फीसदी है।
वित्त मंत्री इस्पात उत्पाद के निर्यात पर लगने वाले शुल्क से होने वाले घाटे से उबरने के लिए एक रेवन्यू न्यूट्रल मॉडल अपनाने के लिए कहा। अनुमान के मुताबिक 15 फीसदी के निर्यात शुल्क से सरकार को 5,000 करोड़ रुपये का घाटा हो सकता है। इस फैसले से पहले सरकार ने कहा था कि स्टील उत्पादों की कीमत में नियंत्रण के लिए इसके निर्यात पर डयूटी इंटाइटलमेंट पास बुक (डीईपीबी) स्कीम के तहत मिलने वाली छूट को खत्म कर दिया जाएगा।
इस्पात निर्यातकों ने सरकार की इन बातों का विरोध करते हुए कहा था कि निर्यात में कमी से उनकी प्रतिस्पर्धा पर प्रतिकूल असर पड़ेगा और अंतरराष्ट्रीय बाजार में देश की छवि को भी धक्का पहुंचेगा।
इंडियन स्टील एलायंस के अध्यक्ष मूला रजा ने कहा कि सरकार के इस फैसले के बाद यह नहीं कहा जा सकता कि इससे घरेलू बाजार में स्टील की कितनी मात्रा की आपूर्ति बढ़ जाएगी। क्योंकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में स्टील कंपनियों को कुछ रिश्ते भी निभाने पड़ते है और जो लंबे समय के लिए अनुबंध किए जा चुके हैं उसे भी पूरा करना पड़ेगा।