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अच्छे मानसून से खरीफ फसलों के रकबे में बढ़ोतरी

Last Updated- December 07, 2022 | 11:43 AM IST

महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश में सूखे जैसी हालत के बावजूद 11 जुलाई को समाप्त हुए सप्ताह में धान, दलहन और तिलहन जैसे खरीफ फसलों के रकबे में वृद्धि हुई है।


पिछले साल की तुलना में इस साल फसलों की कीमत में काफी तेजी आ जाने की वजह से किसानों ने दूसरी फसलों की खेती की बजाय इनकी खेती को तवज्जो दी है। आंकड़ों के मुताबिक, धान के रकबे में 5.45 फीसदी की बढ़त हुई है।

पिछले साल इसी अवधि में साफ औसत गुणवत्ता वाले चावल की कीमत जहां 1,800 रुपये प्रति क्विंटल थी, वहीं इस साल इसका मूल्य 2,600 रुपये प्रति क्विंटल हो चुका है। इस तरह, चावल के भाव में लगभग 45 फीसदी की वृद्धि हो चुकी है। सामान्य चावल के भाव में भी 35 फीसदी की बढ़त देखी गई है। बासमती चावल की कीमत तो निर्यात मांग बढ़ने के बीच 100 फीसदी बढ़कर दोगुनी हो चुकी है।

अखिल भारतीय चावल निर्यात संघ के अध्यक्ष विजय सेतिया के अनुसार, चावल की कीमत में वृद्धि की वजहों में सबसे बड़ी वजह मध्यमवर्गीय परिवारों के जीवन स्तर में होने वाला आश्चर्यजनक सुधार है। सेतिया ने बताया कि मौजूदा स्थितियों में किसानों के सामने कई विकल्प मौजूद होने के बावजूद वे पानी की उपलब्धता वाले इलाकों में धान की जमकर खेती कर रहे हैं। वनस्पति तेल उद्योग की सबसे प्रमुख संस्था सेंट्रल ऑर्गनाइजेशन फॉर ऑयल इंडस्ट्री एंड ट्रेड (सीओओआईटी) द्वारा जुटाए गए आंकड़ों के अनुसार, कपास के रकबे में आश्चर्यजनक कमी हुई है।

पहले की तुलना में इसमें 24 फीसदी की कमी हुई है तो गन्ने के रकबे में भी 9 फीसदी की कमी दर्ज की गई है। ऊंची उत्पादकता पाने की चाह में गेहूं और चावल के साथ सरसों और आलू उगाने का प्रचलन देश में ज्यादा है। ज्यादा से ज्यादा लाभ कमाने के लिए किसान इस विकल्प को आजमाते रहे हैं। लेकिन गन्ने के साथ किसी और फसल की खेती संभव नहीं होने और चीनी की कीमत में कमी होने से किसान गन्ने को छोड़ किसी और फसल का रुख कर रहे हैं। इस साल गन्ने के रकबे में पिछले साल की तुलना में 10 फीसदी की कमी हुई है।

चीनी मिलों के साथ मूल्य और भुगतान को लेकर होने वाला झंझट भी इसके रकबे में होने वाली कमी की एक वजह है। द्वारिकेश चीनी उद्योग के कंपनी सचिव बी. जे. माहेश्वरी के मुताबिक पहले गन्ने का उत्पादन क्षेत्र रहे खेतों में अब चावल की खेती हो रही है। जानकारों के मुताबिक, फसल चक्र में परिवर्तन हर तीन सालों में होता है। सामान्यत: बंपर पैदावार होने की हालत में किसान उस फसल को उपजाना नहीं छोड़ते। शायद उन्हें लगता है कि इस बार भी इस फसल से इतना मूल्य ही उगाहा जा सकता है। लेकिन होता कुछ और ही है।

ज्यादा उत्पादन होने से कीमत कम हो जाती है। लेकिन देखा गया है कि जिस फसल से कम आमदनी हो रही है, किसान झट से उसे पैदा करना छोड़ ज्यादा लाभकारी फसलों का रुख कर लेते हैं। गौरतलब है कि खरीफ फसल की बुआई जून से सितंबर के बीच होती है। इस दौरान ही देश के कुल अनाज के  आधे से ज्यादा उत्पादन करने वाले फसलों की बुआई होती है। पिछले साल खरीफ फसलों के बारे में अनुमान था कि कुल उत्पादन 12 करोड़ टन से अधिक होगा। इस बार कयास लगाए जा रहे हैं कि खरीफ उत्पादन पिछले साल से काफी अधिक होगा।

लेकिन ऐसा तभी संभव है जब मानसूनी बारिश पर निर्भर करने वाले राज्यों में पर्याप्त बारिश हो। मौसम विभाग के सूत्रों के मुताबिक, 9 जुलाई तक देश के 36 जोनों में से 23 में सामान्य बारिश हुई है जबकि 13 जोनों में सामान्य से कम यानी सूखे जैसे हालात हैं। कुल मिलाकर देखें तो देश में 268.5 मिमी बारिश हुई है जो 243.8 मिमी के औसत से 10 फीसदी ज्यादा है। 

First Published - July 16, 2008 | 11:13 PM IST

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