दुनिया भर में खाद्य वस्तुओं की कीमतों के आसमान छूने के बावजूद भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रिकल्चरल रिसर्च, आईसीएआर) पूरी तरह आश्वस्त है कि देश में आगे भी खाद्यान्नों का बंपर उत्पादन होता रहेगा।
आईसीएआर का यह भी कहना है कि भविष्य में देश में किसी भी स्तर पर खाद्यान्न संकट उत्पन्न होने के आसार नजर नहीं आते हैं।आईसीएआर के महानिदेशक डा. मंगला राय ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि इसमें कोई शक नहीं है कि हमारी बढ़ती हुई जरूरतों को देखते हुए हमारा उत्पादन भी बढ़ता जा रहा है।राय जो कि भारत सरकार के कृषि विकास और शिक्षा विभाग में सचिव भी हैं। राय का कहना है कि इस समय जो कीमतें बढ़ रही हैं वे किसी कमी के चलते नहीं बढ़ रही हैं।
उनका कहना है कि दरअसल ईंधन, श्रम, फर्टिलाइजर्स जैसी चीजों के दाम बढ़ने से खाद्य पदार्थों की कीमतें बढ़ी हैं। उन्होंने इस बात से साफ इंकार किया कि कीमतों के बढ़ने की वजह मांग की तुलना में खाद्य पदार्थों की आपूर्ति कम है।
राय ने इस बात की भी जानकारी दी कि एक ओर जहां देश की जनसंख्या 2 फीसदी की ओर से बढ़ रही है। वहीं दूसरी ओर दसवीं पंचवर्षीय योजना के आंकड़े बताते हैं कि देश में खाद्यान्नों के उत्पादन में 2.6 फीसदी की वृद्धि हुई है। हालांकि राय ने यह बात भी कही कि यदि देश को भविष्य में किसी खाद्यान्न संकट से बचाना है तो कृषि उत्पादन को 4.5 फीसदी तक ले जाना बेहद जरूरी होगा।
पिछले साल भारत में गेहूं का 7.6 करोड़ टन, चावल का 9.5 करोड़ टन और 1.8 करोड़ टन मक्का का उत्पादन हुआ था। राय का कहना है कि पूरी दुनिया में इस समय महंगाई की आग लगी हुई है। कुछ देशों में तो खाद्य पदार्थों की कीमतों में 100 फीसदी का उछाल आया है और कुछ देशों में खाद्यान्नों की कमी के चलते दंगे भी हुए हैं। ऐसे समय में भारत में कीमतों में जो उछाल हुआ है, उसको मामूली ही कहा जा सकता है।
उन्होंने इस बात की आवश्यकता पर जोर दिया कि देश में कृषि विकास कार्यक्रम में और सुधार की जरूरत है। साथ ही रासायनिक खाद के विकल्प के तौर पर कुछ और चीजों के प्रयोग के बारे में गंभीरता से सोचना चाहिए जिससे भूति की उर्वरा शक्ति को बरकरार रखा जा सके।
आईसीएआर के महानिदेशक ने यह भी कहा कि भूमि की उर्वरा शक्ति के कम होते जाने, ग्लोबल वार्मिंग, भविष्य में बढ़ती मांग और कम होते जल संसाधन जैसी चुनौतियों से निपटने के लिए कृषि क्षेत्र में अधिक अनुसंधान की आवश्यकता है। उनका कहना है कि हमारी बढ़ती जरूरतों को देखते हुए जेनेटिकली मोडिफाइड (जीएम) फसलों की जरूरत तो है लेकिन उनका हमारे स्वास्थ्य और जमीन की ताकत पर जो प्रभाव पड़ रहा है उसकी समीक्षा करना भी जरूरी हो जाता है।