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बंद होने के कगार पर पहुंची फाउंड्री यूनिटें

Last Updated- December 05, 2022 | 7:02 PM IST

लागत व लाभ के बीच संतुलन स्थापित नहीं होने से बीते पंद्रह दिनों के भीतर 50 छोटे व मझोली ढलाई (फाउंड्री) इकाइयां बंद हो चुकी हैं।


और इस प्रकार की 100 अन्य इकाइयां बंदी के कगार पर है।बताया जा रहा है कि कच्चे माल की कीमतों में बेतहाशा बढ़ोतरी के कारण इन इकाइयों की लागत काफी बढ़ गई थी लेकिन उसके मुकाबले इनके उत्पाद कीमत में बहुत ही कम बढ़ोतरी हुई। इन्हीं कारणों से ढ़लाईखाना चलाने वाले ये उद्यमी अपनी इकाइयों को बंद कर रहे हैं। सूत्रों के मुताबिक अकेले पुणे में इस प्रकार की 25 इकाइयां बंद हो चुकी हैं।


पुणे में इस प्रकार की काफी इकाइयां हैं। इंडियन इंस्टीटयूट ऑफ फाउंड्री मेन (आईआईएफ) के अध्यक्ष वी महादेवन के मुताबिक निश्चित रूप से ढलाईखाने की क्षमता में कमी आई है। इनकी क्षमता में 60 फीसदी की गिरावट आ चुकी है। और अब ये अपने 40 फीसदी क्षमता के साथ ही काम कर रहे हैं। महादेवन कहते हैं, ‘ऑटो कंपोनेंट मैन्युफैक्चरर्स (एसीएम) ने कीमत में बढ़ोतरी से साफ इनकार कर दिया है इस कारण ढलाई उद्योग काफी संकट में है।


चूंकि ये इकाइयां एसीएम के साथ पांच-छह सालों के लिए अनुबंध करते हैं लिहाजा एसीएम ने किसी भी प्रकार की मूल्य बढ़ोतरी से मना कर दिया है।’ गौरतलब है कि ढ़ली हुई वस्तुओं की 75-80 फीसदी की खपत एसीएम के बीच होती है।


इस कारण एसीएम के किसी भी फैसले से ढलाई से जुड़ी इकाइयां सीधे तौर पर प्रभावित होती है। उद्योग के मुताबिक पुणे में छोटे आकार की 80 इकाइयां तो बड़े आकार की 6 इकाइयां है। आईआईएफ के निदेशक एके आनंद ने ई-मेल के जरिए बताया कि इस दौरान भारत का ढ़लाई उद्योग अभूतपूर्व संकट से जूझ रहा है। इस कारण से इस उद्योग के उत्पादन में व्यापक तौर पर कटौती की जा रही है या फिर इकाइयां बंद की जा रही हैं।


इस कारण इससे जुड़े ऑटोमोबाइल, ऑटो कंपोनेंट, ट्रैक्टर, इंजीनियरिंग, मशीन टूल्स, टैक्सटाइल्स जैसे उद्योगों पर भी असर हो सकता है। निर्यात मूल्य में बढ़ोतरी के कारण इस उद्योग की लागत में जबरदस्त बढ़ोतरी दर्ज की गई है।


गत छह महीने के दौरान कच्चे माल की कीमत आसमान पर चली गई है। कच्चे माल की कीमत का हाल यह है कि यह हर एक सप्ताह के अंतराल पर बढ़ रही है। इधर आईआईएफ ने साफ तौर पर इस बात की चेतावनी दी है कि अगर ढ़लाई उद्योग का घाटा इसी तरह बढ़ता रहा और उसे कम करने के लिए कोई उपाय नहीं किए गए तो वे उद्यमी अपनी-अपनी इकाइयों को बंद कर देंगे।


गौरतलब है कि 90 के दशक में भी ऐसी ही स्थिति पैदा हो गई थी तब एफआईआई के अध्यक्ष एसएच पंचाल के नेतृत्व में इन उद्यमियों ने इकाइयों को बंद करने का फैसला किया था। लेकिन ऑटो कंपोनेंट उत्पादकों द्वारा कीमत में बढ़ोतरी के बाद कच्चे माल की तेजी की क्षतिपूर्ति हो गई थी।


इस उद्योग का यही हाल जारी रहा तो भारतीय ढलाई उद्योग 2010 के लिए निर्धारित अपने लक्ष्य को पाने में कामयाब नहीं हो पाएगा। 2010 तक इस उद्योग ने 6000 करोड़ रुपये का निर्यात लक्ष्य तय किया है। वर्ष 2006-07 में यह निर्यात लक्ष्य 4000 करोड़ रुपये का था।

First Published - April 4, 2008 | 12:08 AM IST

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