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आलू के बाजार भाव से परेशान हैं यूपी के किसान

Last Updated- December 07, 2022 | 6:46 PM IST

होली यानी मार्च के आसपास उत्तर प्रदेश के आलू किसानों को आलू की बंपर पैदावार होने पर काफी खुशी हुई थी। लेकिन कानपुर से लेकर आगरा और उसके आसपास के आलू उत्पादक अब परेशान हैं।


परेशानी की मुख्य वजह राज्य के आलू मंडियों में आलू की कीमतों का एकदम से गिर जाना है। हालत यह है कि कन्नौज, फर्रुखाबाद, सिरसागंज, आगरा और कानपुर की मंडियों में अभी आलू की कीमत महज 225 से 300 रुपये प्रति क्विंटल रह गई है।

गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश अकेले ही देश का लगभग 50 फीसदी आलू पैदा करता है। आलू उत्पादक देशों की सूची में उत्तर प्रदेश को भी रखें तो उत्तर प्रदेश का 12वां स्थान होगा। सामान्यत: राज्य का औसत आलू उत्पादन 100 से 105 लाख टन सालाना है पर बीते सीजन में यहां रेकॉर्ड 140 लाख टन आलू पैदा किया गया।

आंकड़ों के मुताबिक, राज्य में आलू की खपत 60 लाख टन के आसपास है जबकि शेष आलू को या तो दूसरे राज्यों में भेज दिया जाता है या इसका निर्यात कर दिया जाता है। भले ही मंडियों में आलू का थोक भाव सिरे से गिर चुका है लेकिन कारोबारियों, थोक विक्रेताओं ओर बिचौलियों के मुनाफे पर कोई असर नहीं पड़ा है।

सूत्रों के अनुसार, इसकी मुख्य वजह आलू की खुदरा कीमतों का अभी भी 1,000 रुपये प्रति क्विंटल के आसपास बने रहना है। इसके बावजूद राज्य सरकार का कोई अधिकारी या प्रवक्ता यह बताने को तैयार नहीं है कि एक क्विंटल पर बाकी बचे 700 रुपये किसकी जेब में जा रहे हैं। मार्च-अप्रैल का हाल यह था कि राज्य के सभी कोल्ड स्टोरेज हाउसफुल हो गए जबकि बड़े पैमाने पर आलू कोल्ड स्टोरेज के बाहर सड़ रहा था।

किसानों ने तो आलू रखवाने के लिए इन स्टोरेज के बाहर खूब प्रदर्शन भी किए थे पर अब की स्थिति कुछ और है। इन स्टोरेज में जो आलू रखे भी गए उनके मालिक अब कीमतों के फर्श तक चले जाने से इसे स्टोरेज से बाहर निकालने को तैयार ही नहीं हैं। सिरसागंज सहित मैनपुरी जिले के कई जगहों पर कोल्ड स्टोरेज की चेन चलाने वाले राघवेंद्र सिंह के मुताबिक आलू के भाव गिरने से किसानों और कोल्ड स्टोरेज मालिकों के माथे पर बल पड़ चुके हैं।

उनके मुताबिक, आलू पैदा करने और कोल्ड स्टोरेज के किराए आदि का खर्च ही 350 रुपये प्रति क्विंटल के आसपास है। ऐसे में कोई भी किसान 225 से 300 रुपये प्रति क्विंटल में आलू बेचने को तैयार नहीं है। इसका खामियाजा स्टोरेज मालिकों को भी उठाना पड़ रहा है। राघवेंद्र के मुताबिक, अनुबंध की शर्तों के तहत 30 अक्टूबर तक सभी स्टोरेज मालिकों के हाथ बंधे हैं।

प्राय: हरेक साल अगस्त तक लगभग 40 फीसदी आलू स्टोर से निकाल लिया जाता था लेकिन इस साल अब तक महज 10 फीसदी आलू ही स्टोरेज से निकाले गए हैं। उन्होंने कहा कि यदि 30 अक्टूबर के बाद भी किसानों ने आलू नहीं निकाले तो जिला वानिकी अधिकारी से अनुमति लेकर स्टोरेज में पड़े आलू की खुले बाजार में नीलामी कर दी जाएगी।

इस समस्या के लिए राज्य के आलू किसान और कोल्ड स्टोरेज मालिक राज्य के कृषि उत्पाद विपणन समिति पर आलू निर्यात को प्रोत्साहित कर पाने में विफल रहने का आरोप लगाया है। जानकारों के अनुसार, 2005 में तत्कालीन मुलायम सिंह सरकार ने उत्तर प्रदेश में पैदा होने वाले आलू के निर्यात के लिए कई कदम उठाए थे।

तब आलू निर्यात में किसानों की भूमिका सुनिश्चित करने के लिए फर्रुखाबाद, कन्नौज, आगरा, इटावा, मैनपुरी, फिरोजाबाद, मेरठ और हापुड़, जो राज्य के आलू बेल्ट के रूप में जाने जाते हैं, से 21 किसानों को लेकर यूपी पोटेटो एक्सपोर्ट फैसिलिटेशन सोसायटी का गठन किया गया था। इसका मुख्यालय मुंबई में वासी में बनाया गया था। इस संगठन में कोल्ड स्टोरेज उद्योग के प्रतिनिधियों को भी शामिल किया गया था।

राज्य के एपीएमसी ने भी आलू किसानों को ‘ब्रांड प्रोत्साहन ग्रांट’ प्रदान किया था। इसके बाद 2006 में 250 टन आलू का निर्यात किया गया। लेकिन पिछले दो सालों से सोसायटी का कार्यालय यूं ही बेकार पड़ा है। जानकारों के मुताबिक आलू किसानों और कारोबारियों के बीच कोई तालमेल न होना निर्यात कम रहने की मूल वजह है।

First Published - August 26, 2008 | 11:11 PM IST

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