संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) ने कहा है कि अल्पावधि में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कमोडिटी की कीमतें नरम पड़ने की उम्मीद नहीं है।
एफएओ के महानिदेशक जैक्स डायफ ने बुधवार को खाद्य मंत्री शरद पवार के साथ मुलाकात के बाद संवाददाताओं को बताया कि दुनिया भर में मांग-आपूर्ति में अंतर की वजह से खाद्य वस्तुओं की कीमत में बढ़ोतरी हो रही है। अल्पावधि में इसके नरम पड़ने की संभावना नहीं है।
उन्होंने कहा कि दुनिया भर में आज खाद्य मोर्चे पर हालात गंभीर हैं और जल्दी कीमतों में कमी नहीं आने वाली। उन्होंने कहा कि इस वक्त पूरी दुनिया में अनाज का स्टॉक काफी कम है और यह पूरी आबादी का पेट सिर्फ 8-12 हफ्तों तक भर सकती है। मिस्र, कैमरून, हैती, बुर्कीना फासो और सेनेगल जैसे देशों में इसे लेकर संघर्ष भी हुए हैं। यह संघर्ष अन्य देशों में भी फैल सकता है।
एफएओ के महानिदेशक ने कहा कि विकासशील देशों के लोग अपनी कुल आमदनी का 50-60 फीसदी हिस्सा खाने-पीने पर खर्च करते हैं और अगर इन चीजों की कीमतें बढ़ती है जो इसका सबसे ज्यादा असर इन्हीं लोगों पर पड़ता है। उन्होंने कहा कि विकासशील देशों मसलन भारत-चीन जैसे देशों में खाद्यान्न की मांग तेजी से बढ़ रही है और पूरी दुनिया में इसकी कीमतें इसलिए भी बढ़ रही है।
अब अनाजों का इस्तेमाल बायो-फ्यूल बनाने में होने लगा है और कीमतों पर इसका भी अच्छा असर पड़ रहा है। हालांकि पवार ने देश में खाद्यान्न के पर्याप्त स्टॉक का भरोसा जताया। पवार ने कहा कि एक अप्रैल की स्थिति के मुताबिक हमारे पास आधा मिलियन टन सरप्लस अनाज है। भारतीय खाद्य निगम के मुताबिक, एक अप्रैल को निगम के पास 55 लाख टन गेहूं का स्टॉक था और बफर स्टॉक नार्म्स के मुताबिक यह 40 लाख टन होना चाहिए।
महानिदेशक ने कहा कि इन परिस्थितियों पर चर्चा करने के लिए एफएओ ने 3-5 जून को आपात बैठक बुलाई है। उन्होंने कहा कि इस बैठक में अन्य बातों के अलावा ग्लोबल वॉर्मिंग से पड़ने वाले असर पर भी चर्चा होगी।
उन्होंने कहा कि बैठक में इस बात पर भी चर्चा होगी कि क्या विकसित देशों द्वारा एथेनॉल बनाने के लिए अनाजों के इस्तेमाल पर रोक लगाई जानी चाहिए। अमेरिका का नाम लिए बिना महानिदेशक ने कहा कि वहां बायो फ्यूल के उत्पादन के लिए करीब 100 मिलियन अनाज का इस्तेमाल हो रहा है। उन्होंने कहा कि इस मात्रा में 2017 तक 12 गुना इजाफा होगा।
महानिदेशक ने कहा कि 1980 के बाद पूरी दुनिया में खाद्यान्न की स्थिति सबसे बुरी है। उन्होंने कहा कि विकासशील अर्थव्यवस्था मसलन भारत-चीन में आमलोगों की बढ़ती आमदनी से खाद्यान्न की मांग में इजाफा हो रहा है।
ऑस्ट्रेलिया, कजाकिस्तान में सूखे की स्थिति और भारत व बांग्लादेश में बाढ़ की बदौलत खाद्यान्न की आपूर्ति में बाधा पहुंची है। उन्होंने कहा कि चीन में तापमान में गिरावट और ग्लोबल वॉर्मिंग का भी इस पर असर पड़ा है। यह पूछे जाने पर कि ऐसी स्थिति से उबरने के लिए क्या किया जाना चाहिए, उन्होंने कहा कि हमें अनाज की पैदावार बढ़ानी होगी, ग्रामीण इलाकों में निवेश बढ़ाना होगा और जल संसाधनों का बेहतर करना होगा।
यह पूछे जाने पर कि जीएम फसल पर वे क्या सोचते हैं, उन्होंने कहा कि इस मामले पर सदस्य देशों की राय अलग-अलग है यानी वे बंटे हुए हैं। उन्होंने कहा कि जहां तक जीएम मामले का सवाल है, एफएओ विश्व स्वास्थ्य संगठन के साथ है।