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लोहे से जुड़ी सैकड़ों फैक्टरियां बंदी पर

Last Updated- December 07, 2022 | 8:02 AM IST

लोहे की लगातार बढ़ रही कीमत से लोहे की वस्तु बनाने वाली 20 फीसदी से अधिक फैक्टरियां बंदी के कगार पर आ गयी है।


बड़ी कंपनियां इन्हें बढ़े हुए दाम पर माल की आपूर्ति करते हैं जबकि उन्हें पुरानी कीमत पर ही निर्मित वस्तुओं की आपूर्ति करनी पड़ रही है। लोहे के भाव बढ़ने से लोहे के कारोबार में 25-30 फीसदी तक की गिरावट दर्ज की गयी है।

लोहा व्यापार एसोसिएशन के मुताबिक पिछले छह महीनों में लोहे की कीमत लगभग दोगुनी हो गयी है। एंगल, चैनल, गाटर व सरिया सभी कीमत 50 रुपये प्रति किलोग्राम के आस-पास आ गयी है। चैनल की कीमत तो 54 रुपये प्रति किलोग्राम है। मात्र छह महीने पहले इनकी कीमत 26-28 रुपये प्रति किलोग्राम थी।

एसोसिएशन के अध्यक्ष सतीश गर्ग कहते हैं, ‘वर्ष 1984 में वे 4.50 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से लोहा बेचते थे। 4.50 रुपये प्रति किलोग्राम की दर 28 रुपये प्रति किलोग्राम तक पहुंचने में 20 साल लग गए। लेकिन 28 रुपये प्रति किलोग्राम से 50 रुपये किलोग्राम के स्तर को छूने में मात्र छह महीने लगे।’ वर्ष 1994 में लोहे की कीमत 26-28 रुपये प्रति किलोग्राम थी। और 2007 तक 1-2 रुपये प्रति किलोग्राम उतार-चढ़ाव के साथ इसकी कीमत लगभग स्थिर बनी रही। लेकिन वर्ष 2008 के आरंभ होते ही लोहे की कीमत में तेजी से इजाफा शुरू हो गया।

और मई के आरंभ में लोहे की कीमत 50 रुपये प्रति किलोग्राम के स्तर पर आ गयी। हालांकि बाद में उसकी कीमत में 10 रुपये प्रति किलोग्राम तक की गिरावट भी दर्ज की गयी। लेकिन फिर से यह पुराने स्तर पर आ गया।  कारोबारियों का कहना है कि छह महीने के भीतर कीमत में 100 फीसदी के उछाल का सबसे अधिक खामियाजा लोहे की वस्तु बनाने वाली फैक्टरियों को उठाना पड़ा है। कारोबारियों की भाषा में लोहे की वस्तु को सीआर स्टीपस के नाम से जाना जाता है।

कारोबारी रमेश गोयल कहते हैं कि सीआर स्टीपस के लिए उन्हें महीने में 2000 टन लोहे की जरूरत होती है। मार्च में उन्होंने 2000 टन लोहे का आर्डर दिया था। लेकिन डिलिवरी तक लोहे की कीमत 10 रुपये  प्रति किलोग्राम बढ़ गयी। और कंपनी ने लोहे की आपूर्ति बढ़ी हुई कीमत पर की। लेकिन इस सीआर स्टीपस के लिए उन्हें घटी हुई कीमत पर आर्डर मिले थे। और अगर वे सीआर स्टीपस पर 10 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से अतिरिक्त चार्ज लगाते हैं तो उनका आर्डर रद्द हो जाता है।

ऐसे में उनका घाटा पिछले चार महीनो में लाखों रुपये में पहुंच चुका है। इस मामले में वे अकेले नहीं है। लोहा व्यापार एसोसिएशन के मुताबिक गोयल की तरह 20 फीसदी कारोबारियों को लाखों रुपये का घाटा हो चुका है। और वे अब अपनी फैक्ट्री को बंद कर किसी और काम में हाथ आजमाने की सोच रहे है। इसके अलावा लोहे की विभिन्न वेराइटी बेचने वाले व्यापारियों की बिक्री में भी 30 फीसदी की कमी आयी है। उनका कहना है कि लोहे के दाम बढ़ने से निर्माण क्षेत्र के अधिकतर ठेकेदारों ने अपने हाथ खींच लिए। लिहाजा उनकी बिक्री प्रभावित होने लगी है। 

First Published - June 27, 2008 | 11:31 PM IST

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